शनिवार, 26 मई 2018

मैं अपना प्यार - 25



*Adhebenda in iocanda moderatio (Latin): किसी मजा़क को लम्‍बा न खींचो – सिर्सरा 106-43 BC
पच्‍चीसवाँ दिन
फरवरी ४,१९८२

आज का दिन उत्‍साह से भरपूर है। मुझे सकारात्‍मक, प्रसन्‍न और आशावादी होना चाहिये हर चीज के बारे मेः घर में, काम पर, क्‍लास में, मेरे वर्तमान काम के बारे में – हर जगह! दिन भर मुझे नकारात्‍मक विचारों को अपने पास नहीं फटकने देना है, झगडा़ नहीं करना है, क्रोध नहीं करना है। उत्‍साह तेज गति वाला ईंधन है और नकारात्‍मक सोच डी०डी०टी० है मेरी कल्‍पना के लिये! मूल कारण यह है किः अगर हमें जीवन का आनन्‍द उठाना है तो उसके लिये उचित समय अभी है – न कि कल, न कि अगला साल, न कि मृत्‍य पश्‍चात् का कोई अन्‍य जीवन।
यह है मेरी आज की डायरी की प्रस्‍तावना। यह बड़ी शुभ बात थी कि सुबह-सुबह वुथिपोंग हमारे कमरे में आया था। वह ये पूछने आया था कि क्‍या मुझे तुम्‍हारा कोई खत मिला है। उसने एअरपोर्ट पर तुम्‍हारा स्‍वागत करने की इच्‍छा प्र‍कट की यदि उसे तुम्‍हारी वापसी की तारीख का पता चल जाये। हमने पिंग-पोंग का एक गेम खेला और फिर वह अपनी क्‍लास के लिये चला गया।
मैं कॉमन रूम से बाहर आने ही वाला था कि सिस्‍टर जूलिया (ख्रिश्‍चन) भीतर आई एक ईश्‍वरीय संदेश लेकर, उसमें खास तौर से हमें (अनुपम, सोम्‍मार्ट और मैं) आमंत्रित किया लाडक बुध्‍द विहार में शाम को होने वाली अंतरधर्मीय प्रार्थना-सभा में। अनुपम (भारतीय लड़का) होस्‍टल से बाहर था, सोम्‍मार्ट कहीं और था, वह उसे ढूँढ़ नहीं पाई थी। मैंने गेस्‍ट रूम में उसका स्‍वागत किया। उसने मुझे इस पवित्र मिशन के बारे में जानकारी दी, मुझे इस कार्य कलाप में हिस्‍सा लेने के लिए कहा, और इस शुभ समाचार को धार्मिक विचारों वाले लोगों में फैलाने को कहा पी०जी० होस्‍टेल में, ग्‍वेयर हॉल में और जुबिली हॉल में। मैंने अपना धार्मिक कर्त्‍तव्‍य पूरा किया इन तीनों होस्‍टेलों में नोटिस लगाकर। सोम्‍मार्ट ने नोटिस लिखने में मेरी सहायता की और अपनी क्‍लास में चला गया। मेरे अपने होस्‍टेल (पी०जी०मेन्‍स) में, मुझे थोड़ी कठिनाई हुई, मगर ग्‍वेयर हॉल में मै गलत आदमी के पास, ऑफिस-सेक्‍शन के एक कलर्क के पास, पहुँच गया।
पहले तो उसने बिना किसी कारण के सहयोग देने से इनकार कर दिया। मैंने उसे मनाया और उसके ‘‘उछलते दिमाग’’ को शांत किया, उसे अपनी ओर मिला लिया मगर वह फिर भी हिचकिचा रहा था कि इसे करे कैसे। वह कुछ इस तरह बड़बडा़ रहा थाः नोटिस लगाने से पहले इसे किसी रेजिडेन्‍ट-टयूटर द्वारा हस्‍ताक्षरित होना जरूरी है। तब जाकर मुझे परिस्थिति समझ में आई। वह मेरे लिये कुछ नहीं कर सकेगा। मैंने अपना प्‍लान बदल दिया। मैं यूनियन-प्रसिडेन्‍ट (मि० प्रवीण) के पास गया, जिसे मै जानता हूँ और इस नोटिस को लगाने में उसकी मदद मांगी। यहाँ बात हल हो गई। कोई कठिनाई नहीं हुई, जरा सी भी नहीं। उसने चौकीदार से कहा कि नोटिस को मेस के गेट पर लगा दे। इतना आसान था ! मैं आगे चला, जुबिली हॉल की ओर इस उम्‍मीद से कि प्रयून से मदद ले लॅूगा। सौभाग्‍यवश, मुझे वहाँ मणिपुरी दोस्‍त मिल गए। मैंने उनसे पूछा कि इस नोटिस को कहाँ लगा सकता हूँ। उन्‍होंने मेरी सहायता की। मैं अपने होस्‍टल वापस गया कुछ रचनात्‍मक और उत्‍साहपूर्ण काम करने। मैं ग्‍वेयर हॉल से होकर वापस नहीं आया।
मैं दूसरे रास्‍ते से आया। मैंने सिस्‍टर जूलिया को उस भाग के पी०जी० वीमेन्‍स, मिराण्‍डा हाऊस और अन्‍य होस्‍टलो से आते देखा। मैंने उसे नहीं बताया कि मैंन क्‍या-क्‍या काम किया। यह मेरे लिये काफी दूर है। मैं अपने कमरे में वापस लौटा। पन्‍द्रह मिनट बाद मैं कमरे में एक कुर्सी में धँस गया। दो होस्‍टेल-कर्मचारी (ओम प्रकाश और उसका दोस्‍त) मेरे पास आए विवाह-पूर्व सेक्‍स समस्‍या का समाधान पूछने। उसकी कौन मदद कर सकता है (ओम प्रकाश के दोस्‍त की)! दूसरी तरह से कहूँ तो वे मुझे शायद कोई ‘‘विवाह-समुपदेशक’’ समझते हैं, जो उनकी रोमान्टिक समस्‍याओं को सुलझा देगा।
‘‘हमारे सामने एक समस्‍या है, सर,’’ ओम प्रकाश ने कहा।
‘‘क्‍या समस्‍या है?’’ मैंने पूछा।
तब उसने अपने गरीब दोस्‍त की पूरी कहानी सुनाई,
‘‘मेरे दोस्‍त ने ...वो...संबंध...बना लिये...अपनी गर्लफ्रेन्‍ड के साथ। अब उसको बच्‍चा होने वाला है। यह अभी बाप नहीं बनना चाहता। इसे क्‍या करना चाहिए?’’ गर्भपात के लिये कोई दवाई जानते हैं? प्‍लीज इसे बताईये।
मैं बस हंसने की वाला था। ‘‘तुम मुझे समझते क्‍या हो?’’ मैं कोई डॉक्‍टर नही हूँ, न ही विवाह-समुपदेशक।
मगर दुबारा सोचने पर मुझे भी उसके बारे में चिन्‍ता ही हुई। वे मेरे पास मदद मॉगने आए थे और मुझे उनको निराश नहीं करना चाहिए था, मैंने अपने आप में सोचा। फिर मैंने उनसे दो में से एक काम करने को कहा।
१.       किसी डॉक्‍टर से मिलकर सलाह ले
२.       शादी कर ले और पितृत्‍व की जिम्‍मेदारी निभाए
मालूम नहीं मेरी सलाह का उन पर क्‍या असर होगा। मगर मैं उनके लिये इतना ही कर सकता था। भगवान उन्‍हें आर्शीवाद दे! मैं बेवकूफ ही सही।
मुझ पर यकीन करो, स्‍वीट हार्ट, आज मैंने एक बडा़ काम किया है। मैंने अंतर-धार्मिक प्रार्थना सभा में हिस्‍सा लिया जो लाडक बुध्‍द विहार में (ISBT के पास) आयोजित की गई थी। अकेला नहीं गया। मैं वुथिपोंग और महेश को भी साथ ले गया। हम वहाँ समय पर पहुँच गए (5.30 बजे) करीब चालीस लोग हॉल में मौजूद थे। प्रार्थना-हॉल के प्रदेश द्वार पर हमारा स्‍वागत किया गया और सिस्‍टर जूलिया एवम् फादर विन्‍सेन्‍ट (चेयरमेन) ने हमें अपनी सीटें दिखाई। वहाँ जो विभिन्‍न धर्मो और संस्‍कृतियों से आए थेः बौद्ध, ख्रिश्‍चन, हिन्‍दू, उनमें सबसे महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति थे फादर विन्‍सेन्‍ट, लामा लोबसांग, डा०श्रीवास्‍तव एवं दो अन्‍य (मुझे उनके नाम नहीं मालूम)। सभा का आयोजन एक चौक मं किया गया था। हम एक दूसरे के आमने-सामने बैठे।
हमारी सभा का आरंभ हुआ फादर विन्‍सेन्‍ट के उद्घाटन भाषण से, जिसके बाद विश्‍व शांति के लिये धार्मिक गीत प्रस्‍तुत किये गए, एक ख्रिश्‍चन सिस्‍टर द्वारा गाया गया गीत बहुत सुरीला था और श्रोतओं पर उसने बहुत असर किया। मुझे उसके गीत ने बहुत प्रभावित किया। फिर हमने सभा का समापन विश्‍व-शांति में धार्मिक योगदान पर चर्चा से किया और सबसे अन्‍त में हमने अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हथियारों की बढ़ती प्रतिद्वन्द्विता पर चिन्‍ता प्रकट की। हम अपनी चिन्‍ता को किस प्रकार प्रकट करें, इस बारे में कुछ सुझाव दिए गए। कुछ लोगों ने जो़र देकर कहा कि भारतीय प्रधानमन्‍त्री इन्दिरा गांधी को एक पत्र भेजा जाए। और लोगों ने कहा कि इसे संयुक्‍त राष्‍ट्र को भेजना बेहतर होगा। मगर अन्‍त में हम इस नतीजे पर पहुँचे कि दोनों प्रस्‍ताव मान लिये जाएं। सभा के समापन से पूर्व चर्चा के अगले विषय को निश्च्ति किया गया। विषय है ‘‘इतने सारे धर्म, इतना सारा दुःख’’, जब सभा समाप्‍त हो गई तो सिस्‍टर जूलिया ने चेयरमेन, फादर विन्‍सेन्‍ट से मेरा परिचय करवाया। वुथिपोंग और महेश हॉल के बाहर मेरा इंतजार कर रहे थे। फिर हम तीमारपुर गए जहाँ वुथिपोंग ने मोमबत्‍ती जलाई।
हम बड़े अचरज में पड़ गए कि हमारी मेज पर डिनर रखा था। साथ में संदेश था
मेरे प्‍यारे फी-माइ,
मैं डिनर के लिये यहाँ आई हूँ। बाहर कडा़के की ठण्‍ड है। मैं तुम्‍हारे और फी डेविड (मेरा उपनाम) के वापस आने तक इन्‍तजा़र नहीं कर सकती। ये डिनर रख रही हूँ। ढेर सारे प्यार और सम्‍मान के साथ,
ओने
हमने ओने का डिनर बहुत पसन्‍द किया और उसकी हमारे बारे में चिन्‍ता की भी सराहना की। मैंने वुथिपोंग के साथ डिनर खाया, फिर एक कप कॉफी पी। वुथिपोंग ने डिनर की यह कहते हुए प्रशंसा की कि ऐसा लज्‍जतदार खाना उसने पिछले कई सालों में नहीं खाया है। मैंने भी सहमति दर्शाई। मुख्‍य बात है कि ओने वह लड़की है जो उसके दिल में है। काश, ओने भी उसे प्‍यार कर सकती। मगर उसकी जिन्‍दगी इतनी भाग्‍य-निर्णायक है कि यह प्‍यार का नहीं, बल्कि भाग्‍य का मामला है। मैं ईश्‍वर से प्रार्थना करुँगा कि वह अपनी लगन और कोशिश में सफल हो। मैं अपने होस्‍टेल रात के 9 बजे पहुँचा। सोम्‍मार्ट अपनी पढा़ई में मगन था।
उसने मेरे लिये दो केले रखे थे। मुझे अपनी लन्‍दन की एक मित्र का पत्र-बधाई कार्ड मिला। ये बडा़ लाजवाब कार्ड है। आज तक मुझे ऐसा कार्ड नहीं मिला था। यह एक बन्‍दर का स्प्रिंग-बॉक्‍स है। जब तुम इसे खोलते हो तो बन्‍दर तुम्‍हारी तरफ देखकर गुस्‍से से मुस्‍कुराता है। उसका शुक्रगुजा़र हूँ! अब, मेरी जान, मैं लिखना बन्‍द करता हूँ, क्‍योंकि रात का एक बज चुका है। मैं कुछ गाने सुनूँगा और फिर सो जाऊँगा।
मुलाका़त होने तक, डार्लिग!
ढेर सारा प्‍यार।















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