बुधवार, 23 मई 2018

मैं अपना प्यार - 13




*Non tibia b ancilla est incipienda venus (Latin): जब प्रेम प्रदर्शित करते हो, तो नौकरानी से आरंभ मत करो Ovid 43 BC – AD C.17
तेरहवाँ दिन
जनवरी २३,१९८२

कल की रात मेरे लिये बड़ी खतरनाक थी। मैंने कितनी ही कोशिश क्‍यों न की, सो न पाया। मेरा दिमाग एक युद्ध का मैदान होता जा रहा  जहॉ मैं युद्ध जीत सकता हूँ मगर लडा़ई हार जाऊँगा। ऐसा कहीं इसलिये तो नहीं, कि मैंने जिन्‍दगी को काफी हलके से लिया, इसीलिये मैं दुखी हो गया? अंततः मुझे अपने आप को ही ज़िम्‍मेदार मानना होगा।
और अब, मेरी जान, आज के बारे में। सुबह 11.30 बजे मेरे कमरे में एक दारूण घटना घटी। जब मैं आधी नींद में था तो मुझे महसूस हुआ कि कमरे में कोई चीज घुसाई गई है। मैंने फौरन पलटकर उस ओर देखा। एक खत दरवाजे के नीचे पडा़ था। मैं विस्‍तर से कूदा, उसे उठाया, पानेवाले का पता पढा़। मगर वह मेरे लिये नहीं था, वह मेरे रूप-मेट सोम्‍मार्ट के लिये था। मुझ पर वज्राघात हो गया। बारिश नहीं, बल्कि झडी़ लग जाती है! भगवान ही जाने, तुम्‍हारा खत मुझे कब मिलेगा? मैं जिन्‍दगी के हर क्षेत्र में हारा ही हूँ। क्‍या मैं हारने के लिये ही पैदा हुआ था? क्‍या मुझे तुम्‍हारे खत की उम्‍मीद बिल्‍कुल छोड़ देनी चाहिए? इन निराशाजनक सवालों से मुझे जुझना है अपने अस्तित्‍व की रक्षा के लिये। खाने के फौरन बाद मैं पोस्‍ट ऑफिस गया। कुछ तो करना होगा, वर्ना मेरा दिल टुकडे-टुकडे हो जाएगा। मैंने एक छोटा-सा तीन पंक्तियों का पत्र तुम्‍हें भेज दिया। इससे ज्‍यादा लिखने की हिम्‍मत ही नहीं हुई। मैं बस इतना बताना चाहता था कि हर चीज की एक सीमा होती है और हरेक के अपने-अपने दुख-दर्द होते हैं। इसके बाद मैंने काफी हल्‍का महसूस किया और मैं आर्टस फैकल्‍टी की लायब्रेरी चला गया, किताब वापस करने जिसकी जमा करने की तारीख दो दिन पहले गुजर चुकी थी। सौभाग्‍य से मुझे जुर्माना नहीं देना पडा़। अकेलापन और परित्‍यक्‍त महसूस करते हुए में अचानक च्‍युएन के पास गया। वह अपने कमरे में नहीं था। मैंने उसके लिये मेसेज छोडा़ और अपने कमरे पर वापस आ गया। मैंने एक आदमी को तिकोने लॉन में (तुम्‍हारे होस्टेल के पास) पेड़ के नीचे लेटे देखा। वह आराम जैसा लग रहा था, मैं धीरे से, सावधानी से उस ओर गया देखने के लिये कि क्‍या वह आराम था? हाँ, वही तो है! आराम! उसे थोडा़ आश्‍चर्य हुआ कि मैंने उसे पहचान लिया था।
असल में, वह इम्तिहान के लिये कुछ नोट्स पढ़ रहा था और उसकी आँख लगने ही वाली थी, जब मैं उसके पास पहुँचा। मैं भी पीठ के बल लेट गया और हमने दस मिनट तक बातें कीं फिर, मैं खुद ही सो गया। एक ही डाल के पंछी! मैं 4.30 बजे उठा और वापस होस्‍टल की ओर चल पडा़। मैं होस्‍टेल का रास्‍ता पार भी न कर पाया था कि मैंने पोस्‍टमेन को होस्‍टेल के गेट से बाहर निकलते देखा। मेरा दिल बुरी तरह धड़कने लगा। मैं भागकर होस्‍टल में घुसा यह देखने के लिये कि तुम्‍हारा कोई खत तो नहीं आया। उसका कोई नामो-निशान नहीं! मेरी मायूसी को बयान नहीं कर सकता। मेरी जान, तुम मेरे प्रति बड़ी ठण्‍डी और निष्‍ठुर हो।
आज रात खाने में हमें फिश-करी दी गई। भीड बहुत ज्‍यादा थी। मुझे अपने लिये और सोम्‍मार्ट के लिये एक मेज़ लगानी पड़ी। ये एक तरह की सेल्‍फ-सर्विस थी। चम्‍मच पर्याप्‍त नहीं थे। हमने हाथ से खाया और उसका लुत्फ़ उठाया। यह मुझे दूर-दराज के एक गाँव की याद दिला गया जहाँ मैंने अपना बचपन इसी तरह से बिताया था – मेरे माता-पिता और अन्‍य गाँव वालों के साथ। मैंने जल्‍दी-जल्‍दी डिनर खत्‍म किया और अपने कमरे में वापस आ गया। मेरे दिमाग पर फिर निराशा छा गई। मैंने अपने डबडबाए चेहरे को रजाई में ढँक लिया आँसू मेरे गालों पर बह रहे थे। सच कहूँ, मैं आँसू रोक नहीं पाता। मैं एक भावना प्रधान लड़का हूँ जो एक झूठे, गुलाबी सपने में रहता है। हाँ, मैं एक बच्‍चे की तरह चाँद के लिये रो रहा था। सोम्‍मार्ट को मेरी खामोशी से बडा़ आश्‍चर्य हुआ। मैं उसे बेचैन नहीं करना चाहता था, और फिर मैंने वॉयस ऑफ अमेरिका रेडियो स्‍टेशन लगा दिया जिससे चुप्‍पी टूट जाए और उसका ध्‍यान मुझसे हट जाए। मैं बड़े ध्‍यान से रेडियो सुन रहा था, निराशा छँटने लगी थी। मैं संभल गया था। अब मैं फिर से काम करने वाला हूँ। बेकार की बातों पर कितना वक्‍त बरबाद हो गया, विगत के बारे में सोचने पर, भविष्‍य की चिन्‍ता करने में कितना समय खो दिया। जिन्‍दगी में सिर्फ फूल ही फूल तो नहीं हैं, न ! संक्षेप में बर्बाद हुए समय को पूरा करने के लिए मैं काम करने वाला हूँ। मगर, प्‍लीज़ भूलना मत, कि मैं अभी भी तुम्‍हें अपनी बाँहों में देखना चाहता हूँ। जितनी जल्‍दी हो, उतना ही बेहतर!
प्‍यार, पागलपन की हद तक!




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