*Animo virum
pudicae non oculo eligunt (Latin) : समझदार औरतें मर्द चुनने में दिल से
नहीं, बल्कि दिमाग से काम लेती हैं – प्यूबिलियस साइरस F1 1st Century BC
चौदहवाँ दिन
जनवरी २४,१९८२
कल
मैंने ‘‘रैगिंग
ने विद्यार्थी की जान ली,’’ इस समाचार पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मैंने इसे महत्वपूर्ण नहीं
समझा था। मगर आज वही समाचार फिर से प्रकाशित हुआ इसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया।
प्रेसिडेन्ट श्री एन० संजीव रेड्डी ने राज्य सरकारों और शिक्षा संस्थानों से
अपील की कि वे इस ‘‘क्रूर’’ एवम् ‘‘तेजी़ से फैलती बुराई - रैगिंग’’ को रोके। आँसू भरी आवाज में श्री
रेड्डी ने रैगिंग करने वालों से पूछाः ‘‘क्या तुम लोग विद्यार्थी हो? क्या तुम कॉलेजों में पढ़ने के लिये
आते हो?’’ स्टेट्समेन
के अनुसार,
रैगिंग ने,
जिसकी ‘‘घृणित
प्रथा’’ कहकर
निन्दा की जाती है,
जिसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के सीनियर विद्यार्थी फ्रेश छात्रों की
रैगिंग करते हैं, आज
अपनी पहली बलि ले ली बैंगलोर युनिवर्सिटी में। उस छात्र ने, जो रैगिंग के अपमान को बर्दाश्त न कर
पाया, इस
घृणित प्रथा के विरोध में आत्म हत्या कर ली। रैगिंग-दिवस की थाई विश्वविद्यालयों
में ‘‘नये
छात्रों का स्वागत करने’’ की प्रथा से तुलना की जा सकती है, जो एक समय में बहुत प्रचलित थी। पता
नहीं वह आज भी है या नही। ये थी आज की शोकपूर्ण खबर !
तुम्हारे
दिल्ली से जाने के बाद यह दूसरा इतवार है। मैं लगभग पूरे दिन कमरे में बन्द रहा।
बाहर जाना अच्छा ही नहीं लगता। अपने कमरे में ही पड़े रहना मुझे बड़ा़ अच्छा
लगता है,
मगर तुम्हारी बड़ी याद आती है। कुछ भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि तुम मुझसे हजारों मील दूर
हो। क्या तुम एक पल के लिये भी मुझे याद करती हो? शायद नहीं, अगर तुम्हें मेरी याद आती, तो तुम मुझे खत लिखती। मगर, तुम तो जानती हो कि मुझे तुम्हारी
कोई खबर नहीं मिली है। क्या इसका मतलब ये हुआ कि तुमने मुझे छोड़ दिया है? जवाब देना मुश्किल है और मैं किसी
जवाब को बर्दाश्त भी नहीं कर पाऊँगा। मुझे तकलीफ होती है यह सोचकर कि तुम मेरा
खयाल उम्मीद से कम रखती हो। ये किसी का भी दोष नहीं है। ये सिर्फ वक्त का और
जिन्दगी की जरूरत का मामला है। मैं इसके लिये तुम्हें दोष नहीं दे सकता। बल्कि
मैं अपने आप को ही दोष दॅूगा कि मैं जिन्दगी के प्रति इतना काल्पनिक हूँ।
शाम
को,
करीब 5.30 बजे,
मैं मि० कश्यप के पास गया तुम्हारे काम के बारे में पूछ-ताछ करने के लिये। जब
मैं वहाँ पहुँचा तो वे अकेले थे। मैंने उनसे तुम्हारे काम के बारे पूछा और यह भी
बताया कि मैं कुछ दिन पहले भी आया था। उनहोंने तुम्हारा काम अभी तक देखा नहीं है, मगर यह कहा कि तुम्हारा काम बढि़या
है, क्योंकि
शुरू करनेसे पहले तुमने उनसे अच्छी तरह विचार विमर्श कर लिया था। अब तुम चैन की
सॉस ले सकती हो। चिन्ता की कोई बात नही। उन्होंने मुझसे तुम्हारा पता पूछा।
मैंने कहा कि तुम्हारे पत्र में पता लिखा है। उन्होंने उसे देख लिया और वादा किया
कि वे खुद ही तुम्हें सूचित करेंगे। वे वाकई में तुम्हारी रिसर्च के काम में
तुम्हारी मदद करना चाहते है। उनके उत्साह ने मुझे बहुत प्रभावित किया। तुम्हारे
काम को एक तरफ रख कर मैंने रिसर्च मेथोडोलॉजी पर कुछ मशविरा किया। रिसर्च कैसे
शुरू करना चाहिए, इस
बारे में उन्होंने एक बड़ी उपयोगी सलाह दी। 6.30 बजे परिवार के सब लोग इकट्ठा हो
गए। मैंने प्रसन्नता से सबका अभिवादन किया और खास तौर से श्रीमती कश्यप से ‘नमस्ते’ कहा। हमने चाय पी और फिर टी०वी० देखा।
इतवार की हिन्दी फिल्म दिखाई जा रही थी। फिल्म एक गरीब परिवार के बारे में थी, जिसके पिता किसी तिकड़म से परिवार की
गाड़ी खींच रहे हैं। उन्हें रास्ते की एक होटल से खाना चुराते हुए पकडा़ गया और
दो साल के लिये जेल भेज दिया गया। उन्होंने जेल से भागने की कोशिश की मगर पकडे़
गए। इस बार उन्हें पाँच साल की कैद की सजा सुनाई गई – वह भी बामशक्कत। जब उन्होंने
अपनी सजा पूरी कर ली तो उन्हें रिहा कर दिया गया। मगर समाज ने उन्हें ठुकरा
दिया। किसी ने उन्हें समाज का सदस्य नहीं माना। हर जगह उन पर प्रतिबन्ध लग गया।
एक जेल का पंछी समाज द्वारा अस्वीकृत ही कर दिया जाता है, भले ही उसने खुद को सुधार क्यों न
लिया हो। कैसे समाज में रहते हैं हम! मगर सौभाग्यवश उसकी मुलाकात ‘गुरू’ से होती है जो उसे तराश कर हीरा बना
देते हैं। तब से वह धार्मिक जीवन जीने लगे। सुखद अन्त! बुराई इस तरह से अच्छाई
में बदल जाती है।
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