*Da mini mille basia, deinde centum, Dein mille
altera. Dein Secunda centum Deinde Usque altera, deinde centum (Latin): सौ के बदले मुझे
हजा़र चुम्बन दो, और एक हजा़र,
एक और सौ; फिर एक और हजार और फिर सौ और – होरेस 65-8 BC
बीसवाँ दिन
जनवरी
३०,१९८२
चलो, आज की अपनी डायरी तुम्हारे प्रति प्यार
को वाक्य-विन्यास द्वारा प्रदर्शित करते हुए करता हूँ:
‘‘मैं
तुमसे इतना प्यार करता हूँ जो पत्थर के दिल को भी पिघला दे, मगर वह एक जीवित, सांस लेती हुई औरत के दल को, जैसी कि तुम हो, पिघलाने के लिये काफी कम है।’’
यह
वाक्य मेरे ‘‘प्रेम
पर शोध-प्रबन्ध’’ का
सार है, जो
मैं ‘‘जीवन
के विश्वविद्यालय’’
में ‘‘हयूमेनिटीस’’ में पी०एच०डी० के लिये प्रस्तुत करने
जा रहा हूँ। मैंने तुम्हें अपना गाईड बनाने का निश्चय कर लिया है। मैं उसके साथ
काम करने को तैयार हूँ और मुझे विश्वास है कि मेरा शोध-प्रबन्ध दो या तीन महीनों
में पूरा हो जाएगा।
और
अब,
मेरी प्यारी,
दिल्ली की अपनी जिन्दगी के बारे में।
कल
रात मैं सो नहीं पाया और सुबह भारी दिमाग और थके शरीर से उठा। मानसिक तल्लीनता ने
परेशानी,
चिन्ता और अनिद्रा को जन्म दिया। मगर यह कोई जिन्दगी और मौत का मामला तो नहीं
है। यदि हम मानसिक शांति वापस ला सकें या फिर ध्यान-धारणा में मगन हो जाएं तो
इससे छुटकारा पा सकते है। मुझे इसकी फिकर नहीं है। यह तो मानव जीवन का एक प्रसंग
है। ठीक है। आगे बढो।
सुबह
9.30 बजे मैं सोम्रांग के साथ कनाट प्लेस गया। वह चार्टर्ड बैंक में अपना ड्राफट भुनाना
चाहता था और किताबों के प्रति अपनी क्षुधा को शांत करना चाहता था। और मेरा
उद्देश्य था उसका मार्गदर्शक साथी बनना। जब तक वह अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, मैं बैंक से खिसक लिया जिससे दुकान की
खिडकियों से किताबों को पास से देख सकूं। जब मैं बैंक वापस पहुँचा तो वह मेरी ओर
लपका और बोलाः
‘‘तुमने एक असफल
बैंक-डकैती के चश्मदीद ग्वाह बनने का मौका खो दिया।’’
फिर वह
हौले-हौले मुझे पूरी कहानी सुनाने लगाः
‘‘अलार्म-बेल गा रही थी। गार्ड ने अपने सिपाही को फायर करने
के लिये तैयार रहने को कहा।’’
‘‘क्या हो रहा है?’’ मैंने उससे पूछा।
‘‘काऊन्टर
पर झगडा़ हो रहा था। वह इतना खतरनाक था कि हर कोई घबरा गया। मगर वह मजाक ही निकला।’’
‘‘क्या
वास्तविक मजाक है।’’
मैंने कहा।
हम
हँस पड़े और बाहर निकले। कनाट प्लेस पर हम किताब के शिकारियों की तरह एक दुकान से
दूसरी दुकान में घूमते रहे। उसे एक भी किताब पसन्द नहीं आ रही थी। मैं तो सिर्फ
किताबें छान रहा था। थकावट और भूख के कारण हमने ‘‘नॉक-आऊट’’ में खाना खाया। भारत में आने के बाद
से उसका यह पहला मौका था, भारतीय मार्केट में जाने का, और तुम्हारे दिल्ली से जाने के बाद
मेरा भी पहला मौका था। इसके बाद हमने मुन्शीराम पब्लिशर्स तक रिक्शा किराये पर
लिया (कनाट पलेस से तीन रूपये)। किताबें चुनने में डेढ़ घंटा लग गया। उसने दो
किताबें लीं और हम होस्टेल वापस आ गए। जब होस्टेल पहुँचा तो मेरे सिर में बेहद
दर्द हो रहा था। मैंने दो घंटे बिस्तर में आराम किया। महेश आया, नहाने के लिये। मैं जागा, मगर सिर में दर्द अभी भी था। जब मैं
यह लिख रहा था,
डिनर की बेल बजने लगी। मैंने तय किया कि डायरी पूरी करके डिनर के लिये देर से
जाऊँगा। अब मैं नहाने जा रहा हूँ, और फिर डिनर! आज रात को पढूँगा। तुम्हारे
लिये मीठे सपने की कामना करता हूँ, मेरी जान।
पुनश्चः
आज रात को सोम्मार्ट को जुकाम हैं। मैं चाहूँगा कि वह जल्दी सो जाए, लाईट बन्द हो गई है।
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