*Si poteris vere, si minus apta tamen (Latin): संभव हो तो मुझे सत्य
बताओ, यदि न हो तो वह करो जो सबसे अच्छा हो – ओविद 43BC-AD C 17
बाईसवाँ दिन
फरवरी १,१९८२
फरवरी
८२ की पहली सुबह है, और
बाहर घना कोहरा छाया है। जब मैं डायरी लिख रहा हूँ तो सूरज इस निराश दुनिया को
रोशन करने के लिये चमक रहा है। आज मैं बहुत उत्सुक हूँ कुछ रचनात्मक, कुछ जोशभरा काम करने के लिये। वक्त आ
गया है कि इसे कर ही लूँ। जिन्दगी बहुत छोटी है। मैं अब और सोकर इसे नहीं
गुजारुँगा। जैसा कि एक ब्रिटिश डॉक्टर ने कहा है कि सबसे ज्यादा तन्दुरूस्त, प्रसन्न, सफल और विद्वान व्यक्ति वे होते हैं
जो कम से कम सोते हैं,
करीब पाँच घण्टे हर रात। ‘‘इससे ज्यादा’’, वह कहता है, ‘बुरी आदत है और यह दिमाग को सुस्त बना
देती है।’
हमें अपने दिमाग को सजीव और कार्यशील रखने के लिये खुद को सक्रिय एवम् सजीव रखना
होगा। अच्छा कहा है। अब से मैं एक नई शुरूआत करुँगा। देखें, कब तक निभा पाता हूँ। ठीक है, डायरी की ओर चलूँ।
सुबह
10.30 बजे मैंने अपना सक्रिय कार्यकलाप शुरू किया लिंग्विस्टिक्स लाइब्रेरी जाकर
जहाँ से मुझे एक किताब लेनी थी, फिर मैं नोटिस बोर्ड देखने गया। सेमिनार रूम
के सामने अंजु और राकेश (मेरे सहपाठी) गपशप कर रहे थे। मैंने मुस्कुराकर उनसे ‘हैलो’ कहा। अंजु ने नोटिस बोर्ड की ओर इशारा
करते हुए कहा –
‘‘नोटिस
बोर्ड देखो,
डेविड’’
‘‘किस
बारे में है?’’
मैंने उससे पूछा।
‘खुद
ही देख लो,’
उसने सलाह दी।
मैंने
नोटिस बोर्ड पर नजर दौडा़ई और मुझे दो नोटिस नजर आए; एक महत्वपूर्ण है, दूसरा-दिलचस्प महत्वपूर्ण नोटिस इस
बारे में है कि एम०फिल कमिटी की मीटिंग ३ फरबरी को होने वाली है, जिसमें शोध-विषयों को अंतिम स्वीकृति
दी जाएगी। दिलचस्प नोटिस उस पिकनिक के बारे में है जिसका आयोजन डिपार्टमेन्ट ने
किया है। जब मैंने उस धनराशि की ओर देखा जो हमें खर्च करनी पड़ेगी, तो मेरी दिलचस्पी खत्म हो गई। २०
रूपये। मैं अपने आप को और अधिक आर्थिक परेशानी में नहीं डालूँगा।
मैं
डिपार्टमेन्ट से निकलकर लाइब्रेरी सायन्स डिपार्टमेन्ट गया मि० वासित को याद
दिलाने कि उन्हें खत लिखना है। वे वहाँ नही थे। उनका कमरा बन्द था। मैंने देखा
कि सुन्दरम मैडम क्लास में लेकचर दे रही थी। मैंने सोचा कि उन्हें याद दिलाने
की जरूरत नहीं है। शायद उन्होंने तुम्हें लिख भी दिया हो। मैं उन्हें तंग नहीं
करना चाहता। तो मैं तुम्हारे डिपार्टमेन्ट से मिलकर आराम से मिलने पहुँचा। वह
सिर ढाँककर सो रहा था। मैंने उसे उठाया जिससे वह लंच के लिये तैयार हो जाए। आचन च्युएन
एक स्पेशल मीटिंग के लिये बुलाने आया जो फरवरी में होने वाली थी और वह जोर दे रहा
था कि हम फरवरी में अशोक बुद्ध मिशन में अन्य बौद्धों के साथ माघ पूजा का आयोजन
करें। मैंने उनके साथ कुछ समय बिताया और फिर कुछ कागज खरीदने को-ऑपरेटिव स्टोर
गया। सोम्रांग भी वहाँ फाइल्स खरीद रहा
था। मैंने उससे एक रूपया उधार लिया, क्योंकि मेरे पास बिल चुकाने के लिये पर्याप्त
पैसे नहीं है। जब मैं बाहर निकला तो इत्तेफाक से मिसेज कश्यप से मुलाकात हो गई।
मैंने उन्हें ‘‘न्मस्ते’’ कहा और विनती की कि वे मि० काश्यप को
तुम्हें लिखने की याद दिला दें, यदि वे तुम्हारे दिल्ली पहुँचने से पहले ऐसा
करना चाहे तो।
मैं
लंच के लिये होस्टल वापस आया और लंच के बाद वुथिपोंग के कमरे में उससे थोड़ी-सी
बातें करने गया। वह अभी तक ‘‘वो ही’’ वुथिपोंग है जिसे अपना जीवन संतुष्टि लायक
नहीं प्रतीत होता। वह बेकार ही महान कल्पनाओं के चाँदी के रथ में सवार होकर स्वर्ग
से उतरने की राह देख रहा है, जिसे एक विजयी, मुस्कुराती काव्य-देवता हाँक रही है।
मुझे ऐसा लगता है कि अगर वह छोटी-छोटी चीजों – दर्जनों, सैकडो और कभी कभी हजारों छोटी-मोटी
सूचनाओं,
विचारों, और
घटनाओं को, जो
उसके दिमाग में भरी पड़ी हैं, अनदेखा न करे तो वह बेशक, अपने समय का महान आदमी है। हमारी ये
मीटिंग बस रचना का ऐवज बन गई – खासतौर से गप-शप, मौसम के बारे में बेकार की बातें, या बकवास, जो खामोशी की खाई को पाटने के लिये जा
रही थी। मगर फिर भी,
मुझे उसका साथ देना अच्छा लगा। उसने कॉफी बनाई और महेश ने चपाती और यह थी समाप्ति
‘‘हमारे
वक़्त’’
की। वह मेरे साथ होस्टेल आया। हम जी भर कर पिंग-पॉग खेले। उसने गरम पानी से स्नान
किया और फिर अपने ‘‘काम’’ को करने चल पडा़। जब मैं खेलने के
लिये अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, तो मैं पोस्टमैन द्वारा अभी-अभी लाए गए खत
देखने चला गया। वाह, क्या
किस्मत है। मुझे तुम्हारा खत मिला। यह आश्चर्य की बात है। मुझे आज इसकी उम्मीद
नहीं थी। बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रिये, कि तुम मुझे भूली नहीं हो। अब मैं खुश
हूँ!
आर
रात को,
डिनर से पहले और डिनर करते समय बिजली आती-जाती रही। हमने मोमबत्तियों की रोशनी में
डिनर खाया। मैं कल्पना कर रहा हूँ: कितना रोमांटिक था ।
अच्छा, मेरी जान, अब मैं डायरी लिखना बन्द करता हूँ और
बचे हुए समय में तुम्हारे खत का जवाब लिखूंगा। गुड नाईट!
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