मेरी सर्वाधिक प्रिय कविता
अगर
मेरे बस में होता,
तो
मैं जीवन का हर दिन खुशियों से
भर
देता।
मैं
किसी को आहत न करता,
किसी
को नाराज न करता;
हर
कष्ट को कम करता,
और
कृतज्ञता की शुभाशीषों का आनन्द उठाता।
अपना
दोस्त बुद्धिमानों से चुनता
और
पत्नी सदाचारियों में से;
और
इसलिये धोखे और निष्ठुरता के
खतरे
से बचा रहता।
(सैम्युअल
जॉन्सनः रास्सेलास)
पहला
दिन
जनवरी
११,१९८२
अब तक तो TG ९३५ पालम
एअरपोर्ट (अब इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट) से उड़ान भर चुकी होगी,
बैंकाक के लिये – तुम्हारे गंतव्य की ओर।
हमने प्रातः १.३० मिनट पर एक दूसरे से बिदा ली,
यही वो आखिरी पल था जो हमने साथ बिताया। तुम चली गई – मुझे ठिठुरते एकान्त और
नीली तनहाई में छोड़कर। मेरी जिन्दगी, दुख होता है कहने में, फिर से दुःखों के गहरे समन्दर में लौट आई है। जिन्दगी कितनी क्रूर है।
मैं तुम्हें फिर से कब देखूंगा?
अब तुम थाईलैण्ड में हो,
मगर मैं अभी भी भारत में हूँ, विभिन्नताओं और विरोधाभासों की धरती पर हमारे
जिस्म एक दूसरे से जुदा हैं मगर मुझे उम्मीद है कि हमारे दिल एक ही हैं। यह
सोचकर मैं परेशान हो जाता हूँ कि क्या तुम अब भी मुझसे प्यार करती हो और तुम्हें
मेरी जरूरत है। जीवन का सत्य तो यह है कि एक न एक दिन हमें जुदा होना ही है। अपने
से दूर जाते हुए तुम्हें मैं न रोक सकूंगा। तुम ‘तुम’ हो और मैं ‘मैं’
हूँ। असल में हम दो अलग-अलग व्यक्तित्व हैं और प्रकृति के नियमों से शासित है।
थाईलैण्ड पहुँचने पर भगवान तुम पर कृपा करे।
मगर याद रखना, मेरी
प्यारी, कि तुम चाहे जो भी करो, और
जहाँ भी जाओ मेरे खून और मेरी रूह में तुम हमेशा रहोगी। स्थल और समय हमें जुदा तो
कर सकते हैं, मगर मेरे वफ़ादार दिल में तुम हमेशा रहोगी। और
मैं तुमसे वादा करता हूँ जिन्दगी भर के लिये प्रेम और स्नेह का।
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