सोमवार, 21 मई 2018

मैं अपना प्यार - 03




*Cum ames non sepias aut cum sepias non ames (Latin): जब तुम प्‍यार करते हो तो सोच नहीं सकते, और जब तुम सोचते हो तो तुम प्‍यार नहीं कर सकते। प्‍यूबिलियस साइरस (fl.1st Century BC)
तीसरा दिन
जनवरी १३,१९८२

तुम्‍हारे बगैर जिन्‍दगी जीने लायक ही नहीं है। तुम वहाँ थाईलैण्‍ड में क्‍या कर रही हो? मेरा दिमाग इतना भरा हुआ है कि मैं किसी भी चीज पर ध्‍यान नहीं दे सकता।
कल रात को मेरठ से दो थाई दोस्‍त मेरी दिनचर्या में खलल डालने आ गए। उनकी सहूलियत के लिये सोम्‍मार्ट सामरोंग के कमरे में सोने चला गया। मैं सुबह के तीन बजे तक कमरे में ही रहा, मगर आँख ही नहीं लगी, इसलिये मैं नीचे अतिथि-लाऊन्ज में सोने के लिये आ गया। वहाँ मुझे बड़ी गहरी नींद आई-मगर सिर्फ चार घंटे। चौकीदार ने आठ बजे मेरा मीठा सपना तोड़ दिया। जैसे ही मैंने बेकार का नाश्‍ता किया मैं वैसे ही, आधी नींद में अपने कमरे में चला गया ताकि कुछ देर और सो सकूँ। मैं बारह बजे खाना खाने के लिये उठा। इसके बाद करीब-करीब पूरा दिन मैं उन दोस्‍तों में ही व्‍यस्‍त रहा। यह व्‍यर्थ है, क्‍योंकि मेरा ज्‍यादातर समय छोटी-छोटी बातों में ही खर्च हो गया। तुमने अपनी जो थीसिस मि० कश्‍यप के लिये छोटी थी उसका मैं कुछ भी न कर सका; वह अभी भी मेरे पास है। मि० अग्रवाल वाला खत भी अभी तक मेरी स्‍टडी-टेबल पर पड़ा है। ये वाकई में समय की बरबादी है।       
शाम को चू और ओने अपने चम्‍मच माँगने आए जो उन्‍होंने उस दिन मेरे कमरे में छोड़ दिये थे जब हमने साथ में लंच किया था। वे आए तो मैं नहाने ही जा रहा था। इसके कुछ ही मिनट बाद मुकुल कमरे में आया, हमने कुछ देर बातें कीं और होस्टेल के कैन्‍टीन में स्‍नैक्‍स के लिए चले गए। यह था मेरे बर्बाद-दिन का अन्‍त।
मैं तुम्‍हें बताना ही भूल गया कि मेरी सुबह की नींद में मैंने एक डरावना सपना देखा कि मेरी माँ का निधन हो गया! इतने भयानक सपने को मैं बर्दाश्‍त नहीं कर सकता। मालूम नहीं कि इस सपने का सही-सही मतलब क्‍या होगा। कुछ लोग यह विश्‍वास करते हैं कि सपने में जो दिखे, उसका उल्‍टा परिणाम होता है। इससे मुझे कुछ ढाढ़स बंधा – मतलब ये कि मेरी माँ जिन्‍दा रहेगी। मगर हम ऐसा क्‍यों मानते है? कारण मेरी समझ से परे है। माँ, तुम खूब-खूब जियो! भगवान, मेरी माँ पर दया करना।
ओह, मेरी जिन्‍दगी, मेरा प्‍यार, तुम मेरे पास वापस कब आओगी? क्‍या तुम्‍हें मालूम है कि मुझे तुम्‍हारी याद कितनी सताती है? अब डिनर का वक्‍त हो गया है, इसलिये कुछ देर के लिये तुम्‍हें अलबिदा कहूँगा। आज रात को मैं भगवान से प्रार्थना करुँगा कि तुम अपने माता-पिता के साथ खुशी से रहो और जल्‍दी ही मेरे पास वापस आ जाओ।
अलबिदा, प्‍यारी!



मैं अपना प्यार - 02




*Homo totiens moritur quotiens amittil suos (Latin): जब तुम अपने प्रिय व्‍यक्ति को खो देते हो, तो तुम्‍हारा कुछ हिस्‍सा मर जाता है – प्‍यूबिलियस साइरस (fl.1st Century BC)
दूसरा दिन
जनवरी १२,१९८२

आज पहला दिन है तुम्‍हारे बगैर इस तेजी से बदलती जिन्‍दगी की वास्‍तविकताओं का सामना करने का। ये न तो अन्‍त का आरंभ है और न ही आरंभ का अन्‍त। ये बिल्‍कुल विपरीत है – आरंभ का आरंभ। हमारी जिन्‍दगियों के क्षितिज आगे चलकर हमें एक दूसरे के निकट ले आएंगे, उम्‍मीद करता हूँ।
सुबह मैं देर से उठा, रात भर डरावने सपने देखने से सिर भारी था। मेस में नाश्‍ते के लिये कुछ नहीं बचा था क्‍योंकि मैं खूब देरी से उठा था। मैंने होस्‍टल में महीने की फीस के १९९ रू० भर दिये, और इसके बाद ‍सेन्‍ट्रल लाइब्रेरी की ओर चल पड़ा अपनी अच्‍छी दोस्‍त किरण को किताब लौटाने, जिसकी ड्यू-डेट कब की निकल चुकी थी। कोई फ़ाईन नहीं लगा। बड़ी मेहेरबानी की उसने! मैंने उससे बाय! कहा कृतज्ञता की गहरी भावना से, फिर मैं लाइब्रेरी साइन्‍स डिपार्टमेन्‍ट गया।
वहाँ, संयोगवश, लिंग्‍विस्‍टिक्‍स की पुरानी सह-छात्रा से मिला जो आजकल अच्‍छी नौकरी की संभावना के लिये लाइब्रेरी साइन्‍स के कुछ कोर्स कर रही है। वह बड़े अच्‍छे स्‍वभाव की है, उसने एक पल रूककर मुझसे बात की। मैं मि० बासित का इंतजार कर रहा था। अपनी क्‍लास खत्‍म करने के बाद वे अपने कमरे में आए। मैंने दरवाजा खटखटाया और अन्‍दर आने की इजाज़त मांगी।
उन्‍होंने मुस्‍कुरा कर मुझसे बैठनेके लिए कहा। मैंने उन्‍हें अपने आने का मकसद बताया और तुम्‍हारा पत्र तथा तुम्‍हारी थीसिस का तीसरा चैप्‍टर दे दिया। उन्‍होंने पत्र पर नज़र दौड़ाई और मुझसे मेरा पता पूछा जिससे वह मुझसे संपर्क कर सकें। थोड़ी सी भूख लगी थी, मैंने एक कप कॉफी पी स्‍नैक्‍स के साथ यूनिवर्सिटी कैन्‍टीन में।
पी०जी० मेन्‍स होस्‍टल में वापस लौटते हुए मैं जुबिली एकस्‍टेन्‍शन हॉल में गया यह देखने के लिये कि आराम वहाँ है या नहीं। वह बाहर गया था, मुझसे किसी ने कहा कि वह आज ही शाम को भिक्षु-जीवन छोड़ रहा है। किसी महिला की आवाज़ सुनकर मैं खयालों से बाहर आया – ये शुक्ला थी, मेरी कनिष्‍ठ-छात्रा लिंग्‍विस्‍टिक्‍स की – हम कुछ देर बातें करते रहें। शाम को वुथिपोंग मातमी चेहरा लिये मेरे कमरे में आया। उसने अपने एक-तरफ़ा प्‍यार के बारे में दिल खोल कर रख दिया। मुझे उसके बारे में बहुत दुख हो रहा था, मैंने उसे कुछ सुझाव दिये मगर उसे वे ठीक नहीं लगे। इसलिए मैंने अपनी ओर से उसका हौसला बढ़ाने की पूरी कोशिश की, और वह संतुष्‍ट होकर मेरे कमरे से गया। उसे एक बार फिर दुनिया जीने के लायक लगने लगी; मैं खुश था कि मैं उसके कुछ तो काम आ सका।
जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं अभी भी अनिश्चितता की दुनिया में हूँ। मेरी जिन्‍दगी का रास्‍ता कई सारे संयोगों और परिस्थि‍तियों पर निर्भर करता है। जिन्‍दगी ऐसी ही होती है! इन्‍सान को हर क्षण सम्‍पूर्णता से जीना चाहिए। क्‍या सभी इस तथ्‍य को जानते और स्‍वीकार करते है?







मैं अपना प्यार - 01



मेरी सर्वाधिक प्रिय कविता

अगर मेरे बस में होता,
तो मैं जीवन का हर दिन खुशियों से
भर देता।
मैं किसी को आहत न करता,
किसी को नाराज न करता;
हर कष्‍ट को कम करता,
और कृतज्ञता की शुभाशीषों का आनन्‍द उठाता।
अपना दोस्‍त बुद्धिमानों से चुनता
और पत्‍नी सदाचारियों में से;
और इसलिये धोखे और निष्‍ठुरता के
खतरे से बचा रहता।
(सैम्‍युअल जॉन्‍सनः रास्‍सेलास)



 *Verba dat onmis amor reperitque alimenta morando (Latin): प्‍यार प्रदान करता है शब्‍द और निर्वाह करता है विलम्‍ब पर।


पहला दिन
जनवरी ११,१९८२

अब तक तो TG ९३५ पालम एअरपोर्ट (अब इंदिरा गांधी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय एअरपोर्ट) से उड़ान भर चुकी होगी, बैंकाक के लिये – तुम्‍हारे गंतव्‍य की ओर।
हमने प्रातः १.३० मिनट पर एक दूसरे से बिदा ली, यही वो आखिरी पल था जो हमने साथ बिताया। तुम चली गई – मुझे ठिठुरते एकान्‍त और नीली तनहाई में छोड़कर। मेरी जिन्‍दगी, दुख होता है कहने में, फिर से दुःखों के गहरे समन्‍दर में लौट आई है। जिन्‍दगी कितनी क्रूर है। मैं तुम्‍हें फिर से कब देखूंगा?
अब तुम थाईलैण्‍ड में हो, मगर मैं अभी भी भारत में हूँ, विभिन्‍नताओं और विरोधाभासों की धरती पर हमारे जिस्‍म एक दूसरे से जुदा हैं मगर मुझे उम्‍मीद है कि हमारे दिल एक ही हैं। यह सोचकर मैं परेशान हो जाता हूँ कि क्‍या तुम अब भी मुझसे प्‍यार करती हो और तुम्‍हें मेरी जरूरत है। जीवन का सत्‍य तो यह है कि एक न एक दिन हमें जुदा होना ही है। अपने से दूर जाते हुए तुम्‍हें मैं न रोक सकूंगा। तुम तुम हो और मैं मैं हूँ। असल में हम दो अलग-अलग व्‍यक्तित्‍व हैं और प्रकृति के नियमों से शासित है। थाईलैण्‍ड पहुँचने पर भगवान तुम पर कृपा करे।
मगर याद रखना, मेरी प्‍यारी, कि तुम चाहे जो भी करो, और जहाँ भी जाओ मेरे खून और मेरी रूह में तुम हमेशा रहोगी। स्‍थल और समय हमें जुदा तो कर सकते हैं, मगर मेरे वफ़ादार दिल में तुम हमेशा रहोगी। और मैं तुमसे वादा करता हूँ जिन्‍दगी भर के लिये प्रेम और स्‍नेह का।
























मैं अपना प्यार.... कवर




अपना प्यार
मैं दिल्ली में छोड़ आया

एक थाई नौजवान की ३० दिन की डायरी जो विदेश में बुरी तरह प्‍यार में पागल था







लेखक

धीराविट पी० नात्थागार्न

हिन्‍दी अनुवाद
ए० चारूमति रामदास




अपना प्‍यार मैं दिल्‍ली में छोड़ आया

लेखकः धीराविट पी० नात्‍थागार्न

अनुवादः ए० चारूमति रामदास


सर्वाधिकार सुरक्षित। इस पुस्‍तक का कोई भी भाग किसी भी रूप में प्रकाशक की अनुमति के बिना पुनर्निर्मित, संकलित अथवा प्रेषित न किया जाये।
टिप्‍पणीः- मैं अपने सर्वोत्‍तम अमेरिकन मित्र कलिफ स्‍लोन को धन्‍यवाद देता हुँ जिन्होंने अंग्रेज़ी में लिखी मूल पांडुलिपि को सुधारने में सहायता की।
मैं प्रीतम कुमार का आभारी हूँ जिन्होंने हिन्दी अनुवाद का बड़ी योग्यता से कम्प्यूटरीकरण किया।
इस डायरी में लिखे सभी नाम और उपनाम वास्‍तविक हैं, परन्‍तु उनके नामों, उपनामों, सम्‍मानवाचक शब्‍दों, को हटा दिया गया है जिससे वे आम हो जाएँ।
मैं उन सभी का क्षमाप्रार्थी हूँ जिनके नाम इस डायरी में प्रयुक्‍त हुए हैं; मैं सिर्फ घटनाओं और स्‍थलों को ताजा और सजीव रखना चाहता हूँ और मैं इस पेपरबैक को समर्पित करता हूँ दिल्‍ली के अपने सभी मित्रों और शिक्षकों कों।







मैं अपना प्यार for Kindle

  अपना प्यार मैं दिल्ली में छोड़ आया   एक थाई नौजवान की ३० दिन की डायरी जो विदेश में बुरी तरह प्‍यार में पागल था                ...