*Militae species amor est (Latin): प्यार भी एक तरह का
युद्ध है – ओविद 43 BC – AD C 17.
छब्बीसवाँ दिन
फरवरी ५,१९८२
आज सुबह मैं बड़े अच्छे ‘मूड’ में उठा, दिमाग भी एकदम स्पष्ट था। बिस्तर
से बाहर आने से पहले मैंने कैसेट के साथ तीन थाई गाने गाए।
देखो!
दिल्ली में फिर वर्ल्ड बुक्स फेयर आ गया है, हर तबके के लोगों के लिये। यह प्रगति
मैदान में हो रहा है ५ से १५ फरवरी १९८२ तक। श्रीमति इन्दिरा गांधीने पांचवे विश्व
पुस्तक मेले के उद्घाटन समारोह की सदारत की।
‘कुछ
पुस्तकें मुझे पसन्द थीं और कुछ अन्य, में स्वीकार करती हूँ, मुझ पर थोपी गई थी। कुछ किताबें मैं
खुले आम पढ़ सकती थी और कुछ पेडों की टहनियों में छिपकर या बाथ-रूम में बन्द
होकर।’ इस
तरह से श्रीमति गांधी ने गुरूवार को किताबों से अपने रिश्ते का वर्णन किया।
मेले
का आयोजन पढ़ने की आदत के विकास और उन्नति के लिये किया गया है (मैं इसमें से आधी
बात पर विश्वास करता हूँ)। इस बार मेले में १०,००० से अधिक पुस्तकें पदर्शित की जा
रही है,
जिन्हे ४५० भारतीय एवं ३० देशों के ६५ प्रकाशकों ने प्रकाशित किया है। अकेले रूसी
ही २०० लेखकों की ३,०००
से अधिक पुस्तके प्रदर्शित कर रहे हैं। मेले की खास बात है ७००० चुनी हुई पुस्तकों
का ‘राष्ट्रीय
प्रदर्शन’ जो
१९८० में आयोजित चौथे पुस्तक मेले के बाद प्रकाशित की गई हैं। लंच से पहले हमने
(मैं,
सोम्मार्ट और सोम्रांग) तय किया कि कल सुबह किताबें खरीदने जाएंगे।
मगर
लंच के बाद प्रयूण आया और सोम्मार्ट को उसके साथ चलने के लिये मनाने लगा। सोम्मार्ट
ने सोम्रांग को मजबूर किया कि वह उनके साथ चले। वे मेरी ओर भी देख रहे थे, मगर मैं काम से बाहर निकल गया। मैंने
अपने दिमाग को कल के लिये तेयार किया था, आज के लिये नहीं, और चाहे जो भी हो जाए इस निर्णय का
पालन करना ही पडे़गा। यहां हम अपने अपने रास्तों पर चल पड़े! जब मैं अपने काम
(पढा़ई) से वापसआया तो मैंने अपने कमरे को नई तरह से सजाया, कुछ कपडे़ धोए, और अपने आप को व्यस्त रखा किसी नई
और रचनात्मक चीज के बारे में सोचते हुए। जैसे ही मैं कमरे में आया वुथिपोंग ने
आकर तुम्हारे होस्टेल की होस्टेल-नाईट के बारे में बताया। उसके कहने के मुताबिक, ओने दस मेहमानों को डिनर पर बुलाना
चाहती थी (मुझे भी?)।
मगर उसने इसे गैर जरूरी समझा। मैंने भी उसकी राय से सहमति जताई। इसलिये सिर्फ
मिराण्डा की लडकियों को ही होस्टेल-नाईट में बुलाया गया। मालूम है एक एक मेहमान
के लिये उन्होंने कितना पैसा दिया? दस रूपये! ये कोई मामूली बात नहीं है।
उसने
मुझसे फिर पूछा कि तुम कब आ रही हो। मैं उससे सिर्फ यही कह सका, ‘‘देखते रहो!’’ और क्या बता सकता था मैं उसे? मुझे खुद को भी नहीं मालूम है। सॉरी, सर, मैं तुम्हें नहीं बता सकता! जब मैंने
कपड़े धो लिये तो हम कॉमन रूम में पिंग-पोंग खेलने चले गए। प्राचक और महेश भी खेल
में शामिल थे। चौथे गेम में मैं ‘कोर्ट’ पर छा गया। मैं खेल के हर पहलू में उनसे
श्रेष्ठ था (शेखी मार रहा हूँ?)। मगर पाँचवे और छठे गेम में मुझे हारना पडा़।
वजह तो कोई नहीं थी, बस
स्पोटर्समेन शिप। अच्छा सबक मिला मुझे! जब गेम खतम हो गया तो मै नहाया और अपने
कमरे में एक कप कॉफी पी गया। सोम्मार्ट और सोम्रांग अभी लौटे नहीं हैं।
6.30
बजे आचन च्युएन सोम्मार्ट, सोम्रांग और मुझसे मिलने आया। दुर्भाग्य से
होस्टेल में मैं अकेला ही बचा था। हमने मौसम और भारतीय जिन्दगी के बारे में कुछ
देर बात की। आचन च्युयेन अपने शोध-प्रबंध के बारे में काफी संजीदा है (मैं तो
उकता गया हूँ)। उसने मुझसे उसके एम.फिल. के शोध-प्रबन्ध के सारांश को संक्षिप्त
करने और व्याकरण सुधारने को कहा (अगर जरूरी हो तो), मैं उसकी मदद करने को तैयार था। मगर
मेरे पूरा करने से पहले ही वह चला गया। उसने मुझसे कहाः
‘‘कल
सुबह मैं तुमसे मिलने फिर आऊँगा’’। उसके सारांश को पढ़ने में मुझे एक घंटा लग
गया। कुछ व्याकरण की रचनाएं दुबारा करनी पड़ी, कुछ शब्दों के बदले दूसरे शब्द
लिखने पड़े,
मगर उसकी ‘‘परिकल्पना’’ को बिल्कुल जैसा का वैसा रखा गया है।
उसकी ‘‘परिकल्पना’’ को मैं कैसे बदल सकता हूँ? लिंग्विस्टिक्स को छोड़कर बाकी सभी
चीजों में मैं उससे छोटा हूँ! आज का काम हो गया, मेरी प्यारी। अब मैं रोकता हूँ। ओह, प्लीज़, भूल न जानाः मैं तुमसे प्यार करता
हूँ,
अभी भी।