शुक्रवार, 25 मई 2018

मैं अपना प्यार - 23




*Dilige et quod vis fac (Latin): प्‍यार करो और वह सब करो जो तुम चाहते हो – सेंट ऑगस्टीन AD C 354-430
तेईसवाँ दिन
फरवरी २,१९८२
तुमसे दुबारा मिलकर बहुत अच्‍छा लगा! यकीन करो या न करो, कर्मचारी-हड़ताल फिर से शुरू हो गई है। यह अभी भी चल रही है। मैं इन कर्मचारियों के बीच निरीक्षक “Observant” की तरह बैठ गया। कृपया अंग्रेजी शब्‍द Observant में से “Ob” मत हटाना, वर्ना वह “servant” बन जाएगा ! मैं मुँगफली छीलता रहा और भाषणों को १५ मिनट तक सुनता रहा। मुझे कौन सी चीज यहाँ खींच लाई है? तुम ये सवाल पूछ सकती हो। ये, बस, दिलचस्‍पी की बात है, डार्लिंग, कल रात को मैंने तुम्‍हारे खत का जवाब दे दिया। यह एक अ‍कस्‍मात् प्रतिक्रिया थी, क्‍योंकि तुमने मुझे बड़ी देर से लिखा था। सुबह 10.00 बजे मैं पोस्‍ट ऑफिस गया और टिकट लगा कर उसे पोस्‍ट बॉक्‍स में डाल दिया। फिर मैं होस्‍टल के सामने वाले प्‍ले-ग्राऊण्‍उ पर धूप में बैठने के लिये आया, साथ में किताब थी जो मैं पढ़ रहा था आधुनिक भाषा विज्ञान के अर्थविचार का परिचय (Introduction to contemporary Linguistic semantics) लेखक जॉर्ज एल० डिल्‍लोन, बड़ी दिलचस्‍प किताब है। मैंने दो वाकयों A और B के बीच का अन्‍तर ढूँढा।
  A. जॉन अपनी बीवी को इसलिये नहीं मारता, क्‍योंकि वह उसे प्‍यार करता है।
  B. वह उसे प्‍यार करता है, जॉन अपनी बीवी को नहीं मारता
(‘‘क्‍योंकि’’ के स्‍थान पर ध्‍यान दो)।
वाक्‍य A दो प्रकार से समझा जा सकता है (सन्‍देहास्‍पद), जो ये हैः
१.       वह उसे मारता है, मगर किसी और कारण से
२.       वह उसे नहीं मारता – क्‍योंकि वह उसे प्‍यार करता है
जबकि वाक्‍य B केवल एक ही अर्थ को प्रदर्शित करता है (असन्‍देहास्‍पद), और वह ये किः
१.       वह उसे नहीं मारता – क्‍योंकि वह उसे प्‍यार करता है
फरक समझ में आया? मेरे अंग्रेजी के इस नए ज्ञान को मेरे साथ बाँटो।
जब मैं पढ़ रहा था तो मैंने तुम्‍हारे डिपार्टमेन्‍ट के दो लोगों को देखा (क्‍लर्क ऑफिसर) जो लॉन पर और कर्मचारियों के साथ बैठे थे। वे अपना दिल बहलाने के लिये गा रहे थे। वे हड़ताल पर थे। फिर, मैंने उन्‍हें पहचानने के अंदाज में उनकी ओर देखकर हाथ हिलाया। उन्‍होंने भी जवाब में हाथ हिलाया, जब मैं मुडा़ तो मैंने पुलिस के तीन सिपाहियों को अपनी ओर आते देखा।
‘‘तीन नंबर गेट कौन सा है, भाई,’’ उन्‍होंने मुझसे अंग्रेजी मिश्रीत हिन्‍दी में पूछा।
मैंने उन्‍हें रास्‍ता बताया और फिर से पढ़ने लगा। जब मैंने एक अध्‍याय पढ़ लिया तो मैं हडताल का निरीक्षण करने के लिये उत्‍सुक हो गया, जो वाइस चान्‍सलर बिल्डिंग के बाहर युनिवर्सिटी गार्डन को दहला रही है। मैं जिन्‍दगी की खोज-बीन करना और अपनी दिलचस्‍पी का दायरा बढा़ना चाहता था। मैं उस दायरे में शामिल हो गया और हड़ताल का निरीक्षण करने लगा। करीब २५ महिलाये थी वहाँ। उनमें से अधिकतर तो बुनाई कर रही थी। उन्‍हें हड़ताल में कम दिलचस्‍पी थी। वे सिर्फ हड़तालियों की संख्‍या बढा़ने आई थीं। बस, इतना ही! जहाँ तक आदमियों का सवाल है, वे ताश खेल रहे थे, अपने उकताने वाले खेल – हड़ताल का मजा ले रहे थे। पन्‍द्रह प्रतिशत लोग सचमुच में हड़ताल में दिलचस्‍पी ले रहे थे। मेरे निरीक्षण के दौरान मैंने कुछ मूँगफली खरीदी, जो खूब धडल्‍ले से वहाँ बिक रही थी, और मेरे पास बैठे आदमी को पेश की। ध्यान से भाषण सुनने के बदले हम मूँगफलियॉ छील रहे थे और मजा़क कर रहे थे। यह बस खेल का ही एक हिस्‍सा है – मतलब, मेरा निरीक्षण। 12.30 बजे मैं हड़ताल छोड़कर लंच लेने गया और कुछ देर और पढ़ता रहा।
1.30 बजे मैं म्‍युआन से किताब लेने गया। उसका कमरा अभी भी बन्‍द था। वह लंच के लिये ग्‍वेयर हॉल वापस नहीं आया था। मैंने बून्‍मी के कमरे में उसे ढूँढा। वह मुझे वहाँ भी नहीं मिला। बल्कि, वहाँ मुझे बून्मी और नोनग्‍लाक मिले। वे साथ में लंच ले रहे थे। उन्‍होंने औपचारिकता से मुझे भी उनका साथ देने को कहा। मना करने का कोई कारण नहीं मिला, बल्कि यह आकस्मिक दान स्‍वीकार कर लिया। जब हम लंच खत्‍म कर ही रहे थे, म्‍युयान अन्‍दर आया। इसलिये उसे बचा-खुचा खाना दिया गया। दुहरे लंच के बाद, मैं म्‍युआन के कमरे में किताब ढूँढने गया। मु्झे अपनी तलाश में सफलता मिली और मैं अपने कमरे में इसका फायदा उठाने आ गया।
जब मैं अपने पढ़े हुए अध्‍याय के मुख्‍य बिन्‍दु कागज पर नोट कर रहा था तो सोम्‍मार्ट आया। वह थका हुआ और भूखा लग रहा था। मगर उसकी भूख शांत करने के लिये कमरे में खाने को कुछ था ही नहीं। उसने पन्‍द्रह मिनट आराम किया और फिर पढ़ना शुरू कर दिया। मैं उसका दिमाग पढा़ई से हटाने की कोशिश कर रहा था, और मैंने उससे कहा कि सोम्नियेंग और उसके परिवार का हाल पूछने के लिये मेरे साथ चले (मैंने सुना था कि सोम्नियेंग को बुखार था)।
हम 5.30 बजे शाम को उसके यहाँ पहुँचे। घर पर कोई भी नहीं था। हम वापस लौटने लगे तो किंग्‍स-वे पर हमें सोम्नियेंग मिला, जो घर लौट रहा था। हम उसके साथ वापस लौट आये। उसका बुखार उतर गया लगता था। बर्मी डॉक्‍टर सोम्नियेंग के लिये एक बिस्‍तर लाया था मगर वह उसे गेट पर रखकर वापस क्लिनिक चला गया। मैंने उस भारी बिस्‍तर को उठाने में मदद की।
सोम्‍मार्ट ने दरवाजे का ताला खोला। हमने थोड़ी सी बातें की। मैंने फल और पानी लिया, सोम्‍मार्ट ने भी ऐसा ही किया। इसके कुछ ही देर बाद पू, कोप और ओड वापस आए। उन्‍होंने हमें अपने यहाँ डिनर पर आमंत्रित किया। हमने धन्‍यवाद कहते हुए इनकार कर दिया। हम उन्‍हें छोड़कर अपने होस्‍टेल लौटे, हमेशा की तरह दाल, सब्‍जी और चपाती खाने। असल में हम उनका खयाल रख रहे थे, इसीलिये हम उनका निमन्‍त्रण स्‍वीकार नहीं कर सके। तुम्‍हारी गैरहाजिरी में मैं ओने से मिलने नहीं आया।
मुझे याद है कि मैं एक बार टेप-रेकार्डर तथा कुछ अन्‍य चीजें लेने उसके पास गया था। बस वही एक अवसर था, जिसे ‘‘मुलाकात’’ नहीं कहा जा सकता। उससे न मिलने का कारण सिर्फ यही था कि मैं व्‍यस्‍त था, मैं अपने काम में लगा था, और वह अपने काम में। हम अलग तरह के बने हैं। बस इतना ही। मुझे, प्‍लीज दोष मत देना कि मैं ओने के सामने पेश नहीं हुआ, जैसा कि तुम चाहती थी। यह मुझसे होगा ही नहीं।
ठीक है। अब, मेरी जान, मैं लिखना बन्‍द कर रहा हूँ। साम्रोंग पढा़ई में मेरी मदद माँगने आया है। मुझे औरों के लिये भी कुछ करना चाहिये। गुड नाइट। जल्‍दी ही तुमसे मिलूँगा, डार्लिग।












मैं अपना प्यार - 22




*Si poteris vere, si minus apta tamen (Latin): संभव हो तो मुझे सत्‍य बताओ, यदि न हो तो वह करो जो सबसे अच्‍छा हो – ओविद 43BC-AD C 17
बाईसवाँ दिन
फरवरी १,१९८२

फरवरी ८२ की पहली सुबह है, और बाहर घना कोहरा छाया है। जब मैं डायरी लिख रहा हूँ तो सूरज इस निराश दुनिया को रोशन करने के लिये चमक रहा है। आज मैं बहुत उत्‍सुक हूँ कुछ रचनात्‍मक, कुछ जोशभरा काम करने के लिये। वक्‍त आ गया है कि इसे कर ही लूँ। जिन्‍दगी बहुत छोटी है। मैं अब और सोकर इसे नहीं गुजारुँगा। जैसा कि एक ब्रिटिश डॉक्‍टर ने कहा है कि सबसे ज्‍यादा तन्‍दुरूस्‍त, प्रसन्न, सफल और विद्वान व्‍यक्ति वे होते हैं जो कम से कम सोते हैं, करीब पाँच घण्‍टे हर रात। ‘‘इससे ज्‍यादा’’, वह कहता है, बुरी आदत है और यह दिमाग को सुस्‍त बना देती है। हमें अपने दिमाग को सजीव और कार्यशील रखने के लिये खुद को सक्रिय एवम् सजीव रखना होगा। अच्‍छा कहा है। अब से मैं एक नई शुरूआत करुँगा। देखें, कब तक निभा पाता हूँ। ठीक है, डायरी की ओर चलूँ।
सुबह 10.30 बजे मैंने अपना सक्रिय कार्यकलाप शुरू किया लिंग्विस्टिक्‍स लाइब्रेरी जाकर जहाँ से मुझे एक किताब लेनी थी, फिर मैं नोटिस बोर्ड देखने गया। सेमिनार रूम के सामने अंजु और राकेश (मेरे सहपाठी) गपशप कर रहे थे। मैंने मुस्‍कुराकर उनसे हैलो कहा। अंजु ने नोटिस बोर्ड की ओर इशारा करते हुए कहा –
‘‘नोटिस बोर्ड देखो, डेविड’’
‘‘किस बारे में है?’’ मैंने उससे पूछा।
खुद ही देख लो,’ उसने सलाह दी।
मैंने नोटिस बोर्ड पर नजर दौडा़ई और मुझे दो नोटिस नजर आए; एक महत्‍वपूर्ण है, दूसरा-दिलचस्‍प महत्‍वपूर्ण नोटिस इस बारे में है कि एम०फिल कमिटी की मीटिंग ३ फरबरी को होने वाली है, जिसमें शोध-विषयों को अंतिम स्‍वीकृति दी जाएगी। दिलचस्‍प नोटिस उस पिकनिक के बारे में है जिसका आयोजन डिपार्टमेन्‍ट ने किया है। जब मैंने उस धनराशि की ओर देखा जो हमें खर्च करनी पड़ेगी, तो मेरी दिलचस्‍पी खत्‍म हो गई। २० रूपये। मैं अपने आप को और अधिक आर्थिक परेशानी में नहीं डालूँगा।
मैं डिपार्टमेन्‍ट से निकलकर लाइब्रेरी सायन्‍स डिपार्टमेन्‍ट गया मि० वासित को याद दिलाने कि उन्‍हें खत लिखना है। वे वहाँ नही थे। उनका कमरा बन्‍द था। मैंने देखा कि सुन्‍दरम मैडम क्‍लास में लेकचर दे रही थी। मैंने सोचा कि उन्‍हें याद दिलाने की जरूरत नहीं है। शायद उन्‍होंने तुम्‍हें लिख भी दिया हो। मैं उन्‍हें तंग नहीं करना चाहता। तो मैं तुम्‍हारे डिपार्टमेन्‍ट से मिलकर आराम से मिलने पहुँचा। वह सिर ढाँककर सो रहा था। मैंने उसे उठाया जिससे वह लंच के लिये तैयार हो जाए। आचन च्‍युएन एक स्‍पेशल मीटिंग के लिये बुलाने आया जो फरवरी में होने वाली थी और वह जोर दे रहा था कि हम फरवरी में अशोक बुद्ध मिशन में अन्‍य बौद्धों के साथ माघ पूजा का आयोजन करें। मैंने उनके साथ कुछ समय बिताया और फिर कुछ कागज खरीदने को-ऑपरेटिव स्‍टोर गया। सोम्रांग भी  वहाँ फाइल्‍स खरीद रहा था। मैंने उससे एक रूपया उधार लिया, क्‍योंकि मेरे पास बिल चुकाने के लिये पर्याप्‍त पैसे नहीं है। जब मैं बाहर निकला तो इत्तेफाक से मिसेज कश्‍यप से मुलाकात हो गई। मैंने उन्‍हें ‘‘न्‍मस्‍ते’’ कहा और विनती की कि वे मि० काश्‍यप को तुम्‍हें लिखने की याद दिला दें, यदि वे तुम्‍हारे दिल्‍ली पहुँचने से पहले ऐसा करना चाहे तो।
मैं लंच के लिये होस्‍टल वापस आया और लंच के बाद वुथिपोंग के कमरे में उससे थोड़ी-सी बातें करने गया। वह अभी तक ‘‘वो ही’’ वुथिपोंग है जिसे अपना जीवन संतुष्टि लायक नहीं प्र‍तीत होता। वह बेकार ही महान कल्‍पनाओं के चाँदी के रथ में सवार होकर स्‍वर्ग से उतरने की राह देख रहा है, जिसे एक विजयी, मुस्कुराती काव्‍य-देवता हाँक रही है। मुझे ऐसा लगता है कि अगर वह छोटी-छोटी चीजों – दर्जनों, सैकडो और कभी कभी हजारों छोटी-मोटी सूचनाओं, विचारों, और घटनाओं को, जो उसके दिमाग में भरी पड़ी हैं, अनदेखा न करे तो वह बेशक, अपने समय का महान आदमी है। हमारी ये मीटिंग बस रचना का ऐवज बन गई – खासतौर से गप-शप, मौसम के बारे में बेकार की बातें, या बकवास, जो खामोशी की खाई को पाटने के लिये जा रही थी। मगर फिर भी, मुझे उसका साथ देना अच्‍छा लगा। उसने कॉफी बनाई और महेश ने चपाती और यह थी समाप्ति ‘‘हमारे वक़्त’’ की। वह मेरे साथ होस्‍टेल आया। हम जी भर कर पिंग-पॉग खेले। उसने गरम पानी से स्‍नान किया और फिर अपने ‘‘काम’’ को करने चल पडा़। जब मैं खेलने के लिये अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, तो मैं पोस्‍टमैन द्वारा अभी-अभी लाए गए खत देखने चला गया। वाह, क्‍या किस्‍मत है। मुझे तुम्‍हारा खत मिला। यह आश्‍चर्य की बात है। मुझे आज इसकी उम्‍मीद नहीं थी। बहुत-बहुत धन्‍यवाद, प्रिये, कि तुम मुझे भूली नहीं हो। अब मैं खुश हूँ!
आर रात को, डिनर से पहले और डिनर करते समय बिजली आती-जाती रही। हमने मोमबत्तियों की रोशनी में डिनर खाया। मैं कल्‍पना कर रहा हूँ: कितना रोमांटिक था ।
अच्‍छा, मेरी जान, अब मैं डायरी लिखना बन्‍द करता हूँ और बचे हुए समय में तुम्‍हारे खत का जवाब लिखूंगा। गुड नाईट!

मैं अपना प्यार - 21




*Nox at amor uinumque nihil moderabile suadent (Latin): रात और प्‍यार और शराब संयम नहीं सिखाते – ओविद 43BC-AD C 17
इक्‍कीसवाँ दिन
जनवरी ३१,१९८२

प्‍लीज, मुझसे यह न पूछो कि मैं तुमसे कितना प्‍यार करता हूँ। मैं जवाब नहीं दे सकता। प्‍यार नापा नहीं जा सकता। उसे तो महसूस करके ही जाँचा जा सकता है। तुम ये बात मानती हो ना? ठीक है। चलो, आज की डायरी शुरू करुँ।
कल महात्‍मा गॉधी को उनकी ३४वीं पुण्‍य-तिथि पर फूलों से श्रध्‍दांजली दी गई। यह दिन (३० जनवरी) शहीद दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। दिल्‍ली में राजघाट पर (हम वहाँ कई बार गए हैं) एक सादा-गंभीर समारोह आयोजित किया गया। होस्‍टेल में तो गॅाधी जी की ३४वीं पुण्‍य तिथि को मनाने के लिये कोई विशेष आयोजन नहीं किया गया। यह और दिनों की तरह ही एक दिन था। गॉधी जी की शहादत के बारे में कोई कुछ नहीं कह रहा था। मेरा खयाल है कि यह मृत-इतिहास का एक मामला है।
और आज खबर ये है कि दो अपराधियोः बिल्‍ला और रंगा को, जिनके दहशत भरे अपराध ने सभी भारतीयों को झकझोर दिया है, फाँसी पर चढा़या जाएगा। इन दोनों को गीता चोपडा़ और उसके भाई संजय की २६ अगस्‍त १९७८ को हुई हत्‍या के सिलसिले में मौत की सजा सुनाई गई थी। उनकी मौत की सजा भगवान बुद्व के इस वचन की पुष्टि करती हैः अच्‍छा करोगे तो अच्‍छा पाओगे, बुरा करोगे तो बुरा पाओगे (ये मेरा अपना अनुवाद है) सत्‍य!
अब तुम्‍हें जिन्‍दगी का दूसरा पहलू दिखाता हूँ। क्‍या तुम्‍हें मालूम है? आज इतवार है। मैंने उठकर काफी दिनों के बिना धुले कपड़े भिगोए। ब्रेकफास्‍ट के बाद मैं उन्‍हें धोने और सुखाने के लिये वापस आया। और अब मैं डायरी लिख रहा हूँ। मालूम नहीं कहाँ जाना है और क्‍या करना है। सबसे पहले खयाल जो दिल में आया, वह तुम्‍हारे बारे में था। तुम्‍हारी बेहद याद आ रही है। तुम यहाँ हो नहीं, मैं क्‍या करुँ? जब तुम मुझसे दूर हो तो यह डायरी मेरी सबसे अच्‍छी दोस्‍त बन सकती है। सुबह 9.30 बजे, जब मैं अखबार पढ़ रहा था, मेरे कमरे में एक लड़का आया। मैंने उससे ‘‘हैलो’’ कहा और उसे सोम्‍मार्ट से बातो में लगा दिया। उसने दावा किया कि उसने ‘‘हस्‍तरेखा विद्या’’ पढ़ी है – एक प्रसिद्ध ‘‘गुरू’’ से। सोम्‍मार्ट बडा़ उत्‍सुक हो गया। उसे अपनी हथेली फैला कर उस लड़के से पढ़ने के लिये कहा। हमारे स्‍व–घोषित हस्‍तरेखा विद्वान ने अपना काम किया।
मुझे ताज्‍जुब हुआ कि उसके अध्‍ययन में काफी दम था। सोम्‍मार्ट ने भी स्‍वीक़ति में अपना सिर हिलाया। अब, मैं अपनी जन्‍म कुंडली के प्रति उत्‍सुक हो गया। वह मेरी ओर मुड़ा और मेरी हथेली का अध्‍ययन करने लगा। उसके कुछ निष्‍कर्षों से तो मैं सन्‍तुष्‍ट था। मगर सबसे भयानक बात जो उसने बताई, वह ये थी कि मेरा चार शादियों का योग है; दो तो बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट हैं, मगर अन्‍य दो काफी संदिग्‍ध हैं – यह भी उसने कहा। मगर उसने मुझे यह कहकर सांत्‍वना दी कि यह निष्‍कर्ष हमेशा सही नहीं होते, इन्‍सान अपनी जिन्‍दगी सुधार सकता है, उसे सफल बना सकता है। यह हमारी इच्‍छा–शक्ति और दृढ़ इरादे पर निर्भर करता है।
इस घड़ी मैं यह जोड़ सकता हूँ : जहाँ चाह है, वहाँ राह है। इसमें कोई सन्‍देह नहीं कि मैं उसकी भविष्‍यवाणी पर या स्‍वयं अपनी जन्‍म कुण्‍डली पर भी विश्‍वास नहीं करता हूँ। मैं अपनी खुद की बनाई गई जिन्‍दगी पर और अपनी मान्‍यताओं पर भरोसा करता हूँ। अपनी जीवन-शैली मैं खुद बनाऊँगा और उसका एक शांत आत्‍मविश्‍वास, रचनात्‍मक साहस से पालन करुँगा, क्‍योंकि मैं एक विशेष व्‍यक्ति हूँ, और आम आदमियों की तरह मैं नहीं हो सकता, अगर चाहूँ तो भी नहीं हो सकता। क्‍या मैं अहंकारी प्रतीत हो रहा हूँ? उम्‍मीद है कि ऐसा नहीं होगा। अब मैं कुछ देर रूकूँगा और बाद में आगे लिखूँगा (हो सकता है, शाम को)।
गुड इविनिंग, माय स्‍वीटी ! मैंने तुमसे वादा किया था कि मैं अपनी डायरी पर शाम को वापस लौटूँगा। अब, नहाने के बाद, मैं अपना वादा पूरा कर रहा हूँ। मैं सुधर चुका हूँ, क्‍योंकि मैं तुम्‍हारे ‘‘निर्देशों’’ का कडा़ई से पालन कर रहा हूँ। ठीक है, उस रूकावट के बाद की घटनाऍ लिख रहा हूँ।
10 बजे से 12.30 बजे तक मैं पढ़ता रहा। गाने सुनने के लिये एक छोटा सा विश्राम लिया। एक बजे लंच खाया और अपने आपको तनाव मुक्‍त रखा, ‘‘कैरम’’ के दो गेम अपने स्‍वदेशी भाइयों के साथ खेलकर। 2 बजे से 4.30 बजे तक बिस्‍तर में था (मेरा प्रमुख शौक है - सोना)। जब तक मैं उठ नहीं गया, सोम्‍मार्ट सुबह से लेकर अब तक परीक्षा के लिये नोट्स पढ़ रहा था। प्रयूण केले लेकर आया। हमने केले खाए और तब वह सोम्‍मार्ट को चाय पीने और कुछ बात करने के लिये बाहर ले गया। कमरे में मैं अकेला रह गया। मैंने प्‍लेट और बर्तन धोया और फिर ऊपर छत पर कपड़े लेने गया जो मैंने सुबह सूखने के लिये फैलाए थे। नहाने से पहले थोड़ी कसरत की। जब मैं बिस्‍तर पर लेटा था मैंने पढा़ई से थोड़ी राहत पाने के लिये एक लेख पढा़ – ‘‘अपनी धारणाओं को बेचने के दस तरीके’’। अगर तुम इजाज़त दो तो मैं तुम्‍हें वे तरीके बता सकता हूँ।
दस तरीके – अपनी धारणाओं को बेचने केः
१.       अपनी धारणा की सावधानी से योजना बनाऍ,
२.       उसे भली भॉति समझाऍ;
३.       सही समय निश्चित करें,
४.       प्रस्‍तुतीकरण बढि़या हो,
५.       इसे विश्‍वसनीय बनाएँ,
६.       सही निर्णय लें,
७.       लोगों का सहभाग आमंत्रित करें,
८.       परखने का मौका दें,
९.       नयापन रखें
१०.   दृढ़ रहें
अगर परिस्थिति की माँग हो, तो ये हमारे लिए उपयोगी हो सकते हैं। कृपया मुझे ‘‘कोरा सिध्‍दान्‍तवादी’’ न समझ बैठना।
करीब-करीब डिनर का समय हो गया है। मैं डिनर के लिये थोडा़ विश्राम लेता हूँ। यह आज की डायरी का अन्‍त है। अगर तुम थक न गई हो तो प्‍लीज़ ‘‘जनवरी को अश्रुपूरित बिदाई’’ देख लेना – पन्‍ना पलट कर, जो मैं सोने से पहले लिखने वाला हूँ। बाय, मेरी जान।
जनवरी को अश्रुपूरित बिदाई
प्रिये! जनवरी बस खत्‍म हो रहा है। वक्‍त कैसे गुजर जाता है! क्‍या तुम्‍हें याद है कि हम दोनों एक दूसरे को कितने समय से जानते है? क्‍या तुम्‍हें याद है कि हम पहली बार कैसे मिले थे? हम खयालों में उस दिन को याद करें जब हम पहली बार मिले थे और कल्‍पना करें कि हमने वक़्त कैसे गुजारा। क्‍या हम अपनी जिन्‍दगी को और आधिक सार्थक तथा और अधिक संतुष्‍ट बना सकते हैं? ‘‘प्‍यार’’ लब्‍ज़ के हमारे लिये मायने क्‍या हैं? इन सभी सवालों पर गहराई से सोचना, प्‍लीज, और भविष्‍य के बारे में योजना बनाना। हम, निश्‍चय ही, अपनी जिन्‍दगी को बेहद सफल बनाएँगे।
मगर याद रखो। सार्थक बने रहने के लिये यह जरूरी है कि प्यार निरंतर बढता रहे, बडा़ होता रहे, परिपकव होता रहे। हमें अपने संबंधों में कई प्रकार की विविधता और जोश लाना होगा, जिससे यह हमेशा नया प्रतीत होता रहे, चाहे हम कितने ही बड़े हो जाएँ। लगभग उन्‍नीस शताब्दियों से पहले एक रोमन वैचारिक ने कहा था, ‘‘जब तक विविधता न हो, कोई भी खुशी चिरंतन नहीं रह सकती।’’ इसे हम हमेशा याद रखें, अपनी नियोजित जिन्‍दगी की राह पर बढ़ते रहें, और दुनिया के यथार्थ का सामना करते रहें। सफलता हमारा इंतजार कर रही है, बस हमारे ही कमरे के अगले कोने में। अलबिदा – जनवरी 82 – वह महीना जब मैं मन में आशा लिए अपने प्‍यार के वापस लौटने का इंतजार करता रहा।


मैं अपना प्यार - 20


*Da mini mille basia, deinde centum, Dein mille altera. Dein Secunda centum Deinde Usque altera, deinde centum (Latin): सौ के बदले मुझे हजा़र चुम्‍बन दो, और एक हजा़र, एक और सौ; फिर एक और हजार और फिर सौ और – होरेस 65-8 BC
बीसवाँ दिन
जनवरी ३०,१९८२

चलो, आज की अपनी डायरी तुम्‍हारे प्रति प्‍यार को वाक्‍य-विन्‍यास द्वारा प्रदर्शित करते हुए करता हूँ:
‘‘मैं तुमसे इतना प्‍यार करता हूँ जो पत्‍थर के दिल को भी पिघला दे, मगर वह एक जीवित, सांस लेती हुई औरत के दल को, जैसी कि तुम हो, पिघलाने के लिये काफी कम है।’’
यह वाक्‍य मेरे ‘‘प्रेम पर शोध-प्रबन्‍ध’’ का सार है, जो मैं ‘‘जीवन के विश्‍वविद्यालय’’ में ‘‘हयूमेनिटीस’’ में पी०एच०डी० के लिये प्रस्‍तुत करने जा रहा हूँ। मैंने तुम्‍हें अपना गाईड बनाने का निश्‍चय कर लिया है। मैं उसके साथ काम करने को तैयार हूँ और मुझे विश्‍वास है कि मेरा शोध-प्रबन्‍ध दो या तीन महीनों में पूरा हो जाएगा।
और अब, मेरी प्‍यारी, दिल्‍ली की अपनी जिन्‍दगी के बारे में।
कल रात मैं सो नहीं पाया और सुबह भारी दिमाग और थके शरीर से उठा। मानसिक तल्‍लीनता ने परेशानी, चिन्‍ता और अनिद्रा को जन्‍म दिया। मगर यह कोई जिन्‍दगी और मौत का मामला तो नहीं है। यदि हम मानसिक शांति वापस ला सकें या फिर ध्‍यान-धारणा में मगन हो जाएं तो इससे छुटकारा पा सकते है। मुझे इसकी फिकर नहीं है। यह तो मानव जीवन का एक प्रसंग है। ठीक है। आगे बढो।
सुबह 9.30 बजे मैं सोम्रांग के साथ कनाट प्‍लेस गया। वह चार्टर्ड बैंक में अपना ड्राफट भुनाना चाहता था और किताबों के प्रति अपनी क्षुधा को शांत करना चाहता था। और मेरा उद्देश्य था उसका मार्गदर्शक साथी बनना। जब तक वह अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, मैं बैंक से खिसक लिया जिससे दुकान की खिडकियों से किताबों को पास से देख सकूं। जब मैं बैंक वापस पहुँचा तो वह मेरी ओर लपका और बोलाः
‘‘तुमने एक असफल बैंक-डकैती के चश्‍मदीद ग्‍वाह बनने का मौका खो दिया’’
फिर वह हौले-हौले मुझे पूरी कहानी सुनाने लगाः
‘‘अलार्म-बेल गा रही थी। गार्ड ने अपने सिपाही को फायर करने के लिये तैयार रहने को कहा।’’
‘‘क्‍या हो रहा है?’’ मैंने उससे पूछा
‘‘काऊन्‍टर पर झगडा़ हो रहा था। वह इतना खतरनाक था कि हर कोई घबरा गया। मगर वह मजाक ही निकला।’’
‘‘क्‍या वास्‍‍तविक मजाक है।’’ मैंने कहा।
हम हँस पड़े और बाहर निकले। कनाट प्‍लेस पर हम किताब के शिकारियों की तरह एक दुकान से दूसरी दुकान में घूमते रहे। उसे एक भी किताब पसन्‍द नहीं आ रही थी। मैं तो सिर्फ किताबें छान रहा था। थकावट और भूख के कारण हमने ‘‘नॉक-आऊट’’ में खाना खाया। भारत में आने के बाद से उसका यह पहला मौका था, भारतीय मार्केट में जाने का, और तुम्‍हारे दिल्‍ली से जाने के बाद मेरा भी पहला मौका था। इसके बाद हमने मुन्‍शीराम पब्लिशर्स तक रिक्‍शा किराये पर लिया (कनाट पलेस से तीन रूपये)। किताबें चुनने में डेढ़ घंटा लग गया। उसने दो किताबें लीं और हम होस्‍टेल वापस आ गए। जब होस्‍टेल पहुँचा तो मेरे सिर में बेहद दर्द हो रहा था। मैंने दो घंटे बिस्‍तर में आराम किया। महेश आया, नहाने के लिये। मैं जागा, मगर सिर में दर्द अभी भी था। जब मैं यह लिख रहा था, डिनर की बेल बजने लगी। मैंने तय किया कि डायरी पूरी करके डिनर के लिये देर से जाऊँगा। अब मैं नहाने जा रहा हूँ, और फिर डिनर! आज रात को पढूँगा। तुम्‍हारे लिये मीठे सपने की कामना करता हूँ, मेरी जान।
पुनश्‍चः आज रात को सोम्‍मार्ट को जुकाम हैं। मैं चाहूँगा कि वह जल्‍दी सो जाए, लाईट बन्‍द हो गई है।





मैं अपना प्यार - 19



*Nunc iuvat in teneris dominae iacuisse lacertis (Latin): तुम्‍हारे प्‍यार की नर्म बाँहों में सोना कितना प्‍यारा है – ओविद 43BC-AD C.17
उन्‍नीसवाँ दिन
जनवरी २९,१९८२

आज के अखबार में मैंने दो कॉलम पढ़े। दोनों ही ‘‘औरतों’’ के बारे में हैं। एक है ‘‘गर्भपात कार्यक्रम’’ और दूसरा है ‘‘ब्रिटेन बलात्‍कारियों पर सख्‍त’’। विवरण के बारे में चर्चा नहीं करनी है, क्‍योंकि मैं अपराध-विशेषज्ञ नही हूँ। मगर एक संभाव्‍य-भाषाविद् होने के नाते मैं इन दोनों कॉलम्‍स में प्रयुक्‍त दिलचस्‍प शब्‍दावली बताता हूँ जिससे इन तकनीकी शब्‍दों के बारे में तुम्‍हें ज्ञान हो सकेः
गर्भपात कार्यक्रम
१.       MTP (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेन्‍सी – गर्भावस्‍था की चिकित्‍सकीय समाप्ति)
२.       अवैध गर्भपात
३.       स्‍त्री रोग विशेषज्ञ
४.       अनचाहा गर्भ
५.       वन्‍धीकरण
ब्रिटेन बलात्‍कारियों पर सख्‍त
१.       घटी हुई सजाएं
डेनमार्क में जो बलात्‍कारी बधियाकरण के ऑपरेशन के लिये सहमत हो जाते हैं उन्‍हें अक्सर कम सजा़ दी जाती है।
२.       बधियाकरण
३.       हिंस्‍त्र वृत्ति (औरतों के प्रति)
४.       बलात्‍कार का संकट
५.       बलात्‍कार या लैंगिक शोषण
६.       आन्‍तरिक जांच
७.       लैंगिक अपराध
८.       लैंगिक दुर्व्यवहार
९.       लैंगिक इतिहास
१०.   लैंगिक आक्रमण (बलात्‍कार)
११.   जेल की सजा
अदालत ने बलात्‍कारी को कम से कम दो वर्ष के कारागार की सजा सुनाई।
मुझे अत्‍यन्‍त दुख है कि दूसरे कॉलम में लैंगिक शब्‍द इतनी बार आया है। मेरा इरादा, बेशक, वीभत्‍स बनाने का नहीं, बल्कि प्रचार करने का है; जोर देने का नहीं, बल्कि अवगत कराने का है। क्‍या मुझे समझ सकती हो? क्‍या मैं अपने आप को समझा पा रहा हूँ? यदि ‘‘हाँ’’, तो मुझे कुछ और आगे जाने दो ‘‘लैंगिक विज्ञान’’ के बारे में नहीं, बल्कि ‘‘डायरी-विज्ञान’’ के बारे में (‘‘डायरी-विज्ञान’’ शब्‍द को मैंने ही अभी-अभी बनाया है और इसे किसी डिक्‍शनरी में नहीं देखा जा सकता)।
आज मैं बहुत सक्रिय नहीं हूँ। आधा दिन तो बिस्‍तर में ही गुजर गया। सुबह मैं हमारी डिपार्टमेन्‍ट लाइब्रेरी गया “Major Syntactic Structure of English” (by Stockwell et al) [अंग्रेजी की मुख्‍य वाक्‍य-संरचना – स्‍टाकवेल द्वारा लिखित] नामक पुस्‍तक लेने डा० ए०के०सिन्‍हा ने किताब की सिफारिश की है। किताब शांति (एक मणिपुरी लडकी) ने ली हुई है। जब मैं कल और परसों उससे मिला था तो मैंने उसे किताब वापस लौटाने को कहा था। मगर उसने अभी तक लौटाई नहीं है। शायद उसने दोपहर में लौटाई होगी (मेरा खयाल है)। मगर इस किताब के बदले मैंने कुछ और किताबें लीं। ये मुझे कुछ दिनों तक व्‍यस्‍त रखेंगी, जब तक कि मेरी मनचाही किताब मुझे मिल नहीं जाती। कैम्‍पस के चौराहे पर दो भारतीय लड़कियों ने जो एम०ए० लिंग्विस्टिक्‍स कर रही हैं मुझे अमरूद दिया। मैंने सिर्फ इतना कहाः
‘‘धन्‍यवाद, मुझे अच्‍छा लगा।’’
इसके बाद मैं होस्‍टेल की ओर चला। एक नेपाली लड़का, जो मेरा सहपाठी है मुझे पोस्‍ट ऑफिस में मिला। मैंने उसे अपने कमरे में आने की दावत दी और उसे सिर्फ एक ग्‍लास पानी पेश किया। देखो, मेरे कमरे में किसी का स्‍वागत करने के लिये कुछ और है ही नहीं! मैंने उसे अपने साथ लंच करने के लिये कहा, मगर वह दावत कबूल नहीं कर सका क्‍योंकि उसे 12.30 बजे आल इंडिया रेडियो पर नेपाली ड्रामे में भाग लेना था।
लंच के बाद का समय मेरा था। अपनी ही इजाजत से मैं बिस्‍तर में लेटा रहा। यदि पढा़ई में मन नहीं लग रहा हो तो सोने से ज्‍यादा बेहतर कोई और काम नहीं है। मैंने तीन घंटों तक तान दी। सोम्‍मार्ट कमरे में नहीं है। वह लाइब्रेरी में पढ़ने के लिये गया है। उसे पूछते हुए सोम्रांग दो बार आया था। प्रयून भी इसी काम के लिये एक बार आया था। सोम्रांग आजकल मार्केट की ‘‘दुर्लभ चीज’’ हो गया है। वह गरमा-गरम पकौडों की तरह बिक रहा है! हर कोई उसके पास आता है, उसका भला-साथ पाने को। ऐसा लगता है कि वह लोकप्रिय इन्‍सान है। वह खुद तकलीफ उठाकर भी औरों का मनोरंजन करता है। एक महान आदमी! आज उसके लिए एक चिट्ठी आई है, कहने में अफ़सोस होता है, कि मेरे लिये एक भी नहीं है। इस बात को मैं यहीं छोड़ देता हूँ, वर्ना इससे मेरे शांत ‘‘दिखाई दे रहे’’ मस्तिष्‍क में खलबली मच जाएगी। हर हाल में, तुम्‍हारे वापस आने तक तो मैं इंतजार कर लूँगा। बिदा, मेरी प्‍यारी।
पुनश्‍चः -
डिनर से पहले पोलैण्‍ड के संकट पर कॉमन रूम में बहस हो रही थी। वक्‍ता पोलैण्‍ड के कामगारों का पक्ष ले रहा था, बाहरी दखलंदाजी की निंदा कर रहा था, सत्‍ताधारी वर्ग की भी निंदा कर रहा था और उसने बताया कि आगामी वसन्‍त में आंदोलन फिर से शुरू हो जाएगा।
मुझे इतनी भूख लगी थी कि मैं डिनर का इंतजा़र न कर सका। मैं होस्‍टेल के कैन्‍टीन में ऑम्‍लेट और एक कप चाय के लिये गया। मैंने हौले से चाय की चुस्‍की ली और हमारे गुजरे जमाने की घटनाओं के बारे में गहराई से सोचने लगा। समुन्‍दर की एक लहर की तरह प्रसन्‍नता ने मुझे सराबोर कर दिया। एक पल बाद मैं अपने गहरे विचारों से वापस लौटा और कैन्‍टीन में ऊपर जाकर अपना एक नया खाता खोला। इसमें लिखा थाः ‘‘2.80 पैसे चुकाना है!’’




मैं अपना प्यार for Kindle

  अपना प्यार मैं दिल्ली में छोड़ आया   एक थाई नौजवान की ३० दिन की डायरी जो विदेश में बुरी तरह प्‍यार में पागल था                ...