मंगलवार, 22 मई 2018

मैं अपना प्यार - 09



*Quarebam quid Amarem (Latin): मुझे किसी की तलाश है प्‍यार करने के लिये। एनन 9th Century AD
नौंवा दिन
जनवरी १९,१९८२

आज देश व्यापी हड़ताल का दिन है सरकार द्वारा घोषित हड़ताल-विरोधी कानून के खिलाफ। यह कानून सभी प्रकार की हड़तालों को प्रतिबांधित करेगा और गवर्नर को यह अधिकार प्रदान करेगा कि जिससे राष्‍ट्रीय शांति के लिये खतरनाक या अहितकर व्‍यक्ति को अदालत में मुकदमा चलाए बिना गिरफ़तार किया जा सके। कर्मचारियोंके लिये पूरे दिन छुट्टी है। इस आखिल-भार‍तीय हड़ताल की योजना आठ ट्रेड-यूनियनों ने बनाई है, जिन्‍होंने एक अंतिम संयुक्‍त अपील जारी करके मजदूरों को आज काम बन्‍द करने के लिये कहा है। जिन ट्रेड-यूनियनों ने हड़ताल प्रायोजित की है उनमें ऑल इंडिया ट्रेड-यूनियन काँग्रेस (INTUC), सेन्‍टर ऑफ इंडियन ट्रेड-यूनियन (CITU) और भारतीय मजदूर संघ शामिल हैं। हड़ताल, जो सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ है इन्‍टक द्वारा प्रस्‍तावित है और कई छोटी यूनियनों ने इसका समर्थन किया है। मगर रेलवे और टेलिग्राफ और आवश्‍यक सेवाओं को हड़ताल से बाहर रखा गया है; हड़ताल का मुख्‍य असर सार्वजनिक उपक्रमों और निजी उद्योगों पर पड़ेगा।
दिल्‍ली यूनिवर्सिटी ने कक्षाएँ निरस्‍त कर दी हैं। दिल्‍ली के प्रमुख बाज़ार बन्‍द रहेंगे। राज्‍य एवं केन्‍द्र सरकार ने शांति बनाए रखने और उद्योगों के चलते रहने के लिये कई उपाय किये हैं। आवश्‍यक सेवा केन्‍द्रों पर पुलिस वाले और सादे कपड़ो में पुलिसकर्मी तैनात हैं। भारत बन्‍द के दौरान कई असामाजिक तत्‍वों को गिरफ़तार किया गया है। दिल्‍ली में ४२ लोग गिरफ्तार किये गए हैं। यह खबर UNI ने दी हैं।
जा़हिर है, मैं आज कमरे में ही रहना पसन्‍द करुँगा, रेडियो सुनूंगा, किताबें पढॅूगा, मैगजिन्‍स छानूंगा - समय बिताने के लियें। ब्‍लैक कॉफी अभी भी मेरी अच्‍छी दोस्‍त है। कोशिश कर रहा हूँ कि रोजमर्रा की जिन्‍दगी मुझे बेहद बोर न कर दे। सुबह देर से नहाया। सोचो, ये तुम्‍हारी उम्‍मीद के कितना खिलाफ है कि मैं नहाऊँ। मगर मैंने ऐसा किया। तुम मेरे अच्‍छे व्‍यवहार से संतुष्‍ट हो? आज लंच नहीं मिला क्‍योंकि ऑल-इंडिया स्‍ट्राईक है।
मगर लंच-पैकेट बॅाट गये। 11 बजे से 6 बजे तक मुझे तुम्‍हारे खत का इंतजार था, मगर फिर से निराशा ही हाथ लगी। थाईलैण्‍ड जाकर तुम्‍हें एक हफ्ता हो गया...तुम्‍हारे बारे में बिना किसी खबर के। मेरे लिये यह बड़ी निराशाजनक बात है। तुम्‍हें क्‍या हो गया है? क्‍या तुम नहीं जानतीं कि तुम्‍हारे खत के लिये मैं मर रहा हूँ? क्‍या तुम मुझे भूल गई हो? क्‍या मैं इतनी आसानी से भुलाया जा सकता हूँ?
ये सारे ख़याल जबरन दिमाग में घुस आते हैं। लंच टाईम के बाद मैं अपने कमरे में गया और किताबो तथा रेडियो से दिल बहलाने की कोशिश की। पढ़ते-पढ़ते और सुनते-सुनते मेरी आँख लग गई। पाँच बजे मुकुल आया मुझे उठाने। हमने एक दूसरे को विश किया और अपने काम की प्रगति के बारे में बातें करने लगे, ऑल-इंडिया स्‍ट्राईक के बारे में भी बातें कीं। मुकुल एक सच्‍चा दोस्‍त है जो जरूरत के वक्‍़त काम आता है। जब भी मैं बेचैन होता हूँ, वह मेरी मदद के लिये आ जाता है। वह इस मान्‍यता में फिट नहीं बैठता कि ‘‘भारतीय स्‍वार्थी और शोषण करने वाले होते हैं।’’ उसने मुझसे पूछाः
‘‘तुम्‍हारी गर्ल-फ्रेन्‍ड कैसी है?’’
‘‘वह अच्‍छी है,’’ मैंने कहा, ‘‘धन्‍यवाद!’’
मैंने उसे नहीं बताया कि तुम थाईलैण्‍ड गई हो। मैंने इसे हमेशा गुप्‍त ही रखा। उसे इस बारे में शक भी नहीं हुआ। हम एक विषय से दूसरे विषय पर बातें करते रहेः पढ़ाई,धर्म,राजनीति इत्‍यादि। हम गहराई में नहीं गए क्‍योंकि हमें इन विषयों का पर्याप्‍त ज्ञान नहीं था। यह काम हमने विशेषज्ञों के लिये छोड़ दिया। मैंने उसके लिये ब्‍लैक कॉफी बनाई और, जाहिर है, मेरे लिए भी। फिर हम आराम से मिलने जुबिली एक्‍स्‍टेन्‍शन हॉल गये। वह वहाँ नहीं था क्‍योंकि वह हाल ही में नया राऊण्‍ड़ अबाउट (एजेन्‍ट) बना है, यानी वह व्‍यक्ति जो घूम-घूम कर लोगों से ऑर्डर लेता है और उन्‍हें सामान लाकर देता है। बेचारा! हम आगे CIE तक गये इस उम्‍मीद में कि वह वहाँ मिल जाए।
 हमे ताज्‍जुब हुआ यह देखकर कि वह अचान चुएन के कमरे में था। रेवरेण्‍ड चावारा और प्राचक भी वहाँ थें। एक ही किस्‍म के पंछी, जिन्‍हें एक दूसरे का साथ अच्‍छा लगता है। उनके लिये दोस्‍ती दुनिया की हर दौलत से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है। मैं शत-प्रतिशत सहमत हूँ। कुछ देर बाद हम हॉस्‍टेल के कॉमन रूम में पिंग-पाँग खेलने लाए। खेल से लम्‍बे समय तक दूर रहने के कारण मैं लगभग हर गेम हारता गया। आराम ने काफ़ी तरक्‍की कर ली है, आयान चुएन अपने पहले ही स्‍तर पर है, प्राचक और चावारा बस देख रहे थे।
मैं हॉस्‍टेल गया स्‍पेशल डिनर के लिये। सोम्‍मार्ट अभी तक वापस नहीं लौटा था। मैं नहाने की सोच रहा था, मगर ये सोचकर इरादा बदल दिया कि मैं डिनर के लिये लेट हो जाऊँगा। मैंने नहाने का कार्यक्रम कल तक के लिये स्‍थगित कर दिया। कभी मैं सोचता हूँ कि ‘‘टाल-मटोल करना समय की चोरी करने जैसा है,’’ कभी मैं ऐसा नहीं सोचता। उम्‍मीद है तुम इसके लिए मुझे माफ करोगी।
शाम को अपने प्‍यार की समस्‍याओं के बारे में बात करने वुथिपोंग मेरे पास नहीं आया, शायद प्‍यार ठंडा पड़ रहा है। मैं सोचता हूँ कि वह एक चिर निराश प्रेमी है। मुबारक हो! सोम्‍मार्ट अपनी पढा़ई के बारे में संजीदा है। रात को हम दोनों ने एक दूसरे से बहुत कम बातें कीं। वजह मामूली हैः हम एक दूसरे के मामलों में दखल नहीं देते। मुझे यह अच्‍छा लगता है। सबसे पहली चीज है पढा़ई - बाकी बातें बाद में। सम्रोंग हमारे पास नियमित रूप से आता है। प्राचक अंतर्मुख है। मुझे उसका अकेलापन अच्‍छा लगता है और मैं कभी उसकी जिन्‍दगी में दखल नहीं देता। उसे अपने एकान्‍त का आनन्‍द उठाने दो।
दिल्‍ली में जीवन आज सामान्‍य है। हालात आम तौर पर काबू में हैं। मौसम अभी भी ठण्‍डा है, कोहरा है, मगर हवाएँ नहीं चल रही हैं। चीजें और घटनाएँ तो आती जाती रहती हैं, मगर तुम मेरे दिल में हमेशा हो। तो ये आज के मेरे अंतिम शब्‍द हैं, क्‍योंकि आज की डायरी हम दोनों के बीच हौले से बन्‍द हो रही है। अलबिदा, खुश रहो ... ओह, चलते-चलते, मैं तुमसे प्‍यार करता हूँ!


मैं अपना प्यार - 08


*Credula res amor est (Latin): प्‍यार में हम हर चीज पर विश्‍वास कर लेते हैं Ovid 43 BC-AD C.17
आठवाँ दिन
जनवरी १८,१९८२

आज मैं ‘‘स्‍टेट्समेन’’ की हेडलाईन देखकर बुरी तरह चौंक गया, लिखा थाः ‘‘अमेरिका की स्‍नायु-गैस संग्रह करने के कदम पर चिंता।’’ आगे लिखा थाः
‘‘राजनयिक एवं सैन्‍य पर्यवेक्षक रीगन प्रशासन के स्‍नायु गैस को उत्‍पन्‍न करने तथा संग्रहित करने के तथाकथित फैसले से चिंतित हैं जिसे सोवियत संघ के साथ युध्‍द होने की स्थिति में इस्‍तेमाल किया जायेगा। सोवियत संघ के रासायनिक शस्‍त्रों के निर्माण के जवाब में अमेरिका स्‍नायु-गैस का निर्माण करेगा।’’
निःसंदेह, यह दोनों महाशक्तियों के बीच के ख़तरनाक संघर्ष की मिसाल है। मुझे दो शब्‍दों में निहित अर्थ से धक्‍का पहुँचा हैः स्‍नायु-गैस और रासायनिक शस्‍त्रास्‍त्र। मैं सोच भी नहीं सकता कि इनमें से किसी का भी क्‍या भयानक परिणाम होगा। मेरे विचार से, यदि ऐसा होता है तो इसका मतलब होगा पूरी दुनिया का विनाश, और मानव जाति का भी नाश। हमें घुटने टेक कर ईश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि दुनिया में इस तरह का विनाश न हो।
सुबह मैंने दो घंटे बढ़िया नींद ली। खास कुछ करने को था नहीं, इसलिये सो गया। वैसे स्‍वभाव से मैं आलसी नहीं हूँ। तुम तो जानती हो, है ना? मगर, आह, मैं पैदा भी थका हुआ था (मेरी माँ ने बताया था!)
मैं १२.०० बजे उठा। सबसे पहला काम – होस्‍टल के लेटर-बॉक्‍स में तुम्‍हारा खत देखना। मगर कोई फा़यदा नहीं हुआः अब तक तुम्‍हारा कोई खत नहीं आया। मैं बेचैन हो रहा हूँ, मेरी प्‍यारी! मैं बड़ी संजीदगी से तुम्‍हारी ओर से किसी खबर का इंतज़ा‌र करता रहा - जब से तुम गई हो तब से। मगर भगवान ने अब तक मेरी प्रार्थना नहीं सुनी। मैं मायूस हो गया। मैं कमरे मे वापस आया और बड़ी मायूसी से सूरते-हाल पर गौर करने लगा। प्‍यार मानसून की तरह हैः आता है, तेजी से बरसता है, फिर चला जाता है। ये बड़ी बुरी बात है, क्‍योंकि मैं ऐसा प्‍यार चाहता हूँ जो भरोसे के काबिल हो, जैसे कि सूर्यास्‍त। मैंने अपने आपको यह सोचकर समझाने की कोशिश की कि वक्‍त मेरे हर सवाल का जवाब देगा। निराशा के बादल छँट गए। बडा सुकून मिला!
मैंने हमेशा की तरह लंच-टाईम पर खाना खाया और एक घंटे तक अपने कमरे में गाने सुनता रहा। फिर मैं लाइब्रेरी गया और मैगजि़न-सेक्‍शन में दो घंटे बिताए। तीन दिनों से जो निबन्‍ध अधूरा पड़ा था वह पूरा किया। वही मोन्‍टेग्‍यू की व्‍याकरण में प्रत्‍याख्‍यान और स्‍वीक़ति। पीछा छूटा। मैं सेन्‍ट्रल लाइब्रेरी से बाहर आया और आर्टस फैकल्टी की लाइब्रेरी गया ‘‘Reading in English Tranformational Grammar (by Jacobs and Rosenbaum) (जैकब और रोजे़नबाम की ‘‘अंग्रेजी परिवर्तनीय व्‍याकरण पर निबंध’’) लेने। यह किताब मेरे शोध कार्य के लिये अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण है। मुझे कुछ परेशानी हुई क्‍योंकि मैं कैटलोग नंबर देखे बिना लाइब्रेरियन के पास चला गया। पहले तो उसने मेरी सहायता करने से इनकार कर दिया, इसलिये मैंने खुद ही उसे ढूँढ़ने की इजाजत माँगी। उसने इजाजत दे दी। मगर मेरा काम बना ही नहीं, क्‍योंकि मुझे उस जगह की आदत नहीं थी।
उसे मेरी दया आई। उसने कैटलोग नंबर ढुँढने में मेरी मदद की और आखिरकार वह किताब ढॅूढकर मुझे दे दी जिसकी मुझे इतनी जरूरत थी। मैंने उसे धन्‍यवाद कहा और संतुष्‍ट होकर लाइब्रेरी से निकला। आधे-अधूरे मन से मैं होस्टल लौटा (बचा हुआ आधा मन तुम्‍हारे साथ था)। वापस आते समय मुझे फुटपाथ पर मॅूगफली बेचने वाले की गरीबी का अहसास हुआ। इसलिये मैंने मूँगफली के बहुत छोटे पैकेट के लिये उसे एक रूपया दे दिया। जुबिली एक्‍सटेन्‍शन हॉल के पास मुझे रेव चावरा मिले। मैंने उन्‍हें मूँगफली पेश की। उन्‍होंने थोड़ी सी लीं हम जुदा हुए।
मैं 5.30 बजे होस्‍टल पहुँचा, १५ मिनट थोड़ा आराम किया और धुले हुए कपड़े इस्‍त्री करने के लिये धोबी के पास गया जो वुथिपोंग के कमरे में था। जब तक मेरा काम हो रहा था मैं वुथिपोंग से गप्‍पें लड़ाता रहा। डिनर के लिये वापस होस्‍टल आया। होस्‍टलर्स मेस के दरवाजे पर जमा हो गये थे, हरेक ‘‘पहले’’ घुसना चाहता था। मैं न तो पहला था, न ही आखिरी। मगर बेशक मैं पहले बैच में था! डिनर में मीट (मटन) था। इसलिये वे धक्‍का-मुक्‍की कर रहे थे। लानत है!
डायरी मैंने डिनर के बाद लिखी। अब मैं इसे खतम कर रहा हूँ। इसके बाद मैं थोड़ी देर पढूँगा और फिर तुम्‍हें गुड नाईट कहूँगा। अन्‍त में, मुझे विश्‍वास है किः प्‍यार आता-जाता रहता है, मगर एक प्‍यार करने वाला इन्‍सान कभी गर्मजोशी नहीं खोता। काश, मैं तुम्‍हें गुड नाईट चुंबन दे सकता। अलबिदा, मेरे प्‍यार। तुमसे फिर मिलूंगा। तुम्‍हारे प्रति अपने तमाम समर्पण और लगन के साथ।      

मैं अपना प्यार - 07


*Succesore novo vincitur omnis amor (Latin): नया प्‍यार हमेशा पुराने प्‍यार को हरा देता है Ovid 43 BC-AD C.17
सातवाँ दिन
जनवरी १७,१९८२

आज इतवार है। तुम्‍हारी बेहद याद आ रही है। हम साथ-साथ काम करते रहें है। मगर जिन्‍दगी की ज़रूरत ने, जो अचानक वज्रपात की तरह गिरी, हमें जुदा कर दिया। तुमने मुझे अकेला छोड़ दिया क्रूर भाग्‍य के थपेडे खाने के लिये! मेरे दिल में गम ने अपनी जगह बना ली है। हम, किसी न किसी रूप में, जिन्‍दगी के कैदी हैं। इतना मैं जानता हूँ। हर रोज मैं यही सोचकर अपने आप को दिलासा देता हूँ कि तुम कभी न कभी तो वापस आओगी। मैं अभी भी एक कैदी की तरह अपने प्‍यार के वापस लौटने का इंतजार करने की ड्यूटी निभा रहा हूँ।
आज सुबह मैं कुछ देर से उठा क्‍योंकि कल रात रोज़मर्रा के कामों में देर रात तक उलझा रहा। दस बजे मैं और सोम्‍मार्ट मुंशीराम बुक स्‍टोर गए, स्‍कूटर से। बदकिस्‍मती से वह बन्‍द था। वजह सिर्फ ये थी कि यह एक छुट्टी! का दिन था। हम आगे कनाट प्‍लेस तक किसी काम से चले गए। इतवार के दिन कनाट प्‍लेस कब्रिस्‍तान की तरह दिखाई देता है। करीब-करीब सारी दुकानें बन्‍द थीं। कुछ विदेशी टूरिस्‍ट्स कॉरीडोर्स में, फुटपाथों पर और सड़कों पर चल रहे थे। सड़क पर गाडियाँ लगातार आ-जा रही थी। ट्रैफिक सुचारू रूप से चल रहा था।
पालिका प्‍लाजा़ बन्‍द था। सिर्फ रेस्‍तराँ और थियेटर्स खुले थे। घूमने निकलने से पहले हमने हेस्‍टी-टेस्‍टी रेस्‍तरॉ में सस्‍ता-सा लंच लिया। फिर हम एक गोलाकार पथ पर एक जगह से दूसरी जगह चलते रहे। हमने शुरूआत की हेस्‍टी–टेस्‍टी से पालिका प्‍लाजा़ तक, जनपथ, फिर क्‍वालिटी रेस्‍तराँ के सामने रीगल तक। हमने ज्‍यादातर समय सड़क पर लगी दुकानों में सस्‍ते कपडों और किताबों को देखने में बिताया। साड़ी पहनी सुन्‍दर, जवान लड़कियों को देखना अच्‍छा लग रहा था।
वे रेगिस्‍तान में किसी नखलिस्‍तान की तरह मालूम होती थी। एक दिलचस्‍प बात यह हुई कि जब हम क्‍वालिटी रेस्‍तराँ के सामने किताबें छान रहे थे तो हमें एक अजीब सा आदमी मिला। सोम्‍मार्ट ने जन्‍म-कुण्‍डली पर एक किताब उठाई और उसका कवर देखने लगा। वह अजीब आदमी उसकी तरफ आया और पूछने लगा,
‘‘क्‍या तुम बौद्ध हो?’’
‘‘हाँ’’ सोम्‍मार्ट ने ताज्‍जुब से कहा। आदमी ने आगे पूछा, ‘‘क्‍या तुम जन्‍म–पत्री में विश्‍वास करते हो?’’
सोम्‍मार्ट जवाब देने से हिचकिचा रहा था। मैं परिस्थिति समझ रहा था और मुझे डर था कि सोम्‍मार्ट कहीं उसके जाल में न फँस जाए, मैं बोल पड़ा,
‘‘ये बस व्‍यक्तिगत दिलचस्‍पी है।’’
उसने यूँ सिर हिलाया, जैसे इस बात को जानता है। फिर उसने किताब की कीमत पूछी और सोम्‍मार्ट के लिये उसे खरीद लिया। सोम्‍मार्ट इस प्रतिक्रिया से कुछ चौंक गया। उसे समझना मेरे बस के बाहर की बात थी। उसने एक-तरफा बात-चीत शुरू कर दी, स्‍वगत भाषण, धर्मों पर और आध्‍यात्मिकता पर। हम उसकी बातों पर पूरा ध्‍यान दे रहे थे, सिर्फ इसलिये कि उसका मन पढ़ सकें और यह पता कर सकें कि वह किस तरह का आदमी है। उसके हुलिए और उसकी बातों के आधार पर मैं उसे कोई धार्मिक कट्टरपंथी कहूँगा।
उसका मुख्‍य उद्धेश्‍य था धर्म के प्रति उसके अपने मूल्‍यांकन को लोगों में फैलाना। इस लिये, मेरे दिमाग पर कोई प्रभाव नहीं पडा़। मैं तो इसे एक आकास्मिक आश्‍चर्य कहूँगा, बस, और कुछ नहीं।
हम १०४ नंबर की बस पकड़ कर होस्‍टल की ओर चले। जब हम दरियागंज पहुँचे (लाल किले के निकट), तो हमने अपना इरादा बदल दिया और वहाँ फुटपाथ पर लगी ढेर सारी पुस्‍तकों की प्रदर्शनियों के लिये वहाँ उतर पड़े। ज्‍यादातर किताबें बेकार की थीं, फटी हुई और गन्‍दी। अपने लालच को रोक न पाने से मैंने दो किताबें खरीद ही ली १२० रू० में।
हम वहाँ से हटे, कुछ आगे चले लाल किले की ओर कपडे देखने के लिए जिनकी ढेर सारी किस्‍में वहाँ रखी थीः कोट, ओवर-कोट, स्‍वेटर और भी न जाने क्‍या-कया। उन्‍हें देखते-देखते थककर हमने वापस जाकर लाल किले वाले बस-स्‍टॉप से बस पकड़ने का निश्‍चय किया, वहाँ हमें फागा मिली जो थाई लोगों की चर्चा का केन्‍द्र थी। वह अपने फलैट पर जा रही थी। हमने भी वही बस पकड़ी और मॉल-रोड तक हम साथ ही रहे। वह शेखी मार रही थी, जैसे वह अपनी किस्‍म की एक ही थी। ये भी एक चौंकाने वाला संयोग था।
आज रात मेरे होस्‍टल में खाना नहीं था इसलिए मुझे और सोम्‍मार्ट को खाने के लिये कहीं और जाना पडा। हमने ग्‍वेयर हॉल में खाना खाया। खाना एकदम बेस्‍वाद थाः दाल, सब्‍जी और चावल – हमेशा ही की तरह। मैं नहीं कह सकता कि आज का दिन उल्‍लेखनीय था।
मैं थक गया था, मेरी जान, मैं जल्‍दी सोना चाहता था। अगर सलामत रहा तो तुमसे मिलूँगा। मैं तुमसे सपने में मिलूँगा। शुभ रात्रि, मेरे प्‍यार।











मैं अपना प्यार - 06




*Amare et sapere vix conceditur (Latin): प्‍यार करना और अकलमन्‍द होना तो भगवान के भी बस में नहीं हैं। प्‍यूबिलियस साइरस (fl.1st Century BC)
छठा दिन
जनवरी १६,१९८२

जितनी ज्‍यादा तुम्‍हारी याद आती है, उतनी ही ज्‍यादा तुम्‍हारी ज़रूरत महसूस होती है।
दिमाग में तुम्‍हारे प्रति नाज़ुक और प्रेमपूर्ण भावनाएँ इस कदर भर गई हैं। एक पल को भी तुम्‍हें भूलने की जुर्रत नहीं कर सकता। मेरे दिल पर तुम पूरी तरह से छा गई हो। अपनी मर्जी से मैं अपने आपको पूरी तरह तुम्‍हें समर्पित करता हूँ। ये है मेरी आज की डायरी की प्रस्‍तावना!
मैं सुबह आठ बजे उठा। कमरे से बाहर निकलने का भी मन नहीं हो रहा था, मैंने रेडियो लगाया, वॉयस ऑफ अमेरिका सुनता रहा ८-४० तक। इस डर से कि ब्रेकफास्‍ट खत्‍म न हो जाये, बाथरूम भागा, फिर होस्‍टेल-मेस, अपना ब्रेकफास्‍ट खाने। दस बजे “Negation in English” (अंग्रेजी में प्रत्‍याख्‍यान) की फोटोकापी करवाई पास की दुकान से .३९ रू० प्रति फोटोकापी के हिसाब से। कितना ज्‍यादा लेते हैं- खून चूस लेते हैं। वापसी में मैं म्‍यूएन के रूम पर रूका लिंग्विस्टिक्‍स की कुछ और किताबें देखने के लिये, जो मेरे शोध-विषय के लिये सहायक हों। कुछ किताबें मेरे काम की हैं। मैं होस्‍टल पहुँचा लंच के लिये और फिर सो गया।
अपने कमरे से उकता कर मैं मैगजि़न-सेक्‍शन गया और वहाँ कुछ घंटे बिताए। काफी फ़ायदेमन्‍द है वे चीजें सीखना जो मैं नहीं जानता हूँ तो, मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि शिक्षा के बिना जिन्‍दगी वैसी ही है जैसे दिमाग के बिना कोई बच्‍चा। ये ऐसी चीजों को इकट्ठा करने जैसा है जिनकी किसी को ज़रूरत नहीं है। दूसरे शब्‍दों में शिक्षा और जिन्‍दगी को ‘‘एक ही’’ समझना चाहिए। इन्‍हें अलग नहीं किया जा सकता, मगर इनका समन्‍वय करके जिन्‍दगी को काबिले बर्दाश्‍त और खुशनुमा बनाया जा सकता है। ‘‘मोन्‍टेग्‍यू की व्‍याकरण में प्रत्‍याख्‍यान और अस्‍वीकृति’’ नामक लेख (ले० हेपलमेन) ने दिमाग पर काफ़ी जोर डाला। शैली की दृष्टि से काफि प्रतीकात्‍मक है। मैं इसका सिर-पैर भी नही समझ पाया, मगर मैं पढ़ता रहा, यह सोचकर कि कुछ भी नहीं होने से थोडा-बहुत होना बेहतर है। ५-३० बजे मैंने पढ़ना खत्‍म किया और यूनिवर्सिटि-स्ट्रीट से होकर वापस होस्‍टल आया।
यूनिवर्सिटी-पोस्‍ट ऑफिस में रूका कुछ एरोग्राम्‍स लेने के लिये। क्‍लर्क बोला, ‘‘स्‍टॉक नहीं है।’’ बगैर कुछ कहे मैं मुड़ा और चल पडा। वापस होस्‍टल में – ६-३० बजे। जब मैं कमरे में घुसा तो प्रयून और सोमार्ट के बीच कोई रोमान्टिक बहस हो रही थी। मैं भी बहस में शामिल हो गया मगर उसे आखिर तक नहीं ले जा सका, क्‍योंकि भगवान ने इस विषय की जानकारी मुझे नहीं दी है।
आज की खास घटनाऍ ये थीः
१.       श्रीमति इन्दिरा गाँधी ने अपनी कैबिनेट में फेर-बदल कियेः
वेंकटरामन को रक्षा मन्‍त्री बनाया गया, वित्‍त-विभाग मुखर्जी को, जे०एन० कौशल को – विधि विभाग, और बारोट, चन्‍द्राकार और वेंकट रेड्डी की छुट्टी कर दी गई (दि स्‍टेट्समेन, दिल्‍ली, शनिवार, जनवरी १६,१९८२)।
२.       हॉलेण्‍ड से एल० जेन्‍सन का पत्र मिला। वह मेरी मानी हुई बहन जैसी है, जब से हम बैंकोक में मिले थे, चार साल पहले। पत्र का सारांश हैः ध्‍यान और चिन्‍ता, ढेरों शुभकामनाएँ और गर्मजोशी भरा नमस्‍कार।
३.       आज का मौसम सामान्‍य है। स्‍टेट्समेन कहता हैः आसमान मुख्‍यतः साफ रहेगा। दिन में ठंडी हवाएँ चलेंगी। रात का तापमान करीब 50C रहेगा।
नई दिल्‍ली का अधिकतम तापमान (सफदरगंज) शुक्रवार को था 20.40C (68.7F), सामान्‍य से 10C कम और न्‍यूनतम तापमान था 80C (46.40F) सामान्‍य से 10C ऊपर।
अधिकतम आर्द्रता थी - 78% और न्‍यूनतम - 39%। सूर्यास्‍त - 5.47 बजे, कल सूर्योदय ( 7.15 बजे। चाँद आधी रात से पहले नहीं निकलेगाः चाँद अस्‍त होगा 11.47 बजे। कल चाँद का अंतिम सप्‍ताह है। रोशनी 6.17 बजे तक।
देर हो चली है। मुझे तुमसे गुड नाइट कहना पड़ेगा, वापसीपर मुलाकात होगी!
ढेर सारा प्‍यार।

मैं अपना प्यार - 05



*Ab amante lacrimis redimas iracundiam (Latin): आँसू प्रेमी के क्रोध को शांत कर देते हैं। प्‍यूबिलियस साइरस (fl.1st Century BC)
पाँचवा दिन
जनवरी १४,१९८२

इस दुनिया में तुमसे ज्‍यादा मूल्‍यवान मेरे लिए कोई और चीज नहीं है। जब मैं इस कहावत को याद करता हूँ कि ‘‘दूर रहने से प्‍यार बढ़ता है,’’ तो मुझे कुछ आराम मिलता है। मगर जब मैं एक अन्‍य कहावत के बारे में सोचता हूँ, जो कि पहली वाली के एकदम विपरीत है, तो मैं अपने प्‍यार के बारे में परेशान हो जाता हूँ। क्‍या तुम्‍हें याद है? ‘‘नजरों से दूर, दिमाग से दूर’’। कैसा विरोधाभास है। हम ऐसी दुनिया में आजादी से रहते हैं जो बातों में विरोधभासों से परिपूर्ण है, स्‍वभाव से विसंगत है, कामों में दोगली है और रीति-रिवाजों में रूढ़िवादी है, मैं भी उन्‍हीं में से एक हूँ, है ना? चाहे मैं उन्‍हें मानूँ या न मानूँ, वे वैसे ही रहेंगे – भ्रमात्‍मक वास्‍तविकता। माफ करना, मैं जरा बहक गया।
खैर, अपनी आज की दिनचर्या की ओर आता हूँ। कल रात को मैं गहरी नींद सोया –छह घण्‍टे, बिना कोई सपना देखे, उठा तो ताजा-तवाना था, विश्‍वास से भरपूर। सुबह का ज्‍यादातर समय मैंने पढ़ने में, कपड़े धोने में और रेडियो सुनने में बिताया। जिन्‍दगी खुशनुमा ही लग रही थी, मगर भीतर कहीं, मेरा दिमाग अभी भी हताश, सताया हुआ और निराश है। इस खयाल को छिपाने की मैंने पूरी कोशिश की, जैसे वह था ही नहीं, इस बारे में और बात नहीं करेंगे।
एक बजे लाइब्रेरी गया, मैगज़ीन सेक्शन में दो घंटे बैठा। अन्‍दर बहुत अंधेरा था, क्‍योंकि करीब डेढ़ घंटे तक बिजली नहीं थी। बिजली तब आई जब मैं निकलने वाला था। मैं लाइब्रेरी से साढ़े चार बजे निकला। मुझे अचानक याद आया कि तुमने जो खत हेड को लिखा था वह अभी भी मेरी जेब में था। मैं सीधे उनके घर गया, मगर वे घर पर नहीं थे। उनकी बेटी ने मेरा स्‍वागत किया। पहले वह मेरे लिये पानी लाई, फिर एक कप चाय और नाश्‍ता।
हम यूँ ही आम बात चीत करते रहे। वातावरण बड़ा दोस्‍ताना और आराम देह था। जब तक उसके पिता आए वह मुझसे बातें करती रही। मैंने उठकर उनका अभिवादन किया और वे बैठ गए। मैंने खत उन्‍हें दे दिया, मगर उन्‍होंने फौरन उसे पढ़ा नहीं। बल्कि, मुझे ही उन्‍हें बताना पड़ा कि वह किस बारे में है। उन्‍होंने मुझसे पूछा कि क्‍या तुमने अपनी थाईलैण्‍ड यात्रा के बारे में अपने गाइड को सूचित किया है। मैंने तुम्‍हारी ओर से कहा कि तुमने ऐसा ही किया है। वे सन्‍तुष्‍ट प्रतीत हुए और बोले कि ये तुमने बड़ा अच्‍छा किया। उनकी राय में कोई समस्‍या थी ही नहीं।
वे कुछ थके लग रहे थे इसलिये मैंने उनसे बिदा ली और वापस आने लगा। थका हुआ और अकेला महसूस कता हुआ मैं अचानक चुएन के होस्‍टल गया और ढूँढ़ने लगा। मैं पूरे जोर से चिल्‍ला रहा था, उसे पुकार रहा था। मगर अफसोस, वह वहाँ था ही नहीं। निराश होकर अपने एकान्‍त का मज़ा लेने के लिये मैंने वापस होस्‍टेल लौटने का विचार किया। रास्‍ते में मुझे आराम, बून्‍मी, पर्न और स्‍मोर्न मिले। वे मुझे घसीट कर जुबिली एक्स्टेंशन ले गये। हम पन्‍द्रह मिनट कैरम खेले, फिर किम और निरोडा (बून्‍मी के सपनों की रानी) से मिलें। वे एक बेल्जियम लड़के के साथ खड़ी थीं, जिसे मैं थोड़ा-बहुत जानता हूँ। वे डिनर के लिये कहीं जा रहे थे, मैंने पूछा नहीं कहाँ? अपनी प्रेमिका को किसी और का हाथ पकड़े देखकर बून्‍मी बहुत दुखी हो गया। यह भी एक-तरफा प्‍यार का एक उदाहरण था, आपराधिक प्‍यार का शिकार। वह काफी परेशान और असहज लग रहा था। मैंने उससे कहा कि जितना दुख तुम स्‍वयँ अपने आपको देते हो, उतना कोई और नहीं देता, मगर वह मेरी बात नहीं समझा और एक भी शब्‍द कहे बिना चला गया।
हम उसकी भावनाओं को समझ रहे थे और हमेशा उसके निर्णय का आदर करते थे। इस पीड़ादायक प्‍यार से उसे कौन बाहर निकालेगा? मुझे ताज्‍जुब है। किस ने मुझसे हैलो कहा, मगर वह महज औपचारिकता थी। उसकी जिन्‍दगी सभी प्रतिबंधो से मुक्‍त है। मेरी नजर में, यह एक आज़ाद पंछी की जिन्‍दगी है जो निरूद्देश्‍य ही इस असीम आकाश में उड़ता है। मुझे पता नहीं कि उसकी आखिरी मंजिल क्‍या होगी।
यह मेरा मामला नहीं है ऐसा सोचकर मैं उसके लफडों के बारे में कुछ नहीं कहूँगा। अपने कमरे में मैं शाम को साढ़े सात बजे आया। मैं अपने बिस्‍तर पर बैठा, उनींदी चेतना, थकी हुई रूह, विचारमग्‍न दिमाग को रेडियो के गीतों से जगाने की कोशिश करते हुए। डिनर के बाद मेरठ से एक भिक्षु दोस्‍त मुझे आशिर्वाद देने आया। वह एक हँसमुख, चंचल, मजाकिया किस्‍म का है। मुझे और लगभग सभी को वह अच्‍छा लगता है।
वह मज़ाक करता है, हमारे लिये अपने आपको हँसी और खुशी का स्‍त्रोत बनाता है। मैं उसकी सच्‍चाई और दोस्‍ताना स्‍वभाव की कदर करता हूँ। इसी ने मेरी घड़ी दुरूस्‍त करवाई थी, मुझसे पैसे भी नहीं लिए। मैं उसका शुक्रगुजा़र हूँ। धन्‍यवाद, मेरे पवित्र भिक्षु। अपने पीछे मेरे कमरे में वह अपने अस्तित्‍व की और परफ्युम की सुगन्‍ध छोड़ गया। यह था उसकी भेंट का अन्‍त और, यही है आज की डायरी का अन्‍त!
मेरा दिल हमेशा तुम्‍हारे प्रति वफादार रहेगा।







मैं अपना प्यार - 04




*Amor ut lacrima ab aculo oritur in pectus cadit (Latin): प्‍यार एक आँसू की तरह, आँख से निकल कर सीने पर गिरता है - प्‍यूबिलियस साइरस (fl.1st Century BC)
चौथा दिन
जनवरी १४,१९८२

उम्‍मीद है कि अब तक तुम अपने माता-पिता और रिश्‍तेदारों से बातें कर चुकी होगी। मैं समझता हूँ  कि उनके साथ तुम खुश होगी। थाई खाने ने किसी बिछड़े हुए दोस्‍त की तरह तुम्‍हारी जुबान को छुआ होगा। वहाँ के क्‍या हाल हैं? आमतौर से, मेरा मतलब है, मैं खुश हूँ, इसलिये कि तुम खुश हो। तुम्‍हारी खुशी मेरे लिये सबसे महत्‍वपूर्ण चीज़ है।
तुम चाहे जहाँ भी हो, जो भी कर रही हो, मैं अभी भी तुमसे प्‍यार करता हूँ। मेरी भावनाएँ वहीं हैं – तुम्‍हारे बगैर जिन्‍दगी असहयनीय है, बर्दाश्‍त से बाहर है, और अंधेरी है। मैं दिनभर में हजारों बार तुम्‍हारे मेरे पास वापस आने की तमन्‍ना करता हूँ।
कल रात मैं बड़ी गहरी नींद सोया – आराम की नींद, बिना किसी सपने की, इसलिये मैंने सुबह का स्‍वागत हँस कर किया। आज मैंने हम दोनों ही के लिये फायदेमन्‍द काम किये। सुबह दस बजे पहले मैं मि० कश्‍यप के घर गया और तुम्‍हारा काम उनकी पत्‍नी को दे दिया। वे घर पर नहीं थे, मगर उन्‍होंने मुझे अन्‍दर आने और एक प्‍याली चाय पीने की दावत दी। मैंने नम्रता से माफ़ी माँग ली, यह कहते हुए कि मैं फिर से मि० कश्‍यप से मिलने आऊँगा।
फिर मैं लिंग्विस्टिक्‍स डिपार्टमेन्‍ट गया कुछ लेक्‍चरर्स से मिलने जो मुझे अपना रिसर्च टॉपिक चयन करने में मदद कर सकेंगे। मैं प्रोफेसर सिन्‍हा से मिला और उनसे सलाह माँगी। उन्‍होंने मुझे नेगेशन (प्रत्‍याख्‍यान) पर कुछ पुस्‍तकों के नाम दिये और मेरे कार्य की रूप रेखा बनाई। उनकी सलाह से मुझे बड़ी राहत मिली। मैंने डिपार्टमेन्‍ट लाइब्रेरी से वह पुस्‍तक ली और युनिवर्सिटी कैन्‍टीन आया अपनी भूख मिटाने जो मुझे परेशान कर रही थी।
केम्‍पस में कर्मचारियों की हडताल अभी भी चल रही है। दिन भर में एक लम्‍बा जुलूस निकल ही जाता है। नारे, माँगे और विरोध उनकी हड़ताल की मुख्‍य बातें हैं, सेन्‍ट्रल लाइब्रेरी के सामने प्रदर्शनकारियों का एक समूह भाषणबाजी कर रहा था अधिक गतिशीलता, अधिक आंदोलनकारियों, अधिक सहभागियों के लिये।
भगवान ही जानता है कि उन्‍हें कितनी सफलता मिली है। ये हर साल ही होता है – मौसम की तरह मगर इससे हासिल कुछ भी नहीं होता। उनकी माँगों के कोई जवाब नहीं दिये जाते। कैसी बुरी हालत है! इस बेकार की हड़ताल से बोर होकर मैं डिपार्टमेन्‍ट गया, यह पता करने के लिये कि क्‍या मैं हेड से मिल सकता हूँ, इसके बाद गया युनिवर्सिटी कैन्‍टीन। वहाँ मुझे मिले वुथिपोंग, चवारा, प्राचक, और आराम पोल्‍ट्री, जिसने हाल ही में भिक्षु-वस्‍त्र छोड़ दिये हैं। अपनी नई ड्रेस में आराम बड़ा बढि़या लग रहा है। हमने वहीं पर एक छोटी सी पार्टी की और फिर अपने-अपने होस्‍टल चले गए।
शाम को वुथिपोंग फिर मेरे कमरेमें आया। उसने अपने एक-तरफा प्‍यार पर किये गए खतरनाक प्रयोग की प्रगति के बारे में बताया। वह काफी दृढ़ और स्थिरचित्‍त लग रहा था। उसने वादा किया कि चाहे जितना भी कठिन हो, वह अपनी भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश करेगा, मैंने उसका हौसला बढ़ाया और उसे इस प्रेम-त्रिकोण से – तीन आदमी और एक लड़की वाले खेल से बाहर निकलने के लिये उसकी मिन्‍नत की। उसने मुझसे और सोमार्ट से उसके साथ पिंग-पाँग खेलने के लिये कहा, मगर हमने यह कहकर माफी़ मांग ली कि हमें इसी समय कई काम करने हैं। वह कमरे से खुश होकर बाहर गया।
एक मजेदार बात हुई पी०जी० वूमेन्‍स होस्‍टल में साढे़ बाहर बजे। मैं वहाँ गया टेप-रिकार्डर, ब्‍लैन्‍केट और बाकी चीजें, जो तुमने मेरे लिये छोडी थीं – लेने ओने ने मुझे वे चीजें दीं, मगर वह उनके साथ बाहर नहीं निकल सकी। डयूटी वाले चौकीदार ने गेट-पास पूछा, जिसकी ओने को उम्‍मीद नहीं थी। उसे वार्डन के पास जाना पडा़। जब मैं होस्‍टेल-गेट पर इंतजार कर रहा था तो मुझे शुक्‍ला मिली (मैं अपनी डायरी में उसका जिक्र कर चुका हूँ)। मैंने उसे अपनी समस्‍या के बारे में बताया। उसने वादा किया कि वह जल्‍द से जल्‍द इसे सुलझा देगी। कुछ ही मिनटों बाद समस्‍या हल हो गई, शांतिपूर्ण तरीके से। धन्‍यवाद ओने को और शुक्‍ला को।
डिनर के बाद मैंने कुछ देर पढ़ाई की, मगर कुछ भी समझ में नहीं आया। मेरा दिमाग तो सैकडों मील दूर था, वह तुम्‍हारे पास जा रहा था। क्‍या तुमने महसूस किया? कुछ कर पाना मुश्किल था, मैंने तय कर लिया कि मैं सो जाऊँगा और तुमसे मिलूँगा सपने में – उस काल्‍पनिक दुनिया में। जल्‍दी ही तुमसे मिलूँगा, मेरी जान!


मैं अपना प्यार for Kindle

  अपना प्यार मैं दिल्ली में छोड़ आया   एक थाई नौजवान की ३० दिन की डायरी जो विदेश में बुरी तरह प्‍यार में पागल था                ...