बुधवार, 23 मई 2018

मैं अपना प्यार - 13




*Non tibia b ancilla est incipienda venus (Latin): जब प्रेम प्रदर्शित करते हो, तो नौकरानी से आरंभ मत करो Ovid 43 BC – AD C.17
तेरहवाँ दिन
जनवरी २३,१९८२

कल की रात मेरे लिये बड़ी खतरनाक थी। मैंने कितनी ही कोशिश क्‍यों न की, सो न पाया। मेरा दिमाग एक युद्ध का मैदान होता जा रहा  जहॉ मैं युद्ध जीत सकता हूँ मगर लडा़ई हार जाऊँगा। ऐसा कहीं इसलिये तो नहीं, कि मैंने जिन्‍दगी को काफी हलके से लिया, इसीलिये मैं दुखी हो गया? अंततः मुझे अपने आप को ही ज़िम्‍मेदार मानना होगा।
और अब, मेरी जान, आज के बारे में। सुबह 11.30 बजे मेरे कमरे में एक दारूण घटना घटी। जब मैं आधी नींद में था तो मुझे महसूस हुआ कि कमरे में कोई चीज घुसाई गई है। मैंने फौरन पलटकर उस ओर देखा। एक खत दरवाजे के नीचे पडा़ था। मैं विस्‍तर से कूदा, उसे उठाया, पानेवाले का पता पढा़। मगर वह मेरे लिये नहीं था, वह मेरे रूप-मेट सोम्‍मार्ट के लिये था। मुझ पर वज्राघात हो गया। बारिश नहीं, बल्कि झडी़ लग जाती है! भगवान ही जाने, तुम्‍हारा खत मुझे कब मिलेगा? मैं जिन्‍दगी के हर क्षेत्र में हारा ही हूँ। क्‍या मैं हारने के लिये ही पैदा हुआ था? क्‍या मुझे तुम्‍हारे खत की उम्‍मीद बिल्‍कुल छोड़ देनी चाहिए? इन निराशाजनक सवालों से मुझे जुझना है अपने अस्तित्‍व की रक्षा के लिये। खाने के फौरन बाद मैं पोस्‍ट ऑफिस गया। कुछ तो करना होगा, वर्ना मेरा दिल टुकडे-टुकडे हो जाएगा। मैंने एक छोटा-सा तीन पंक्तियों का पत्र तुम्‍हें भेज दिया। इससे ज्‍यादा लिखने की हिम्‍मत ही नहीं हुई। मैं बस इतना बताना चाहता था कि हर चीज की एक सीमा होती है और हरेक के अपने-अपने दुख-दर्द होते हैं। इसके बाद मैंने काफी हल्‍का महसूस किया और मैं आर्टस फैकल्‍टी की लायब्रेरी चला गया, किताब वापस करने जिसकी जमा करने की तारीख दो दिन पहले गुजर चुकी थी। सौभाग्‍य से मुझे जुर्माना नहीं देना पडा़। अकेलापन और परित्‍यक्‍त महसूस करते हुए में अचानक च्‍युएन के पास गया। वह अपने कमरे में नहीं था। मैंने उसके लिये मेसेज छोडा़ और अपने कमरे पर वापस आ गया। मैंने एक आदमी को तिकोने लॉन में (तुम्‍हारे होस्टेल के पास) पेड़ के नीचे लेटे देखा। वह आराम जैसा लग रहा था, मैं धीरे से, सावधानी से उस ओर गया देखने के लिये कि क्‍या वह आराम था? हाँ, वही तो है! आराम! उसे थोडा़ आश्‍चर्य हुआ कि मैंने उसे पहचान लिया था।
असल में, वह इम्तिहान के लिये कुछ नोट्स पढ़ रहा था और उसकी आँख लगने ही वाली थी, जब मैं उसके पास पहुँचा। मैं भी पीठ के बल लेट गया और हमने दस मिनट तक बातें कीं फिर, मैं खुद ही सो गया। एक ही डाल के पंछी! मैं 4.30 बजे उठा और वापस होस्‍टल की ओर चल पडा़। मैं होस्‍टेल का रास्‍ता पार भी न कर पाया था कि मैंने पोस्‍टमेन को होस्‍टेल के गेट से बाहर निकलते देखा। मेरा दिल बुरी तरह धड़कने लगा। मैं भागकर होस्‍टल में घुसा यह देखने के लिये कि तुम्‍हारा कोई खत तो नहीं आया। उसका कोई नामो-निशान नहीं! मेरी मायूसी को बयान नहीं कर सकता। मेरी जान, तुम मेरे प्रति बड़ी ठण्‍डी और निष्‍ठुर हो।
आज रात खाने में हमें फिश-करी दी गई। भीड बहुत ज्‍यादा थी। मुझे अपने लिये और सोम्‍मार्ट के लिये एक मेज़ लगानी पड़ी। ये एक तरह की सेल्‍फ-सर्विस थी। चम्‍मच पर्याप्‍त नहीं थे। हमने हाथ से खाया और उसका लुत्फ़ उठाया। यह मुझे दूर-दराज के एक गाँव की याद दिला गया जहाँ मैंने अपना बचपन इसी तरह से बिताया था – मेरे माता-पिता और अन्‍य गाँव वालों के साथ। मैंने जल्‍दी-जल्‍दी डिनर खत्‍म किया और अपने कमरे में वापस आ गया। मेरे दिमाग पर फिर निराशा छा गई। मैंने अपने डबडबाए चेहरे को रजाई में ढँक लिया आँसू मेरे गालों पर बह रहे थे। सच कहूँ, मैं आँसू रोक नहीं पाता। मैं एक भावना प्रधान लड़का हूँ जो एक झूठे, गुलाबी सपने में रहता है। हाँ, मैं एक बच्‍चे की तरह चाँद के लिये रो रहा था। सोम्‍मार्ट को मेरी खामोशी से बडा़ आश्‍चर्य हुआ। मैं उसे बेचैन नहीं करना चाहता था, और फिर मैंने वॉयस ऑफ अमेरिका रेडियो स्‍टेशन लगा दिया जिससे चुप्‍पी टूट जाए और उसका ध्‍यान मुझसे हट जाए। मैं बड़े ध्‍यान से रेडियो सुन रहा था, निराशा छँटने लगी थी। मैं संभल गया था। अब मैं फिर से काम करने वाला हूँ। बेकार की बातों पर कितना वक्‍त बरबाद हो गया, विगत के बारे में सोचने पर, भविष्‍य की चिन्‍ता करने में कितना समय खो दिया। जिन्‍दगी में सिर्फ फूल ही फूल तो नहीं हैं, न ! संक्षेप में बर्बाद हुए समय को पूरा करने के लिए मैं काम करने वाला हूँ। मगर, प्‍लीज़ भूलना मत, कि मैं अभी भी तुम्‍हें अपनी बाँहों में देखना चाहता हूँ। जितनी जल्‍दी हो, उतना ही बेहतर!
प्‍यार, पागलपन की हद तक!




मैं अपना प्यार - 12



*Littore quot conchae tot sunt in amore Dolores (Latin): दुनिया में गम इतने हैं, जितनी समुद्र तट पर सींपियाँ Ovid 43 BC – AD C.17
बारहवाँ दिन
जनवरी २२,१९८२

हुर्रे ! दुनिया का एक और विशेष दिन हैः एकता दिवस। वाशिंग्‍टन, D.C., जनवरी २१ प्रेसिडेन्‍ट रीगन ने कल घोषणा की कि ३० जनवरी अमेरिका में ‘‘एकता दिवस’’ के रूप में मनाया जाएगा, निलम्बित पोलिश ट्रेड यूनियन के समर्थन में, रिपोर्टः ए०एफ०पी०
‘‘एकता’’, उन्‍होंने कहा, ‘‘वास्‍तविक जगत में उस संघर्ष का प्रतीक है जब तथाकाथिन ‘‘मजदूर’’ मौलिक मानवाधिकारों और आर्थिक अधिकारों के समर्थन में खड़े हुए थे और उन्‍हें सन् १९८० में ग्‍दान्‍सक में विजय मिली थी। ये हैं – काम करने का अधिकार और अपने परिश्रम का फल पाने का अधिकार; एकत्रित होने का अधिकार; हड़ताल करने का अधिकार; और विचारों की स्‍वतन्‍त्रता का अधिकार’’ (दि स्‍टेट्समेन)
11.30 से 12.30 बजे तक लिंग्विस्टिक्‍स डिपार्टमेन्‍ट में एक सेमिनार था। रॉबर्ट डी०किंग, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्‍सास के प्रसिध्‍द ऐतिहासिक-भाषविद् ने ‘‘सिंटेक्टिक चेंज (पदविन्‍यास-परिवर्तन) पर भाषण दिया। मैं सेमिनार में जाना चाहता था, मगर ऐन मौके पर मैंने न जाने का निश्‍चय कर लिया। दिल ही नहीं हो रहा था सेमिनार में जाने का। मुझे सबके सामने अपना तमाशा बनाना अच्‍छा नहीं लगता, इसलिये मैंने इस मौके का लाभ नहीं उठाया। मुझे लगता है कि मैं एक झूठे-स्‍वर्ग में रह रहा हूँ। सेमिनार में जाने के बदले मैं सोम्‍मार्ट के साथ किताबों की दुकान में गया, एक पत्‍थर-दिल को भूल जाने के लिये, जिसके लिये दिल में थोड़ी उम्‍मीद लिये जी रहा हूँ।
हमने ड्रेगोना-चाइनीज़ रेस्‍तराँ में लंच लिया। वापसी में सोम्‍मार्ट की नजर अपनी गर्ल-फ्रेण्ड पर पड़ी जो दूसरे लड़कों के साथ बैठी थी। उसे बहुत बुरा लगा। वह सोम्‍मार्ट को देखकर मुस्‍कुराई, मगर वह इतना निराश हो गया था कि मुस्‍कुरा न सका। मेरे साथ होस्‍टेल वह इस तरह आया जैसे उस पर वज्राघात हो गया हो। मैंने उसे शांत रहने की सलाह दी, और रास्‍ते भर उसे चिढा़ता रहा। मगर, वह आधा खुश और आधा दुखी था। उसे लग रहा था कि दुनिया उसके विरूद्ध जा रही है। ‘‘प्‍यार का ऐसा तोहफा़’’ जिससे आदमी को पीडा़ होती है, मुझे हैरत में नहीं डालता। आदमी अपने आप से हारने लगता है। बाहय परिस्थितियों को अपना शिकार करने देता है। कुसूर किसका है? किसे दोष देना चाहिए? जवाब देने का दुःसाहस मैं नहीं करुँगा, क्‍योंकि मैं खुद भी उसी कश्‍ती पर सवार हूँ। जीवन परिस्थितियों से अलग नहीं हो सकता। इन्‍सान को जीवन की कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। खुशी,दुख, सफलता, असफलता इत्‍यादि। जीन पॉल सार्त्र ने एक बार कहा थाः ‘‘इन्‍सान अभिशप्‍त है मुक्‍त होने के लिये,’’ इसका सबूत ढूँढ़ने के लिये दूर जाने की जरूरत नहीं है।
जब आदमी अथाह दुख में डूब जाता है, तो उसके आँसुओं का सैलाब बन जाता है। ये सारे खयाल मैं आज की डायरी में इस लिये लिख रहा हूँ कि मेरे बेचैन दिमाग को कुछ सुकून मिल सके। जब से तुम गई हो, मैं अपने बेचैन दिमाग से संघर्ष कर रहा हूँ। पढा़ई नियमित रूप से नहीं कर पा रहा हूँ। अकसर अपना आपा खो बैठता हूँ। मैं वह सब करने की कोशिश तो करता हूँ, जो मुझे करना चाहिये, मगर अपने उद्धेश्‍य में सफल नहीं हो पाता। हे भगवान, मुझे शांति, शक्ति और सांत्‍वना दो!
आज रात को मैंने होस्‍टेल में खाना नहीं खाया। तुमसे ‘‘सम्‍पूर्ण जुदाई’’ ने मेरे दिमाग को निराशा के गर्त में धकेल दिया है। मैं ग्‍येवर हॉल गया म्‍यूएन की किताब वापस करने, मगर उसका कमरा बन्‍द था। फिर मैं बूम्‍मी के पास गया। म्‍यूएन की किताब उसके पास छोड़कर वापस होस्‍टेल आ गया।
आज डायरी अपनी इच्‍छा के विपरीत लिख रहा हूँ। ये कठोर, अपठनीय और व्‍यंग्‍यात्‍मक लग सकती है। मैं चाहूँगा कि तुम मुझे माफ कर दो।
अभी भी तुमसे प्‍यार करता हूँ।





  

मैं अपना प्यार - 11




*Blanditia non imperio fit dulcis Venus (Latin): प्‍यार में मिठास आती है लुभावनेपन से न कि हुकूमतशाही से प्‍यूबिलियस साइरस F1. 1st Century BC
ग्‍यारहवाँ दिन
जनवरी २१,१९८२

धरती सूरज के चारों ओर घूमती है और अपनी अक्ष पर भी घूमती रहती है। पुल के नीचे से काफी पानी बह चुका है। वक्‍त हर चीज को बदल देता है, हर जिन्‍दगी को निगल जाता है। मैं नहीं जानता कि जिन्‍दगी कितनी उलझन भरी है। पिछली जुलाई में मैं पच्‍चीस साल का हो गया। जब मैंने अपनी पिछली जिन्‍दगी में झांक कर देखा तो वहाँ सिर्फ ‘‘एक शून्‍य’’ मिला। जिन्‍दगी की अकेली राह पर, मैं एक लड़की से प्‍यार कर बैठा। मगर अब उसने अपने माता-पिता की खातिर मुझे छोड दिया है। उम्‍मीद के बावजूद उम्‍मीद करता हूँ कि वह किसी दिन लौट आएगी। मैं उसका इंतजार कर रहा हूँ। अब तक उसका एक भी खत नहीं आया है। वह मुझे भूल गई होगी, हमारे रिश्‍ते को भूल गई होगी। क्‍या हमारा प्‍यार इतिहास में जमा हो गया है? ताज्‍जुब है, अब मुझे अहसास होने लगा कि अपने अपने दिलों की गहराईयों में हम सब अकेले हैं। अकेलापन हर इन्‍सान के लिये एक छुपे-शैतान की तरह है। हमें उसका सामना अकेले ही करना है। हाय, जिन्‍दगी!
अच्‍छा, अब, मैं वापस आज की डायरी पर आता हूँ और इस खयाल से छुटकारा पाने की कोशिश करता हूँ कि तुमने मुझे फिलहाल छोड़ दिया है या कभी नहीं छोड़ोगी।
सुबह, सब कुछ वैसा ही रहाः उठना, मॅुह-हाथ धोना नाश्‍ता करना, और, बस! 11.30 बजे मैं यूनिवर्सिटी की एके‍डेमिक ब्रांच गया सवाद के लिये प्राविजनल सर्टिफिकेट लेने, जिसके लिये मैंने दस दिन पहले दरखास्‍त दी थी। काऊन्‍टर पर लिखा था क्‍लोज्‍ड! मैंने इसकी ‘‘छोटी खिड़की’’ पर टक-टक की। एक आदमी ने उसे खोलकर पूछा कि मैं क्‍या चाहता हूँ। मैं मुस्‍कुराया और मैंने अत्‍यधिक नम्र होने की कोशिश की। मैंने उसे प्रोविजनल सर्टिफिकेट वाली रसीद दिखाई। उसे बड़ा गर्व महसूस हुआ, स्‍वयं को महत्‍वपूर्ण समझते हुए वह भी नरम पड़ गया। मैं उसकी खुशामद करने लगा। मुझे ऐसा लगा कि अगर किसी इंडियन से काम निकलवाना हो तो उसे हमेशा यह दिखाओ कि वह तुमसे श्रेष्‍ठ है। धन्‍यवाद, महात्‍मा गाँधी! उसने फौरन प्रोविजनल सर्टिफिकेट बना दिया। मैंने उसे बहुत बहुत धन्‍यवाद दिया और मैं काऊन्‍टर से चल पड़ा। कैम्‍पस में लोग भाग-दौड कर रहे थे।
कर्मचारियों की हड़ताल अभी भी जारी है। वाइस चान्‍सलर बिल्डिंग के पास वाला यूनिवर्सिटी गार्डन संघर्ष कर रहे कर्मचारियों से खचाखच भरा है। यूनियन के प्रेसिडेन्‍ट ने माईक पर कहा ‘‘कर्मचा‍री, जिन्‍दाबाद!’’ कर्मचारी छोटे-छोटे गुटों में बैठे थे। कुछ लोग मूँगफलियाँ फोड़ रहे थे, कुछ ताश खेल रहे थे, और कुछ अपने नेता का भड़काऊ भाषण ध्‍यान से सुन रहे थे। कुछ महिला कर्मचारी भी शामिल थी। वे अपने लीडर को सुनने के बजाय बुनाई कर रही थी। कितनी बेकार की हड़ताल है। बिल्‍कुल एकता नहीं है। मैंने गार्डन के चारों ओर घूम कर अपना अवलोकन खत्‍म किया और वापस होस्‍टल आ गया। मेरे निरीक्षण ने मुझे यह सुझाव दिया कि कर्मचारियों की हड़ताल का उद्देश्‍य हैः सुरक्षा की भावना, सामाजिक मान्‍यता और आर्थिक लाभ। वे कहाँ तक सफल होंगे? यह तो मैं तुम्‍हें नहीं बता सकता। मेरी नजर में, तो यह एक हर साल खेला जाने वाला गेम है, जिसमें कोई पुरस्‍कार नहीं है, बेकार की मेहनत!
मैं लंच के लिये होस्‍टल वापस आया और 4.30 बजे तक कमरे में ही बन्‍द रहा। ओने ने बताया कि वह तुम्‍हारा नहाने का कोट लाकर देगी, और मैं ग्‍वेयर हॉल पर उससे कोट ले लूँ। मैं वहाँ निश्चित समय पर पहुँचा (5.00 बजे) कमरे में हॉमसन, ओन, पू और उसका बच्‍चा बातें कर रहे थे। मैंने हैलो कहते हुए कोब (पू के बच्‍चे) का चुंबन लिया और ओने से कोट के बारे में पूछा। वह तो उसे लाना भूल गई थी! मुझे उसके साथ जाकर हॉस्‍टेल से कोट लेना पड़ा। मैंने उससे तुम्‍हारे पापा द्वारा तुम्‍हारे लिये भेजे गये खत के बारे में भी पूछा (ओने ने कल बताया था)। मुझे ऐसा करने के लिये (तुम्‍हारी इजाज़त के बिना) इस बात ने मजबूर किया कि मुझे तुम्‍हारे पापा की खैरियत की फिक्र है। माफ करना। एक बात और भी हैः मैं यह समझता हूँ कि अगर तुम्‍हारे पापा को कुछ हो गया, तो तुम मुझे खत नहीं लिखोगी। अब मैं निश्‍चिंत हूँ, क्‍योंकि मुझे मालूम है कि तुम्‍हारे पापा ठीक हो रहे हैं (उनके तुम्‍हारे लिये लिखे खत के मुताबिक)। पहली बार मैंने थाराटीकी लिखाई देखी। इतनी बढि़या है कि एक आठ साल का बच्‍चा ऐसे कर सकता है। मैं वाकई इस बात के लिये उनकी तारीफ करता हूँ।
मगर अब मुझे यह खयाल परेशान कर रहा है कि तुम्‍हारे पापा के काफी ठीक हो जाने के बाद भी तुम मुझे क्‍यों नहीं लिख रही हो। ऐसा महसूस होता है कि मेरा दिल रौंदा जा रहा है। यह खयाल मुझे पागल बना रहा है, मेरी जान। क्‍या तुम महसूस कर सकती हो? मुझे मालूम है कि तुम अपने पापा के और मेरे बीच में बंटी हुई हो। मैंने तुम्‍हारे पापा का खत पढा़। मैं पिता का प्‍यार, दुलार, चिन्‍ता और फिकर महसूस कर रहा हूँ जिसका काई मोल नहीं है।
पिता और पुत्री का संबंध इतना गहरा होता है कि उसे किसी भी तरह से तोडा नहीं जा सकता। तब मुझे महसूस होता है कि मैं तो कोई भी नहीं हूँ। यह सोचकर मैं काँप जाता हूँ कि अगर तुम्‍हारे पापा ने हमारे ‘‘जॉइन्‍ट एग्रीमेन्‍ट’’ को सम्‍मति न दी तो हमारा प्‍यार तो बरबाद हो जाएगा। जब वह घड़ी आएगी, तब मैं क्‍या करुँगा? यह सवाल वज्रपात की तरह दिमाग पर गिरा।
मैं, बेशक, तुम्‍हारी तारीफ ही करुँगा, अगर तुम अपने पापा को प्राथमिकता दो। ईमानदारी से कहूँ, तो मैं तुम्‍हारे और तुम्‍हारे पापा के लिये अपनी खुशी को भी ‘‘खत्‍म कर दॅूगा’’। मैं तुमसे वादा करता हूँ कि ‘‘हमारे’’ पापा हमारी हरकतों से आहत नहीं होंगे। आज ‘‘स्‍टेट्समेन’’ अखबार ने हमारे देश (थाईलैण्‍ड) के बारे में एक खबर प्रकाशित की है। यह छोटे कॉलम में है। खबर ऐसी हैः नसबन्‍दी मेराथॉन, बैंकोक, जन. 19। जन्‍म-नियन्‍त्रण प्रचारक मि० मिचाइ वीरावाइ दया ने कल बैंकोक की २००वीं वर्षगॉठ को इस वर्ष एक अनूठे प्रकार से मनाने की योजना की घोषणा की – एक नसबन्‍दी मेराथॉन का आयोजन करके, यह खबर ए०एफ०पी० ने दी है (कुछ अन्‍य अनावश्‍यक विवरण छोड़ रहा हूँ)।
यह खबर पढ़कर इस भयानक दुनिया से मुझे घृणा हो गई। यह धर्म के खिलाफ है! आर्थिक समस्‍याओं का बहाना देकर। ये सिर्फ नर-संहार का कार्यक्रम ही तो है। यह प्रदर्शित करती है वास्‍तविकता का सामना करने की मानव की असमर्थता, मानव की असफलता, मानव का अमानुषपन। आर्थिक संकट को हल करने में असमर्थ इन्‍सान मानव जाति को ही समाप्‍त करने चला है। अगर तुम मृत्‍य के पश्‍चात् की जिन्‍दगी में या ‘‘पुनर्जन्‍म’’ में विश्‍वास करती हो तो तुम इस घृणित योजना के प्रति मेरी असहमति और नफरत को समझ सकोगी। तुम्‍हारा पुनर्जन्‍म होगा कैसे यदि स्‍त्रियों और पुरूपों की नसबन्‍दी हो जाए तो?
अच्‍छे और बुरे कर्मों के परिणाम कहाँ हैं? इसकी सिर्फ निहिलिज्‍म (निषेधवाद) – वास्‍तविकता के निषेध से ही तुलना की जा सकती है। मैं इसे सभ्‍य समाज के शैतान द्वारा निर्मित एक निषेधात्‍मक कदम समझता हूँ। मैं, इस कलंकित कदम का विरोध करने वालों में सबसे आगे रहूँगा। इस ईश्‍वर विरोधी योजना का धिक्‍कार हो।


मैं अपना प्यार - 10



*Nondum amaban, et amare amabam…quaerebam quid amarem, amans amare (Latin): मैं प्‍यार करने नहीं लगा, मगर मुझे प्‍यार करने पर प्‍यार आता है, मैं इंतजार करता हूँ किसी के प्‍यार करने का, प्‍यार करने को प्‍यार करता हूँसे० अगस्‍टीन AD (354-430)
दसवाँ दिन
जनवरी २०,१९८२

मैं बहुत आहत हूँ, बुरी तरह आहत हूँ। अब तक तुम्‍हारी कोई खबर नहीं आई है। मैं परंशान हूँ। तुम्‍हें हुआ क्‍या है? क्‍या तुम इतनी व्‍यस्‍त हो कि मुझे एक लाईन भी नहीं लिख सकती? मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी भावना को अपने दिल में रखो और उस पर विचार करों। अगर तुम मेरी जगह होतीं, तो तुम्‍हें पता चलता कि मैं भविष्‍य का सामना किस मुश्किल से कर रहा हूँ। मुझे बहुत तकलीफ होती है, मेरी जान। तुम एक नई चीज हो गई हो मेरी जिन्‍दगी में जिसके बिना मेरा काम नहीं चलता। क्‍या तुमने इस बारे में कभी सोचा है? तुम्‍हारे बिना जिन्‍दगी की कल्‍पना भी नहीं कर सकता। तुम्‍हारे बगैर तो मैं अपनी जिन्‍दगी की हर आकांक्षा को छोड़ दूँगा। याद रखो कि ‘‘एकता हमारी शक्ति है, विभाजन हमारी निर्बलता!’’
ठीक है, बहुत हो गया। मैं वापस अपनी दिल्‍ली की जिन्‍दगी पर आता हूँ।
आज कोई अखबार नहीं आया। यह कल की ऑल इंडिया हड़ताल का अप्रिय नतीजा है। धन्‍यवाद, भारतीय लोकतन्‍त्र! सुबह मैं काफी व्‍यस्‍त रहाः उठा, नहाया, नाश्‍ता किया, कपड़े धोए और उन्‍हें सुखाया। ये सारे उकताहट भरे काम करने के बाद मैं एक २० पृष्‍ठों का लेख फोटोकॉपी करवाने के लिये निकला।
जब मैं ग्वेयर हॉल के कैन्‍टीन तक पहुँचा, तो चू मेरी ओर साइकिल पर आ रहा था।
कहाँ? उसने पूछा
फोटोकॉपी करवाने,’’ मैंने जवाब दिया
उसने मुझसे अपनी साइकिल पर बैठने को कहा और फोटोकॉपी वाली दुकान तक ले जाने की इच्‍छा जाहिर की। मैं मान गया। जब हम वहाँ पहुँचे, तो बिजली नहीं थी। दुकानदार ने कहा कि मैं एक बजे आकर फोटोकॉपी ले जाऊँ। जब मैं उसकी साइकिल पर बैठ कर वापस आ रहा था तो मैंने सोचाः एक अच्‍छी सैर दूसरी का वादा करती है। मैंने उससे कहा कि साइकिल किंग्‍ज-वे कैम्‍प की ओर ले चले। जिससे हम लंच के लिये पोर्क खरीद सकें। किंग्‍ज-वे कैम्‍प के पास वाले ब्रिज पर हमें रेनू मिली जो अपनी टीचर बसन्‍ता से मिलने जा रही थी। उसने हमसे थाई तरीके से नमस्‍ते किया। मैंने उसे वुथिपोंग के कमरे पर लंच की दावत दी। उसने स्‍वीक़ति में सिर हिलाया। फिर हमने उससे बिदा ली। मैंने पोर्क के लिय १५रू० दिये हम वुथिपोंग के कमरे पर आए। हमने ‘‘चू’’ को अकेले पकाने के लिये छोड़ दिया और हम वुथिपोंग के क्‍लास से लौटने का इंतजार करने लगे। मैंने अपने हॉस्‍टल में झांका यह देखने के लिये कि कहीं तुम्‍हारी चिट्ठी तो नहीं आई है। (मुझे कितनी उम्‍मीद थी कि तुम्‍हारा खत आएगा)। मगर मुझे बडी निराशा हुई यह देखकर कि मेरे लिये कोई खत नहीं था। मैं इतना उदास हो गया, अपने आप को ढाढ़स बंधाने की भी ताकत नहीं रही। तुमने मुझे छोड दिया! तुमने मुझे फेंक दिया! अपनी निराशा से दूर भागने के लिये मैंने प्राचक को मेरे साथ पिंग-पाँग खेलने के लिये कहा। प्राचक ने अपने हॉस्‍टल में खाना खाया, मैंने वुथिपोंग, चू और ओने के साथ खाया। रेणु नहीं आई। हम उसे याद करते रहे मगर इस बारे में कुछ कर नहीं सके। मुझसे पूछना मत, प्‍लीज, कि लंच के समय मुझे तुम्‍हारी याद आई या नहीं, जा़हिर है कि जब हम बढि़या लंच करते हैं तो तुम्‍हारी याद आती ही है। यह तो मालूम ही है। समझाने की ज़रूरत नहीं है। ठीक है? लंच के बाद ओने और चू ग्‍वेयर हॉल गए टयूटोरियल्‍स के लिये। मैं और वुथिपोंग कमरे में ही रहे। किसी टूटे हुए दिल वाले के लिये खामोशी एक खतरनाक हथियार होता है। इस बात को ध्‍यान में रखते हुए मैंने उसके साथ बात-चीत शुरू कर दी। हमारी बात-चीत कुछ गपशप जैसी ही थी। हमेशा की तरह मैंने वुथिपोंग को उसके दिल का दर्द ऊँडेलने दिया और उसकी समस्‍या का कोई हल सोचने लगा। मैं पूरे ध्‍यान से उसकी बात सुन रहा था और उसकी जिन्‍दगी-या-मौत वाला मामला समझ रहा था। चू बीच में टपक पडा़, वह कोई चीज़ लेने आया था, जो वह भूल गया था। उसकी यह दखलन्‍दाजी सन्‍देहास्‍पद थी। वुथिपोंग ने अन्‍दाज लगाया कि उसने हमारी गपशप सुन ली है। मैंने इस ओर जरा भी ध्‍यान नहीं दिया, क्‍योंकि मेरे दिल में किसी के भी प्रति बुरी भावना नहीं थी। मैंने भी वुथिपोंग से कहा कि वह फिकर न करे। इसके बाद मैं उसे अपने साथ फोटोकॉपी की दुकान पर घसीट कर ले गया, और वहाँ से होस्‍टेल। सोम्‍मार्ट कमरे में नहीं था। उसकी प्रयून के साथ बूनल्‍यू के कमरे में रोज विशेष टयूशन होती है। हमने कुछ गाने सुने। वुथिपोंग नहाया और फिर कमरे से गया।
मैं कंबल में दुबक कर तीन घंटे सोया। यह नींद दिन भर की परेशानियों पर पर्दा डालने जैसी थी। जब मैं नींद में था तो किसी ने खिड़की पर टक-टक की, मैं अलसाया हुआ था, मैंने उठकर नहीं देखा कि यह कौन था। शाम को 5.30 बजे मैंने अपनी आँखें खोलीं, पहला ही ख़यालः क्‍या तुम्‍हारा खत आया है? मैंने दरवाजे के नीचे देखा। चौकीदार ने भीतर सरकाया होगा, मैंने सोचा। मगर उसका नामो निशान नहीं था। मुझे ऐसा लगा कि मेरी सारी शक्ति निकल गई है। निराशा से मैं अपनी छोटी-सी कॉट से उतरा और अकेलेपन तथा झल्‍लाहट से बचने के लिये कुछ न कुछ करता रहा –डिनर तक अपने आपको व्‍यस्‍त रखा।
चूंकि मैं डिनर पर देर से पहुँचा, इसलिये मुझे चावल नहीं मिला। मैंने तीन चपातियॉ और दाल खाई। सब्‍जी को हाथ भी नहीं लगाया। बस यही मेरा डिनर था। आज की डायरी के बाद लिख रहा हूँ। रात को मैं बस डायरी ही लिखता हूँ, कुछ और करने का मन ही नहीं होता।
मेरे ख़याल बस तुम्‍हारे ही इर्द-गिर्द घूमते हैं। अब, मैं डायरी लिखना बन्‍द कर रहा हूँ। मैं ‘‘सोच रहा हूँ ’’ कि नहा लूँ और कुछ देर तक कुछ बेकार की चीजें पढूँ, फिर सो जाऊँ। उम्‍मीद के बावजूद उम्‍मीद करता हूँ कि तुम जल्‍दी वापस आओगी।
दिल का तमाम प्‍यार!

मैं अपना प्यार for Kindle

  अपना प्यार मैं दिल्ली में छोड़ आया   एक थाई नौजवान की ३० दिन की डायरी जो विदेश में बुरी तरह प्‍यार में पागल था                ...