लेखक
के बारे में
धीराविट
पी० नात्थागार्न (धीराविट पिन्योनात्थागार्न) ने महाकुला बुद्धिस्ट युनिवर्सिटी
से B.A. (शिक्षा) की उपाधि प्राप्त की (बैंकाक, १९७९); M.A. (भाषा
शास्त्र, M.Phil भाषा शास्त्र और Ph.D (भाषा शास्त्र) की उपाधियाँ दिल्ली युनिवर्सिटी से क्रमशः १९८१, १९८३ और १९९० में प्राप्त की, Ph.D के लिये मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिली। पूर्व में अनेक स्थानों पर अनेक
ओहदों पर काम किया जैसे – यूएस लाइब्रेरी ऑफ काँग्रेस (कैटालोगर) दि नेशन (पुनर्लेखक), थम्मासाट युनिवर्सिटी (इन्स्ट्रक्टर), चुलालोंगकोर्न युनिवर्सिटी (IUP कोऑर्डिनेटर), प्रिन्स ऑफ सोगख्ला युनिवर्सिटी (इन्स्ट्रक्टर)।
इन्होंने
अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कॉनफ्रेन्स, सेमिनार, वर्कशाप में सहयोगी और प्रेजेंटर के
रूप में भाग लिया। सन् १९९५ में उन्हें ऑस्ट्रेलियन नेशनल युनिवर्सिटी, कैनबेरा के थाई स्टडीज सेन्टर ने
विजिटिंग फेलो के रूप में आमंत्रित किया। सन् १९९९ में वे लंडन युनिवर्सिटी के
गोल्डस्मिथ कॉलेज गए, और
उसी वर्ष यूनेस्को – यूनिस्पार इन्टरनेशनल काँफ्रेस में एक प्रपत्र पढा़ और एक
सत्र की अध्यक्षता की। यह काँफ्रेस लोड्ज़ पोलैण्ड में हुई थी, विषय था युनिवर्सिटी- इन्डस्ट्री
सहयोग। वे युनिवर्सिटी ऑफ कोसिक, स्लोवाक रिपब्लिक की पत्रिका के और जर्नल के
संपादकीय मंडल के सदस्य भी रह चुके हैं। सन् २००२ में उन्हें नॉर्दर्न इलिनोय
युनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आमंत्रित किया गया। अमेरिका में
वास्तव्य के दौरान वे MIT, हार्वार्ड युनिवर्सिटी और वाट थाई धम्माराम
(शिकागो) भी गए।
वर्त्तमान
में वे अपने जन्मजात शहर कोराटु थाईलैण्ड
में काम करते हैं और सुखी जीवन बिता रहे हैं।
वे
दो सामाजिक मीडिया साईट्स पर हैः
अगर मेरे बस में होता,
तो मैं जीवन का हर दिन खुशियों से
भर देता। मैं किसी को आहत न करता,
किसी
को नाराज़ न करता;
हर
कष्ट को कम करता,
और
कृतज्ञता की शुभाशीषों का आनन्द उठाता।
अपना
दोस्त बुद्धिमानों से चुनता
और
पत्नी सदाचारियों मे से;
और
इसलिये धोखे और निष्ठुरता के
खतरे
से बचा रहता।
(सैम्युअल
जॉन्सनः रास्सेलास)
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