गुरुवार, 24 मई 2018

मैं अपना प्यार - 18


*Omnia vincit Amor: et nos cedamus Amori (Latin): प्‍यार हर चीज का स्‍वामी है, आओ, हम भी प्‍यार के आगे शीश झुकाएँ – वर्जिल 70-19BC
अठारहवाँ दिन
जनवरी २८,१९८२

आज दुनिया ‘‘दुर्घटनाओं’’ से भरी है। आज के ‘‘स्‍टेट्समेन’’ के शीर्षकों और उपशीर्षकों पर नजर डालो तो तुम समझ जाओगी कि परिस्थिति कितनी गंभीर है।
·         आगरा में ट्रेनों के टकराने से ६६ की मृत्‍यु
·         १४० लोगों को अस्‍पताल में भर्ती किया गया
·         विमान दुर्घटनाओं में ११० मरे (पेरिस में)
·         ट्रेन पटरी से उतर गई, ६० जख्मियों को बचाया गया
·         बाढ़ से ६०० व्‍यक्तिडूबे (पेरू)
·         २४० गंभीर रूप से घायल
(कटक में एक ट्रक नदी में गिर गया)।
इन दुर्घटनाओं पर शोक-संतप्‍त हुए बिना मैं नहीं रह सकता। दुनिया के मेरे साथियों, मेरी संवेदना स्‍वीकार करो।
और अब, मेरी जान, आज की डायरी! दोपहर को मैं तुम्‍हारे डिपार्टमेन्‍ट गया था। मि० वासित क्‍लास ले रहे थे। उनकी क्‍लास के खत्‍म होने तक मुझे इंतजार करना पडा़। उन्‍होंने अपनी क्‍लास 1.30 बजे समाप्‍त की। क्‍लास के फौरन बाद मैं उनकी ओर लपका। विद्यार्थी उनके कमरे में कुछ और चर्चा एवं सन्‍देह दूर करने के लिये टूटे पड़ रहे थे। तुम्‍हारे काम के बारे में बात करने के लिये मुझे सबसे पहले मौका दिया गया। मैंने अपना उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट किया। सबसे पहला सवाल जो उन्‍होंने तुम्‍हारे बारे में किया, वह था,
‘‘उसके पिता कैसे है?’’ और “वह कब वापस आ रही है? मैंने जवाब दिया, ‘‘उसके पिता की तबियत सुधर रही है, सर’’ और ‘‘वह पन्‍द्रह फरवरी के करीब वापस लौट रही है।’’
फिर मैंने तुम्‍हारे काम के बारे में पूछा। उन्‍होंने कहा कि वे सीधे तुम्‍हें ही खत लिखेंगे, क्‍योंकि मेरे द्वारा तुम तक कोई सन्‍देश पहुँचाना किसी काम का नहीं है। मैंने उनसे विनती की कि वे तुम्‍हारे लौटने से करीब सात दिन पहले तुम्‍हें लिखें, ताकि तुम जरूरत की चीजों का समय रहते इंतजाम कर सको। उन्‍होंने मुझे विश्‍वास दिलाया कि वे कल ही तुम्‍हें खत लिखेंगे। मैंने धन्‍यवाद देकर उनसे बिदा ली। दो बज रहे थे। मुझे थोड़ी भूख लगी थी। मगर होस्‍टेल जाकर लंच लेने के लिये बहुत देर चुकी थी, इसलिये मैंने युनिवर्सिटी कैन्‍टीन में ही थोडा़-बहुत खाने का निश्‍चय किया।
मैंने जेब टटोली, तो उसमें सिर्फ एक रूपया था। मेरा हाथ बहुत तंग है! मैंने लंच के लिये आलू लिये और उसके लिये ८० पैसे दिये। विवेकानन्‍द पुतले के पास मैं आराम और उसके दोस्‍तों से मिला। हमने वहाँ एक ग्रुप फोटोग्राफ लिया। मैं दीदी (म्‍युआन की पत्‍नी) मोमो और अली (थाई मुसलमान) से मिला। वे ओखला में थाई-मनिपुरी डान्स-पिकनिक का आयोजन कर रहे थे। उन्‍होंने मुझे बहुत मनाया उनके साथ जाने के लिए। डान्‍स के लिये थाई लड़कों के साथ मणिपुरी लड़कियोंकी जोडि़याँ बनाई गई थी।
सुनने में तो बडा़ आकर्षक लगता है, मगर मैं ऐसी किसी पार्टी में भाग लेने का उत्‍सुक नहीं हूँ। मैंने बहाना बना दिया कि मेरे पास बहुत काम पड़ा है। अपने होस्‍टेल में जाने से पहले आराम ने एक प्‍लेट टॉमेटो-सूप पेश किया। मैं 2.30 बजे अपने होस्‍टेल पहुँचा। मैंने तुम्‍हें एक खत लिखा और 3.30 बजे उसे पोस्‍ट कर दिया। मेरा खत तुम्‍हारे काम की प्रगति के बारे में, और आम-जिन्‍दगी के बारे में था। मैंने इस महीने तुमसे कोई खत पाने की उम्‍मीद छोड़ दी है। फिर भी, मुझे उम्‍मीद है कि अगले महीने पहुँचने से पहले तुम मुझे जरूर लिखोगी।
सभी आवश्‍यक कामों को पूरा करने के बाद मैं पीठ के बल लेट गया, मगर मुझे शीघ्र ही मुँह के बल लेटना पडा़ जिससे कि अपने दिमाग में एक अनचाहे खयाल को आने से रोक सकुँ। मगर तभी आचान च्‍यूएन और सोंग्‍कोम मेरे कमरे में किसी काम से आए। मैं बिस्‍तर पर ही लेटा था। तुम मुझे आलसी कह सकती हो। मुझे यह बात साबित करना होगी कि मैं आलसी नही हूँ, मगर तुम्‍हें तो मालूम है कि मैं थका हुआ ही पैदा हुआ था ! आयान च्‍युयन और सोंग्‍कोम ने अपनी पिछली कार्यकारी जिन्‍दगी की सफलताओं को गिनाया और अपनी भावी योजनाओं के लिये प्रेरणा और प्रोत्‍साहन दिया।
मैं एक अच्‍छे श्रोता की तरह सुनता रहा क्‍योंकि मेरी पिछली सफलताएँ और भावी योजनाएँ समय और प्रयत्‍नों पर निर्भर है। जब वे चले गए तो मैं बिस्‍तर से उछलकर कुछ ब्‍लैक कॉफी ढूँढने लगा। कमरे में शकर नहीं है। खरीदने के लिये पैसे नहीं है। झल्‍लाहट हो रही है। 6.30 बजे सोम्रांग आया सायान और उसके गानों को टेप करने के लिये – जिससे विदेश में थाई माहौल बना सके। टेप करने के दौरान हमें खामोश रहना था, जिससे कि आवाज में कोई दखल न पड़े सोम्‍मार्ट अपनी भावनाओं को न रोक सका। वह कमरे से बाहर गया और चिल्‍लाया ‘‘मैं जल्‍दी से भिक्षु-वस्‍त्र उतार देना चाहता हूँ!’’ फिर वह मुस्‍कुराते हुए कमरे में आया।
हम (सोम्रांग और मैं) चुपके से हँसे। कमरे का वातावरण हल्‍का-फुल्‍का हो गया सोम्‍मार्ट पढ़ रहा है, सोम्रांग भी। मैं भी अपनी डायरी में व्‍यस्‍त हूँ। मेरा आधा दिमाग उस गाने में है जो बज रहा है। एकाग्रता टूट रही है। मैं रोक ही देता हूँ। मिलूँगा तुमसे, मेरे प्‍यार।
पुनश्‍चः डिनर के बाद मैं तीन घंटे पढता रहा। अब मैं सोने जा रहा हूँ। मेरे लिये एक प्‍यारे सपने की दुआ करो, करोगी ना?’










मैं अपना प्यार - 17


*Amore nihil mollies nihil violentius (Latin) : प्‍यार से ज्‍यादा विनम्र और आक्रामक और कुछ नहीं है – एनोन
सत्रहवाँ दिन
जनवरी २७,१९८२

आज काफी भाग-दौड भरा दिन रहा। सुबह मैं लिंग्विस्टिक्‍स डिपार्टमेन्‍ट गया – एक किताब लौटाने, मेरे रिसर्च गाईड से मिलने और दोस्‍तों से – भारतीय और थाई – मिलने। हेड ऑफ दि डिपार्टमेन्‍ट (डा० के०पी० सुब्‍बाराव) ने मुझे बुलाया और पूछाः
‘‘तुम घर कब जा रहे हो?’’
‘‘अगले कुछ महीनों में, सर,’’ मैंने कहा।
‘‘मेरे घर में एक और बच्‍चे का जन्‍म होने वाला है,’’ उन्‍होंने बड़े फख्र से कहा।
‘‘ये तो बहुत बढ़िया खबर है, सर, मुबारक हो।’’
‘‘मैं अपने बच्‍चे के लिये थाईलैण्‍ड से कुछ मंगवाना चाहता हूँ। मुझे जाने से दो-तीन दिन पहले बताना, प्‍लीज।’’
‘‘बड़ी खुशी से, सर, मैं जरूर बताऊँगा।’’
फिर उन्‍होंने ‘‘दि ग्रेट कॉफी हाऊस’’ में मुझे और अपने अन्‍य शोध छात्रों की कॉफी पीने की दावत दी। रास्‍ते में हम सोम्मियेंग से मिले। उसे भी हमारे साथ आने की दावत दी। अच्‍छी रही ये गेट-टुगेदर। मगर, मैंने कमरे से निकलते समय सोचा था कि तुम्‍हारे सुपरवाईज़र मि० वासित से मिलॅूगा। इत्‍तेफाक से मैंने उन्‍हें मि० कश्‍यप के साथ मेरी ही दिशा में आते देखा, जब मैं कॉफी हाऊस से वापस जा रहा था।
मैं उनसे मूलाकात करने ही वाला था, मगर फिर रूक गया क्‍योंकि वह मि० कश्‍यप के साथ अपनी बातचीत में मशगूल थे। उनकी बातों में खलल डालना ठीक नहीं होता। नतीजा ये हुआ कि मैंने उनसे मिलने का मौका खो दिया। कोई बात नहीं, अगली बार ही सही। मैं आगे चला, अपने गाईड से मिलने। मैंने उनसे कुछ सुझाव लिये और वापस अपने कमरे में आ गया। युनिवर्सिटी स्‍टेशनरी शॉप के पास वाले चौराहे पर मैं टुम और उसकी होस्‍टल की सहेली से मिला। उसने मुझे थाई तरीके से नमस्‍ते किया और अपनी सहेली का परिचय कराया। उसकी सहेली शरारती टाईप की है। वह कलकत्‍ता की है। उसका नाम है कृष्‍णा। पहले तो मैं समझ नहीं पाया कि वह थाई है या भारतीय। मैंने टुम से पूछा। टुम ने मुझे नहीं बताया, मगर यह सलाह दी कि मैं उसीसे पूछॅू।
‘‘क्‍या तुम थाई हो?’’ मैंने उससे पूछा।
‘‘हाँ, मैं थाई हूँ,’’ उसने जवाब दिया।
फिर मैंने उसे थाई भाषा में पूछा, जिससे उसके जवाब की सच्‍चाई का पता चले।
‘‘मा जाक माय (तुम कहाँ की हो?)’’ मैंने फिर उससे पूछा।
‘‘मा जाक माय’’ उसने टूटी-फूटी बोली में सवाल दुहरा दिया।
‘‘तुम्‍हारा झूठ पकडा़ गया!’’ मैंने कहा
‘‘नहीं, मैंने झूठ नहीं बोला,’’ वह मान नहीं रही थी।
मैं उसे सताने लगा।
‘‘तुम एक बहुत बड़ी झूठी हो!’’
उसने एकदम इनकार कर दिया कि वह झूठी है। ये तो अच्‍छा रहा कि हमारी बातचीत ने ‘‘गलतफहमी’’ नहीं पैदा की। टुम हमारे इस शाब्दिक युध्‍द पर खूब हॅस रही थी।
मैंने उन्‍हें ‘‘मिरान्‍डा हाऊस’’ छोडा़ और उनसे ‘‘बाय’’ कहा। मैं कुछ कागज़ खरीदने कोऑपरेटिव स्‍टोअर पर रूका। कागज़ लेकर मैं सीधे होस्‍टल आया। मैंने खाना खाया और पोस्‍टमैन का इंतजार करने लगा। मैंने उससे अपने खत के बारे में पूछा। मगर उसने कहाः
‘‘सॉरी, तुम्‍हारे लिये तो नहीं है, मगर पी०जी० वूमेन्‍स होस्‍टेल में एक थाई लड़की के लिये है।’’
कौन है वो?’
‘‘धी...धी’’ उसने टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा।
‘‘क्‍या मैं ले लूँ? वह मेरी दोस्‍त है,’’ मैने बडे़ विश्‍वास से कहा।
‘‘हाँ, हाँ,’’ उसने कहा।
मैं अपने कमरे में आया और तुम्‍हारे खत को मेज की दराज में रख दिया। आधे घण्‍टे बाद मैं यू०जी०सी० गया, पता करने कि क्‍या स्‍कॉलरशिप की घोषणा हो चुकी है। ऑफिसर ने मुझे सू‍चित किया कि घोषणा की तारीख अप्रैल तक बढा़ दी गई है। मुझे कमिटी की इन तकनी‍की बातों से और विलम्‍ब से निराशा हुई। मगर मैं सिर्फ ‘‘इंतजार’’ ही कर सकता हूँ। मैं यू०जी०सी० बिल्डिंग से बाहर निकला और युनिवर्सिटी के लिये बस का इंतजार करने लगा। बसें खचाखच भरी हुई थी। एक घण्‍टा बीत गया। आखिरकार मैं एक बस में घुसा जिसने, दुर्भाग्‍यवश, मुझे आई०एस०बी०टी० छोडा़। मैंने अब बस नहीं लेने का फैसला किया। मैं लम्‍बा चक्‍कर लगाकर होस्‍टेल आया। उद्देश्‍य ये थेः
१.       अपने आप को इतना थकाना कि मानसिक तनाव कुछ कम हो जाए;
२.       इस व्‍यक्तिपूरक दुनिया को महसूस करना, जैसा कि किसी ने किया था जब वह थाईलैण्‍ड में थी;
३.       यह देखना कि इस घातक-प्रतियोगिता वाली दुनिया में लोग कैसे रहते हैं।
जब में आगे चल रहा था, मैं जीवन की गति के बारे में सोच रहा था। क्‍या विगत मुझे पीछे धकेल रहा है या भविष्‍य अपनी ओर खींच रहा है? मगर मैं फिर भी आगे की ओर ही चलता रहा। अंतिम लक्ष्‍य रहस्‍यमय था, धुँधला था, अनिश्चित था। डा० डब्‍ल्‍यू० डब्‍ल्‍यू डायर, एक प्रसिध्‍द मनोवैज्ञानिक ने, ठीक ही कहा है।
‘‘वास्‍तविकता को पूरे समय कोसते रहने और अपनी प्रसन्‍नता के अवसर को खोने से बेहतर है जीवन की सराहना करना; यह सम्‍पूर्ण समाधान की ओर एक निश्चित कदम हो सकता है।’’ अब मुझे उसके सही निरीक्षण का अनुभव हो रहा है।
यह सैर 45 मिनट तक चली, जब तक मैं होस्‍टेल नहीं पहुँच गया। अब मैं डायरी बन्‍द करता हूँ और नहाने जा रहा हूँ (हमेशा की तरह)। आज मेरा पढ़ने का इरादा है और बाद में मैं सोऊँगा।
अलविदा, फिलहाल!
प्‍यार!

पुनश्‍चः मालूम नहीं तापमान कितना है। मगर आज शाम को ठंड ने मेरी हड्डियों तक में सिहरन भर दी।

मैं अपना प्यार - 16



*Insequeris, fugio; fugis insequor; haec mini mens est (Latin): अगर तुम आई, तो मैं भाग जाऊँगा, अगर तुम भाग गई, तो तुम्‍हारा पीछा करुँगा। मेरा दिमाग इसी तरह से काम करता है – मार्शल AD C.40-C.104
सोलहवाँ दिन
जनवरी २६,१९८२

आज भारत का गणतन्‍त्र-दिवस है, लोग गणतन्‍त्र दिवस की ३३वीं वर्षगांठ मना रहे हैं- घर में बैठे-बैठे टी०वी० देखते हुए, या सड़क के किनारे खड़े-खड़े इंडिया गेट, अथवा कनाट प्‍लेस, या लाल किले पर परेड देखते हुए। मेरे होस्‍टेल में रहने वाले सभी टेलिविजन पर नजरें गडा़ए पूरे देश के साथ खुशी और उम्‍मीद बाँट रहे हैं। गणतन्‍त्र दिवस का महत्‍व पहले भारतीय संविधान से जुडा़ है (मुझे मेरे भारतीय मित्रों ने बताया), अतः यह थाईलैण्‍ड के ‘‘संविधान-दिवस’’ जैसा ही है।
गणतन्‍त्र-दिवस की पूर्व संध्‍या पर प्रेसिडेन्‍ट (संजीव रेड्डी) ने एक लम्‍बा-चौडा़ संदेश दिया, कहीं कहीं वे आलोचना भी कर रहे थे राष्‍ट्रीय-परिदृश्‍य में ‘‘चिंताजनक घटनाओं’’ की; उनमें से कुछ उन्‍होंने गिनाई थी, जो उन्‍हें चिंतित कर रही थीः सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्‍यों की अवहेलना; कानून और व्‍यवस्‍था के प्रति घटता सम्‍मान और हिंसा की बढ़ती प्रव़त्ति तथा कमजोर और निर्दोष लोगों पर बढ़ते अत्‍याचार; विकास का लाभ अधिकांश लोगों तक न पहुँचना और छोटे किसानों एवम् क़षि-मजदूरों की कठिनाईयाँ।
राष्‍ट्र के सम्‍मानित अतिथी थे स्‍पेन के सम्राट जुआन कार्लोस और महारानी सोफिया।
गणतन्‍त्र दिवस के उपलक्ष्‍य में महारानी एलिजाबेथ और ब्रिटिश प्रधानमन्‍त्री श्रीमति मार्गरेट थेचर ने बधाई संदेश भेजे हैं। श्री संजीव रेड्डी को भेजे गए अपने संदेश में महारानी ने कहाः
‘‘गणतन्‍त्र-दिवस के उपलक्ष्‍य में महामहिम को सच्‍ची बधाई देने में मुझे अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। आपके देश एवं उसकी जनता की निरंतर प्रगतिके लिये शुभकामनाऍ।’’
इससे मुझे १९७९ के गणतन्‍त्र-दिवस की याद आ गई। वह मेरा भारत में आने का पहला साल था। एक विदेशी विद्यार्थी होने के कारण मुझे बड़े सम्‍मान से गणतन्‍त्र-दिवस पर राष्‍ट्रपति-भवन में आयोजित टी-पार्टी पर, आमंत्रित किया गया था। महत्‍वपूर्ण अतिथि थे फ्रास के प्रेसिडेन्‍ट गिसगार्ड देस्‍तांग, बॉक्सिंग चैम्पियन मुहम्‍मद अली, उनकी पत्‍नी, और उनके मुक्‍केबाजी के पार्टनर, अमेरिका के जिम्‍मी एलिसे। यह बताया गया कि अली जिमी कार्टर (तत्कालीन अमेरिकी प्रसिडेन्‍ट) के नुमाइन्‍दे की हैसियत से आए थे। इन सम्‍माननीय अतिथियों के अलावा कई अन्‍य प्रतिष्ठित व्‍यक्ति भी थे, जैसे कि राजदूत, राजनयिक और अन्‍य महत्‍वपूर्ण संस्‍थाओं के प्रतिनिधि। उस दिन मैं पार्टी में एक बहुत ही छोटा इन्‍सान था। ये सब किस्‍मत की बात थी। इसका तो मैंने कभी सपना भी नहीं देखा था। भारत के राष्‍ट्रपति को बहुत बहुत धन्‍यवाद।
आज मैं घर पर ही रहना चाहता हूँ। ओह, कल रात मैंने सपना देखा कि तुम बड़ी प्रसन्‍नता से मेरे पास आई हो। क्‍या यह शुभ शगुन है, तुम्‍हारे जल्‍दी लौटने का? मैं तहे दिल से तुमसे मिलना चाहता हूँ, चाहे कुछ भी हो जाए। देखो, मेरा प्‍यार कितना गहरा है!
आज काफी बादल हैं। दोपहर में बारिश हुई थी। मैंने ‘‘स्‍पेशल लंच’’ खाया और अचान, च्‍यूएन, आराम या दूसरे थाई विद्यार्थियों से मिलने होस्‍टेल से निकला, मगर मुझे वापस लौटना पडा़; बाहर बारिश हो रही थी। चूंकि ये गणतन्‍त्र दिवस है, रात को खाना नहीं मिलेगा। हमें या तो भूखे रहना पड़ेगा या बाहर जाकर खाना पड़ेगा। ये भारतीय तरीका है अपना गणतन्‍त्र दिवस मनाने का। यह तो अच्‍छी बात है कि साल भर में ऐसे थोडे-से ही दिन होते हैं, जब हमें इस तरह से उपवास करना पड़ता है, वर्ना, हम भूख से मर ही जाएँगे। मेरे दिमाग में लोकप्रिय थाई कहावत आती हैः खाने की भूख इन्‍सान को मार सकती है; मगर प्रेम और स्‍नेह की भूख नहीं मारती। मेरे लिये तो इसका उल्‍टा ही सही है! शाम को वुथिपोंग और सांगकोम मेरे कमरे में आए। वुथिपोंग हमारे लिये एक स्‍पेशल खाने की चीज लाया थाः सांगकोम मेरे कपड़े लाया था, जो मैंने महेश को प्रेस करवाने को दिये थे। दोनों को धन्‍यवाद। उनसे बातें करते समय मैंने यूँ ही वुथिपोंग से पूछा लिया कि क्‍या ओने को तुम्‍हारा कोई खत मिला है। उसने कहा कि उसे शनिवार को खत मिला है। तुम्‍हारी सलामती की फिक्र से मैं ओने के पास ज्‍यादा जानकारी लेने के लिये गया। उसने मुझे दिलासा दिया कि तुम और तुम्‍हारे माता-पिता अच्‍छे हैं। मुझे यह जानकर तसल्‍ली हुई कि तुम्‍हारे या तुम्‍हारे माता-पिता के साथ कोई अन्‍होनी नहीं हुई। मुझे अपने आप पर दया भी आई कि मैं तुम्‍हारे बारे में ‘‘ज्‍यादा ही’’ परेशान था।
और, बेशक, जब मैं दूसरों से अपनी तुलना करता हूँ तो मुझे दुख होता है। तुम औरों को लिख सकती हो, मुझे नहीं। मुझे किसी सबूत की जरूरत नहीं है यह निष्‍कर्ष निकालने के लिये कि तुम औरों के मुकाबले मेरी कम फिक्र करती हो। तुम्‍हारे तौर-तरीकों से यह साफ जाहिर है। मैं दिमाग में उलझन लिये होस्‍टेल वापस लौटा। मुझे ऐसा लगता है कि मुझे तुम्‍हारे रास्‍ते से दूर फेंक दिया गया है। तुमने मेरे साथ ऐसा क्‍यों किया, मैं तो हर चीज में तुम्‍हारा ही हूँ, जो भी मैं करता हूँ, मगर तुमसे मुझे प्रतिसाद नहीं मिलता। ये तो बस एक-तरफ़ा मामला है। फिर आपस का प्‍यार कहाँ है? मगर मुझे खुशी होती है, जब मैं यह पूछते हुए अपने आप का मजा़क बनाता हूँ किः कुछ और माँगने वाला मैं होता कौन हूँ? उसे मेरे साथ जैसा बर्ताव करना है, करने दो। ये मेरा ही कुसूर है कि मैं परेशान होता हूँ। अगर मैं मर भी जाऊँ तो मेरी कौन फिक्र करेगा? मेरे लिये कौन रोएगा? मेरे साथ ऐसा ही होना चाहिए। तुम मुझे ‘‘ब्‍लडी फूल’’ कह सकती हो या इसी तरह का कुछ भी।
आज, कोई माफ़ी नहीं माँगनी है, क्‍योंकि मुझे एहसास हो गया है कि मेरे दुख बाँटने वाला इस दुनिया में कोई नहीं है। जब तुम खुश होती हो, तो एक मिनट के लिये भी मुझे याद नहीं करती हो। यह व्‍यक्तिपूरक दुनिया है जहाँ हर इन्‍सान सिर्फ अपने लिये खुशी ढॅूढता है, दूसरों के बारे में जरा भी नहीं सोचता, अपने प्रेमी की तो बात ही क्‍या है! अपने प्रति तुम्‍हारी यह बेरहमी देखकर मुझे बहुत बुरा लगा है। इसका सबूत है मेरी डायरी, आज मेरा दिल डूब रहा है।





मैं अपना प्यार - 15




*Arte perennat amor (Latin): प्‍यार को कोशिशों से संभाला जाता है – प्‍यूबिलियस साइरस F1 1st Century BC
पन्‍द्रहवाँ दिन
जनवरी २५,१९८२

यह एक और दिन था, जब मुझे तुम्‍हारे खत का इंतजार था। मैं बैठे-बैठे देख रहा था कि कब पोस्‍टमैन होस्‍टेल-गेट पर एअर-मेल बाँटने आता है। जैसे ही वह आया, मैं उसकी ओर भागा, मगर उसने कहा, ‘‘तुम्‍हारे लिए कोई खत नहीं है!’’ मैं रोने-रोने को हो गया। तुम्‍हें हो क्‍या गया है, मेरी जान? क्‍या तुम मुझे खत लिखने के लिए एक मिनट भी नहीं निकाल सकती? तुम मेरे प्रति बहुत ठंडी और क्रूर हो गई हो। मैं कैसे बर्दाश्‍त करुँ! यह मुझे इतना परेशान कर देता है कि मैं अपने आप को संभाल नहीं पाता। क्‍या तुम महसूस नहीं करती कि मैं तुम्‍हारा इस तरह से इंतजार कर रहा हूँ, जैसे खिलता हुआ गुलाब बारिश का करता है? अगर तुम ही नहीं तो मेरे प्‍यार को कौन सहारा देगा?
मुझे तो ऐसा लगता हे कि तुमसे दुबारा मिलना संयोगवश ही हो पाएगा। रातों में कई बार तुम्‍हारे सपने आते हैं, मगर ये सपने बड़े मनहूस होते हैं। वे मुझे उत्‍तेजित कर देते हैं और मेरी निराशा को हवा देते हैं। मैंने अपने आप को दिलासा देने की भरसक कोशिश की यह सोचकर कि तुम मेरे पास वापस आ रही हो कल, या परसों, या उससे अगले दिन, अगले हफ्ते... ! मैं, बेशक, उम्‍मीद पर ही जी रहा हूँ। मेरी उम्‍मीद तुम्‍हीं से पूरी होगी। मेरी जिन्‍दगी को दुखमय न बनाओ, प्‍लीज।
लंच के बाद मैं होस्टेल के सामने वाले प्‍लेग्राऊण्‍ड पर बैठने के लिये गया। मैं क्रिकेट का खेल देख रहा था, भारतीय खेलों में सबसे लोकप्रिय। मगर भगवान ही जानता है कि मेरा दिमाग खेल में जरा भी नहीं था। वह तो एक हजार मील दूर भाग गया था। खेल में कोई मजा नहीं आया तो मैं भारी दिल से निकट के पोस्‍ट-ऑफिस की ओर चल पडा़, एक ऐरोग्राम खरीदा, उस पर कुछ लिखा, तुम्‍हारा पता लिख और पोस्‍टबॉक्‍स में डाल दिया। ये दूसरा खत लिखा था मैंने तुमको। पहला खत परसों (शनिवार को) लिखा था। उदासी मुझे तुम्‍हें लिखने के लिये कह रही है। मैं इस तरह बेदिल से नहीं रह सकता, मालूम नहीं क्‍यों। इसे मैं अपना कर्त्‍तव्‍य समझता हूँ। मैं उसके घर से शाम 7.00 बजे निकला। कोहरा है और ठंड है। हॉस्‍टेल में वापस आते हुए मैं कोई गीत गुनगुना रहा था। कैम्‍पस नीरव था, आस पास कोई भी नहीं था। कम से कम आज मैंने तुम्‍हारे लिये कुछ किया है। मालूम नहीं तुम मेरी इस मदद की सराहना करोगी या नहीं। मुझे इसकी फिकर नहीं है। मैंने ये ‘‘बस तुम्‍हारे लिये’’ किया।
आज सोम्‍मार्ट ने एक नई बुक-शेल्‍फ खरीदी, मगर इसे रसोई का सामान रखने के लिये इस्‍तेमाल कर रहा है। वह एक अच्‍छा रूम-मेट है, हॉलाकि कुछ भावना प्रधान है। खैर, मैं उसके व्‍यक्तित्‍व को स्‍वीकार करता हूँ और उसकी इज्‍ज़त करता हूँ। कोई भी इन्‍सान सम्‍पूर्ण नहीं होता! मैं उससे ज्‍यादा सम्‍पूर्ण नहीं हूँ। यह आपसी समझदारी है, जो हमें एक दूसरे से बांधे रखती है। हम सभी इन्‍सान हैं। गलती करना इन्‍सान का स्‍वभाव है, क्षमा करना ईश्‍वर का – जैसी कि एक कहावत है!
दोपहर में और शाम को मैं घर पर ही रहता हूँ। 5.30 बजे म्‍युआन मेरे कमरे में गर्म पानी से नहाने के लिये आया। मैंने उससे कहा कि चौकीदार से खत के बारे में पूछ ले। मगर वह यह कहते हुए वापस आया, ‘‘नहीं...नहीं...तुम्‍हारे लिये कोई खत नहीं है।’’ उसने स्‍नान किया और वह अपने हाऊस चला गया। मैंने अपने लिये कॉफी बनाई, नहाया और आज की डायरी पर वापस आया। मैं कमरे में अकेला हूँ और सोम्‍मार्ट तो सुबह से अपनी क्‍लास में गया है, वह अब तक वापस नहीं लौटा है।
मगर फिर भी मैं इसे संजीदगी से नहीं लेता क्‍योंकि मैं उदास और हताश हूँ। मैं अपनी डायरी अभी खतम करता हूँ इस शिकायत के साथ, ‘‘मेरे पास जल्‍दी से आ जाओ, मेरी जान!’’ मैं तुम्‍हें देखने के लिय बेचैन हूँ।
अब मैं आज की डायरी खत्‍म करता हूँ। अपने माता-पिता के साथ ढेरों खुशी के दिन बिताओ। मगर मुझे गुड-नाइट चुंबन तो लेने दो।

मैं अपना प्यार - 14




*Animo virum pudicae non oculo eligunt (Latin) : समझदार औरतें मर्द चुनने में दिल से नहीं, बल्कि दिमाग से काम लेती हैं – प्‍यूबिलियस साइरस F1 1st Century BC
चौदहवाँ दिन
जनवरी २४,१९८२

कल मैंने ‘‘रैगिंग ने विद्यार्थी की जान ली,’’ इस समाचार पर ध्‍यान नहीं दिया, क्‍योंकि मैंने इसे महत्‍वपूर्ण नहीं समझा था। मगर आज वही समाचार फिर से प्रकाशित हुआ इसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। प्रेसिडेन्‍ट श्री एन० संजीव रेड्डी ने राज्‍य सरकारों और शिक्षा संस्‍थानों से अपील की कि वे इस ‘‘क्रूर’’ एवम् ‘‘तेजी़ से फैलती बुराई - रैगिंग’’ को रोके। आँसू भरी आवाज में श्री रेड्डी ने रैगिंग करने वालों से पूछाः ‘‘क्‍या तुम लोग विद्यार्थी हो? क्‍या तुम कॉलेजों में पढ़ने के लिये आते हो?’’ स्‍टेट्समेन के अनुसार, रैगिंग ने, जिसकी ‘‘घृणित प्रथा’’ कहकर निन्‍दा की जाती है, जिसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के सीनियर विद्यार्थी फ्रेश छात्रों की रैगिंग करते हैं, आज अपनी पहली बलि ले ली बैंगलोर युनिवर्सिटी में। उस छात्र ने, जो रैगिंग के अपमान को बर्दाश्‍त न कर पाया, इस घृणित प्रथा के विरोध में आत्‍म हत्‍या कर ली। रैगिंग-दिवस की थाई विश्‍वविद्यालयों में ‘‘नये छात्रों का स्‍वागत करने’’ की प्रथा से तुलना की जा सकती है, जो एक समय में बहुत प्रचलित थी। पता नहीं वह आज भी है या नही। ये थी आज की शोकपूर्ण खबर !
तुम्‍हारे दिल्‍ली से जाने के बाद यह दूसरा इतवार है। मैं लगभग पूरे दिन कमरे में बन्‍द रहा। बाहर जाना अच्‍छा ही नहीं लगता। अपने कमरे में ही पड़े रहना मुझे बड़ा़ अच्‍छा लगता है, मगर तुम्‍हारी बड़ी याद आती है। कुछ भी नहीं किया जा सकता, क्‍योंकि तुम मुझसे हजारों मील दूर हो। क्‍या तुम एक पल के लिये भी मुझे याद करती हो? शायद नहीं, अगर तुम्‍हें मेरी याद आती, तो तुम मुझे खत लिखती। मगर, तुम तो जानती हो कि मुझे तुम्‍हारी कोई खबर नहीं मिली है। क्‍या इसका मतलब ये हुआ कि तुमने मुझे छोड़ दिया है? जवाब देना मुश्किल है और मैं किसी जवाब को बर्दाश्‍त भी नहीं कर पाऊँगा। मुझे तकलीफ होती है यह सोचकर कि तुम मेरा खयाल उम्‍मीद से कम रखती हो। ये किसी का भी दोष नहीं है। ये सिर्फ वक्‍त का और जिन्‍दगी की जरूरत का मामला है। मैं इसके लिये तुम्‍हें दोष नहीं दे सकता। बल्कि मैं अपने आप को ही दोष दॅूगा कि मैं जिन्‍दगी के प्रति इतना काल्‍पनिक हूँ।
शाम को, करीब 5.30 बजे, मैं मि० कश्‍यप के पास गया तुम्‍हारे काम के बारे में पूछ-ताछ करने के लिये। जब मैं वहाँ पहुँचा तो वे अकेले थे। मैंने उनसे तुम्‍हारे काम के बारे पूछा और यह भी बताया कि मैं कुछ दिन पहले भी आया था। उनहोंने तुम्‍हारा काम अभी तक देखा नहीं है, मगर यह कहा कि तुम्‍हारा काम बढि़या है, क्‍योंकि शुरू करनेसे पहले तुमने उनसे अच्‍छी तरह विचार विमर्श कर लिया था। अब तुम चैन की सॉस ले सकती हो। चिन्‍ता की कोई बात नही। उन्‍होंने मुझसे तुम्‍हारा पता पूछा। मैंने कहा कि तुम्‍हारे पत्र में पता लिखा है। उन्होंने उसे देख लिया और वादा किया कि वे खुद ही तुम्‍हें सूचित करेंगे। वे वाकई में तुम्‍हारी रिसर्च के काम में तुम्‍हारी मदद करना चाहते है। उनके उत्‍साह ने मुझे बहुत प्रभावित किया। तुम्‍हारे काम को एक तरफ रख कर मैंने रिसर्च मेथोडोलॉजी पर कुछ मशविरा किया। रिसर्च कैसे शुरू करना चाहिए, इस बारे में उन्‍होंने एक बड़ी उपयोगी सलाह दी। 6.30 बजे परिवार के सब लोग इकट्ठा हो गए। मैंने प्रसन्‍नता से सबका अभिवादन किया और खास तौर से श्रीमती कश्‍यप से नमस्‍ते कहा। हमने चाय पी और फिर टी०वी० देखा। इतवार की हिन्‍दी फिल्‍म दिखाई जा रही थी। फिल्‍म एक गरीब परिवार के बारे में थी, जिसके पिता किसी तिकड़म से परिवार की गाड़ी खींच रहे हैं। उन्‍हें रास्‍ते की एक होटल से खाना चुराते हुए पकडा़ गया और दो साल के लिये जेल भेज दिया गया। उन्‍होंने जेल से भागने की कोशिश की मगर पकडे़ गए। इस बार उन्‍हें पाँच साल की कैद की सजा सुनाई गई – वह भी बामशक्‍कत। जब उन्‍होंने अपनी सजा पूरी कर ली तो उन्‍हें रिहा कर दिया गया। मगर समाज ने उन्‍हें ठुकरा दिया। किसी ने उन्‍हें समाज का सदस्‍य नहीं माना। हर जगह उन पर प्रतिबन्‍ध लग गया। एक जेल का पंछी समाज द्वारा अस्वीकृत ही कर दिया जाता है, भले ही उसने खुद को सुधार क्‍यों न लिया हो। कैसे समाज में रहते हैं हम! मगर सौभाग्‍यवश उसकी मुलाकात गुरू से होती है जो उसे तराश कर हीरा बना देते हैं। तब से वह धार्मिक जीवन जीने लगे। सुखद अन्‍त! बुराई इस तरह से अच्‍छाई में बदल जाती है।


मैं अपना प्यार for Kindle

  अपना प्यार मैं दिल्ली में छोड़ आया   एक थाई नौजवान की ३० दिन की डायरी जो विदेश में बुरी तरह प्‍यार में पागल था                ...