*Nunc scio suid sit Amor (Latin): अब मैं जान गया हूँ
कि प्यार क्या है –
वर्जिल 70-19 BC – AD C 17
उनतीसवाँ दिन
फरवरी ८,१९८२
मैं
अभी अभी वुथिपोंग के कमरेसे लौटा हूँ। मैंने वहीं डिनर खाया। बाहर कडा़के की ठंड
है। मैं उस कडा़के के मौसम में चलकर वापस आया। आज आसमान एकदम साफ है, क्योंकि आज पूर्णमासी की रात है, साथ ही वह दिन भी हे जब भगवान बुद्ध
ने अपने शिष्यों को, जो
बिना किसी पूर्व सूचना के एकत्रित हो गए थे, ओवापातिमोख का उपदेश दिया। ओवापातिमोख
के तीन प्रमुख सिद्धान्त हैः
१. सभी बुराइयों से दूर रहो
२. अच्छी आदतें डालो
३. मस्तिष्क को शुद्ध करो
थाई
में हम इस दिन को ‘‘माघ
पूजा दिन’’
कहते हैं। परंपरानुसार इस दिन भिक्षुओं को भोजन दिया जाता है, बौद्ध धर्म की पांच शिक्षाओं का पालन
किया जाता है, और
उपोसथा के चारों ओर मोमबत्तियों का जुलूस निकाला जाता है।
आज, इस उत्सव के संदर्भ में मैं एवम् अन्य
थाई विद्यार्थी (भिक्षु,
पूर्व-भिक्षु और आम आदमी) भिक्षुओं को भोजन देने और पाँच शिक्षाओं का पालन करने अशोक
बौद्ध मिशन की ओर चले। ये बडा़ शानदार समागम था, चारों ओर थाई वातावरण था। मगर मेरे
लिये बुरी बात यह रही कि मैं कुछ बीमार था और मोमबत्तियों का जुलूस शुरू होने से
पहले मुझे वापस लौटना पडा़। उस जगह के बारे में थोडा़ सा बताता हूँ।
अतिशयोक्ति
नहीं होगी अगर यह कहूँ कि अशोक मिशन ठीक वैसा ही है जैसा दो साल पहले था, जब मैं यहाँ भिक्षु-वस्त्र उतारने
आया था। कोई ठोस परिवर्तन नहीं हुए हैं। कुछ भिक्षु थे, मगर बहुत सारे ऐसे थे जो भिक्षु नहीं
थे,
विभिन्न देशों सेः लाओ, कम्बोडिया, तिब्बत, वियतनाम, और पश्चिमी देश। मुझे तो यह मठ की
अपेक्षा एक शरणार्थी कैम्प प्रतीत होता है।
वे
एक साथ रहते हैं और अनेक कार्यकलापों में व्यस्त रहते हैं, जिनमें अनेक अवांछनीय हैं। पश्चिमी
लोग ड्रग्स के गुलाम हैं, घडों में नशीली दवाएँ जलाकर पीते हैं, ये एक अलग हिस्से में रहते हैं। केवल
एक भिक्षु ऐसा है जो हमेशा मठ में ही रहता है। वह रेगिस्तान में किसी नखलिस्तान
की तरह है। इस जगह कोई भी खाना पका सकता है – प्रसन्नता से या मजबूरी से। यह उसी
पर निर्भर करता है। मैं स्वीकार करता हूँ कि इस भाग के माहौल के बारे में मेरा
थोडा़ नकारात्मक रूख है। मैं यह नहीं कह रहा कि उन्हें एक साथ नहीं रहना चाहिये, बल्कि यह कह रहा हूँ कि मठ में अनैतिक/अधार्मिक
कृत्य नहीं होने चाहिए।
मेरी
संवेदना को बड़ी चोट पहुँची जब वहाँ रहने वाले किसी ने बताया कि यहाँ तो लड़की भी
बिल्कुल सस्ते में मिल जाती है। पश्चिमी लोगों को, किसी कंकाल के समान इस भाग में इधर
उधर देखना मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं मठ के उस हिस्से से भाग जाना चाहता था, जहाँ मैंने इन चलते फिरते कंकालों को
देखा था। ये यहाँ क्या कर रहे हैं? उन्हें यहाँ रहने की इजाज़त किसने दी? इन सामाजिक अवशेषों के लिये कौन जिम्मेदार
है?
ठीक
है। बहुत हो गया। अब कुछ और कहता हूँ। मैं वुथिपोंग, आराम, रेणु, जस, टूम, जूली और पिएन के साथ युनिवर्सिटी
लौटा। मैं अकेला मॉल-रोड पर बस से उतरा, बाकी लोग अपने रास्ते निकल गए। मुझे बुखार
था। जब मैं कमरे में पहुँचा तो मैंने एस्प्रो की दो गोलियाँ खाली और आराम करने
लगा। मैं आधा-जागा था जब महेश होस्टेल में नहाने के लिये आया। जब वह अपने घर जाने
लगा तो मैंने उससे वुथिपोंग को यह संदेश देने के लिये कहाः
‘‘कृपया
जाओ और ओने को हमारे साथ डिनर करने के लिये ले आओ। मैं कोई खास चीज लेकर तुम्हारे
पास आ रहा हूँ।’’
कुछ
देर बाद मैं उसके कमरे में गया। महेश ने बाहर आकर मेरा स्वागत किया।
‘‘वुथिपोंग
ओने को लाने गया है,’’
उसने कहा।
‘‘क्या
वह तुम्हारे पास चाभी छोड़कर गया है?’’ मैंने पूछा उसने कहा, “नहीं,” और फिर मुझे अपने कमरे में आकर बैठने
को कहा,
वुथिपोंग का इंतजार करते हुए। मैं दस मिनट तक इंतजार करता रहा। वुथिपोंग चेहरे पर
मायूसी ओढ़े आया।
‘‘क्या
हुआ?’’
मैंने उससे पूछा।
‘‘वह
नहीं आना चाहती। वह अपने टयूटर के साथ पढ़ रही है। मुझे बड़ी निराशा हुई है,’’ वह बरसा।
‘‘ठीक
है। उसको अपना काम करने दो, हम अपना काम करेंगे। भूल जाओ उस बारे में।’’
मैंने
उसे दिलासा दिया, यह
न जानते हुए कि और क्या कहूँ। फिर हमने अपना ‘स्पेशल डिनर’ गरम किया और खाया। जब स्पेशल डिनर
खतम हो गया तो उसने कहाः
‘‘कॉफी
तो खतम हो गई है। हम चाय ही पियेंगे।’’
‘‘चलेगा,’’ मैंने कहा।
इस
तरह हमने अपनी मनपसन्द ब्लैक कॉफी के बदले चाय पी। आज महेश ने नोट्स लेने में
मेरी मदद की। मैंने ‘‘थैंकयू!’’ कहा। वुथिपोंग से मैंने ज्यादा बात
नहीं की क्योंकि वह बुरे मूड में था। जब मैं महेश के साथ नोट्स ले रहा था तो
वुथिपोंग महेश के कमरेमें टी०वी० देखते हुए आराम फरमा रहा था। यही एक तरीका है दिल
बहलाने का उसके पास। मैं वाकई में उसकी कोई मदद नहीं कर सकता। मैंने 9.30 बजे अपने
नोट्स पूरे किये और महेश को और उसे ‘गुडबाय’ कहा। सोम्मार्ट मोमबत्ती–जुलूस से वापस लौट
आया था। उसने आश्चर्य से मुझे बतायाः
‘‘सैकडो़
लोग थे मोमबत्ती-जुलूस में’’।
‘‘कौन
थे वे?’’
मैंने पूछा।
‘‘राजदूत,राजनयिक और विद्यार्थी’’ उसने जवाब दिया। मैंने उससे आगे कुछ
नहीं पूछा क्योंकि मैं थका हुआ था। मैंने भारी दिमाग से डायरी लिखना शुरू किया और
अब मैं इसे पूरा कर रहा हूँ। अन्त हल्के दिमाग से कर रहा हूँ। परेशान न हो। दवा
लेकर साऊँगा। कल मैं ठीक हो जाऊँगा। अच्छा, गुड नाइट, मेरी प्यारी।
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