*Credula
res amor est (Latin): प्यार
में हम हर चीज पर विश्वास कर लेते हैं Ovid
43 BC-AD C.17
आठवाँ दिन
जनवरी १८,१९८२
आज
मैं ‘‘स्टेट्समेन’’ की हेडलाईन देखकर बुरी तरह चौंक गया, लिखा थाः ‘‘अमेरिका की स्नायु-गैस संग्रह करने के
कदम पर चिंता।’’
आगे लिखा थाः
‘‘राजनयिक
एवं सैन्य पर्यवेक्षक रीगन प्रशासन के स्नायु गैस को उत्पन्न करने तथा संग्रहित
करने के तथाकथित फैसले से चिंतित हैं जिसे सोवियत संघ के साथ युध्द होने की
स्थिति में इस्तेमाल किया जायेगा। सोवियत संघ के रासायनिक शस्त्रों के निर्माण
के जवाब में अमेरिका स्नायु-गैस का निर्माण करेगा।’’
निःसंदेह, यह दोनों महाशक्तियों के बीच के
ख़तरनाक संघर्ष की मिसाल है। मुझे दो शब्दों में निहित अर्थ से धक्का पहुँचा हैः
स्नायु-गैस और रासायनिक शस्त्रास्त्र। मैं सोच भी नहीं सकता कि इनमें से किसी
का भी क्या भयानक परिणाम होगा। मेरे विचार से, यदि ऐसा होता है तो इसका मतलब होगा
पूरी दुनिया का विनाश, और
मानव जाति का भी नाश। हमें घुटने टेक कर ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि दुनिया
में इस तरह का विनाश न हो।
सुबह
मैंने दो घंटे बढ़िया नींद ली। खास कुछ करने को था नहीं, इसलिये सो गया। वैसे स्वभाव से मैं
आलसी नहीं हूँ। तुम तो जानती हो, है ना? मगर, आह, मैं पैदा भी थका हुआ था (मेरी माँ ने बताया था!)
मैं
१२.०० बजे उठा। सबसे पहला काम – होस्टल के लेटर-बॉक्स में तुम्हारा खत देखना।
मगर कोई फा़यदा नहीं हुआः अब तक तुम्हारा कोई खत नहीं आया। मैं बेचैन हो रहा हूँ, मेरी प्यारी! मैं बड़ी संजीदगी से तुम्हारी
ओर से किसी खबर का इंतज़ार करता रहा - जब से तुम गई हो तब से। मगर भगवान ने अब तक
मेरी प्रार्थना नहीं सुनी। मैं मायूस हो गया। मैं कमरे मे वापस आया और बड़ी मायूसी
से सूरते-हाल पर गौर करने लगा। प्यार मानसून की तरह हैः आता है, तेजी से बरसता है, फिर चला जाता है। ये बड़ी बुरी बात है, क्योंकि मैं ऐसा प्यार चाहता हूँ जो
भरोसे के काबिल हो,
जैसे कि सूर्यास्त। मैंने अपने आपको यह सोचकर समझाने की कोशिश की कि वक्त मेरे
हर सवाल का जवाब देगा। निराशा के बादल छँट गए। बडा सुकून मिला!
मैंने
हमेशा की तरह लंच-टाईम पर खाना खाया और एक घंटे तक अपने कमरे में गाने सुनता रहा।
फिर मैं लाइब्रेरी गया और मैगजि़न-सेक्शन में दो घंटे बिताए। तीन दिनों से जो
निबन्ध अधूरा पड़ा था वह पूरा किया। वही ‘मोन्टेग्यू की व्याकरण में प्रत्याख्यान
और स्वीक़ति’।
पीछा छूटा। मैं सेन्ट्रल लाइब्रेरी से बाहर आया और आर्टस फैकल्टी की लाइब्रेरी
गया ‘‘Reading
in English Tranformational Grammar (by Jacobs and Rosenbaum) (जैकब और रोजे़नबाम की ‘‘अंग्रेजी परिवर्तनीय
व्याकरण पर निबंध’’) लेने। यह किताब मेरे शोध कार्य के लिये अत्यन्त
महत्वपूर्ण है। मुझे कुछ परेशानी हुई क्योंकि मैं कैटलोग नंबर देखे बिना
लाइब्रेरियन के पास चला गया। पहले तो उसने मेरी सहायता करने से इनकार कर दिया, इसलिये मैंने खुद ही उसे ढूँढ़ने की
इजाजत माँगी। उसने इजाजत दे दी। मगर मेरा काम बना ही नहीं, क्योंकि मुझे उस जगह की आदत नहीं थी।
उसे मेरी दया आई। उसने कैटलोग नंबर ढुँढने में मेरी मदद
की और आखिरकार वह किताब ढॅूढकर मुझे दे दी जिसकी मुझे इतनी जरूरत थी। मैंने उसे
धन्यवाद कहा और संतुष्ट होकर लाइब्रेरी से निकला। आधे-अधूरे मन से मैं होस्टल
लौटा (बचा
हुआ आधा मन तुम्हारे साथ था)। वापस आते समय मुझे फुटपाथ पर मॅूगफली बेचने
वाले की गरीबी का अहसास हुआ। इसलिये मैंने मूँगफली के बहुत छोटे पैकेट के लिये उसे
एक रूपया दे दिया। जुबिली एक्सटेन्शन हॉल के पास मुझे रेव चावरा मिले। मैंने उन्हें
मूँगफली पेश की। उन्होंने थोड़ी सी लीं हम जुदा हुए।
मैं
5.30 बजे होस्टल पहुँचा, १५ मिनट थोड़ा आराम किया और धुले हुए कपड़े
इस्त्री करने के लिये धोबी के पास गया जो वुथिपोंग के कमरे में था। जब तक मेरा
काम हो रहा था मैं वुथिपोंग से गप्पें लड़ाता रहा। डिनर के लिये वापस होस्टल
आया। होस्टलर्स मेस के दरवाजे पर जमा हो गये थे, हरेक ‘‘पहले’’ घुसना चाहता था। मैं न तो पहला था, न ही आखिरी। मगर बेशक मैं पहले बैच
में था! डिनर में ‘मीट’ (मटन) था। इसलिये वे धक्का-मुक्की
कर रहे थे। लानत है!
डायरी
मैंने डिनर के बाद लिखी। अब मैं इसे खतम कर रहा हूँ। इसके बाद मैं थोड़ी देर पढूँगा
और फिर तुम्हें ‘गुड
नाईट कहूँगा’।
अन्त में,
मुझे विश्वास है किः ‘प्यार’ आता-जाता रहता है, मगर एक प्यार करने वाला इन्सान कभी
गर्मजोशी नहीं खोता। काश, मैं तुम्हें ‘गुड नाईट’ चुंबन दे सकता। अलबिदा, मेरे प्यार। तुमसे फिर मिलूंगा। तुम्हारे
प्रति अपने तमाम समर्पण और लगन के साथ।
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