गुरुवार, 24 मई 2018

मैं अपना प्यार - 15




*Arte perennat amor (Latin): प्‍यार को कोशिशों से संभाला जाता है – प्‍यूबिलियस साइरस F1 1st Century BC
पन्‍द्रहवाँ दिन
जनवरी २५,१९८२

यह एक और दिन था, जब मुझे तुम्‍हारे खत का इंतजार था। मैं बैठे-बैठे देख रहा था कि कब पोस्‍टमैन होस्‍टेल-गेट पर एअर-मेल बाँटने आता है। जैसे ही वह आया, मैं उसकी ओर भागा, मगर उसने कहा, ‘‘तुम्‍हारे लिए कोई खत नहीं है!’’ मैं रोने-रोने को हो गया। तुम्‍हें हो क्‍या गया है, मेरी जान? क्‍या तुम मुझे खत लिखने के लिए एक मिनट भी नहीं निकाल सकती? तुम मेरे प्रति बहुत ठंडी और क्रूर हो गई हो। मैं कैसे बर्दाश्‍त करुँ! यह मुझे इतना परेशान कर देता है कि मैं अपने आप को संभाल नहीं पाता। क्‍या तुम महसूस नहीं करती कि मैं तुम्‍हारा इस तरह से इंतजार कर रहा हूँ, जैसे खिलता हुआ गुलाब बारिश का करता है? अगर तुम ही नहीं तो मेरे प्‍यार को कौन सहारा देगा?
मुझे तो ऐसा लगता हे कि तुमसे दुबारा मिलना संयोगवश ही हो पाएगा। रातों में कई बार तुम्‍हारे सपने आते हैं, मगर ये सपने बड़े मनहूस होते हैं। वे मुझे उत्‍तेजित कर देते हैं और मेरी निराशा को हवा देते हैं। मैंने अपने आप को दिलासा देने की भरसक कोशिश की यह सोचकर कि तुम मेरे पास वापस आ रही हो कल, या परसों, या उससे अगले दिन, अगले हफ्ते... ! मैं, बेशक, उम्‍मीद पर ही जी रहा हूँ। मेरी उम्‍मीद तुम्‍हीं से पूरी होगी। मेरी जिन्‍दगी को दुखमय न बनाओ, प्‍लीज।
लंच के बाद मैं होस्टेल के सामने वाले प्‍लेग्राऊण्‍ड पर बैठने के लिये गया। मैं क्रिकेट का खेल देख रहा था, भारतीय खेलों में सबसे लोकप्रिय। मगर भगवान ही जानता है कि मेरा दिमाग खेल में जरा भी नहीं था। वह तो एक हजार मील दूर भाग गया था। खेल में कोई मजा नहीं आया तो मैं भारी दिल से निकट के पोस्‍ट-ऑफिस की ओर चल पडा़, एक ऐरोग्राम खरीदा, उस पर कुछ लिखा, तुम्‍हारा पता लिख और पोस्‍टबॉक्‍स में डाल दिया। ये दूसरा खत लिखा था मैंने तुमको। पहला खत परसों (शनिवार को) लिखा था। उदासी मुझे तुम्‍हें लिखने के लिये कह रही है। मैं इस तरह बेदिल से नहीं रह सकता, मालूम नहीं क्‍यों। इसे मैं अपना कर्त्‍तव्‍य समझता हूँ। मैं उसके घर से शाम 7.00 बजे निकला। कोहरा है और ठंड है। हॉस्‍टेल में वापस आते हुए मैं कोई गीत गुनगुना रहा था। कैम्‍पस नीरव था, आस पास कोई भी नहीं था। कम से कम आज मैंने तुम्‍हारे लिये कुछ किया है। मालूम नहीं तुम मेरी इस मदद की सराहना करोगी या नहीं। मुझे इसकी फिकर नहीं है। मैंने ये ‘‘बस तुम्‍हारे लिये’’ किया।
आज सोम्‍मार्ट ने एक नई बुक-शेल्‍फ खरीदी, मगर इसे रसोई का सामान रखने के लिये इस्‍तेमाल कर रहा है। वह एक अच्‍छा रूम-मेट है, हॉलाकि कुछ भावना प्रधान है। खैर, मैं उसके व्‍यक्तित्‍व को स्‍वीकार करता हूँ और उसकी इज्‍ज़त करता हूँ। कोई भी इन्‍सान सम्‍पूर्ण नहीं होता! मैं उससे ज्‍यादा सम्‍पूर्ण नहीं हूँ। यह आपसी समझदारी है, जो हमें एक दूसरे से बांधे रखती है। हम सभी इन्‍सान हैं। गलती करना इन्‍सान का स्‍वभाव है, क्षमा करना ईश्‍वर का – जैसी कि एक कहावत है!
दोपहर में और शाम को मैं घर पर ही रहता हूँ। 5.30 बजे म्‍युआन मेरे कमरे में गर्म पानी से नहाने के लिये आया। मैंने उससे कहा कि चौकीदार से खत के बारे में पूछ ले। मगर वह यह कहते हुए वापस आया, ‘‘नहीं...नहीं...तुम्‍हारे लिये कोई खत नहीं है।’’ उसने स्‍नान किया और वह अपने हाऊस चला गया। मैंने अपने लिये कॉफी बनाई, नहाया और आज की डायरी पर वापस आया। मैं कमरे में अकेला हूँ और सोम्‍मार्ट तो सुबह से अपनी क्‍लास में गया है, वह अब तक वापस नहीं लौटा है।
मगर फिर भी मैं इसे संजीदगी से नहीं लेता क्‍योंकि मैं उदास और हताश हूँ। मैं अपनी डायरी अभी खतम करता हूँ इस शिकायत के साथ, ‘‘मेरे पास जल्‍दी से आ जाओ, मेरी जान!’’ मैं तुम्‍हें देखने के लिय बेचैन हूँ।
अब मैं आज की डायरी खत्‍म करता हूँ। अपने माता-पिता के साथ ढेरों खुशी के दिन बिताओ। मगर मुझे गुड-नाइट चुंबन तो लेने दो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैं अपना प्यार for Kindle

  अपना प्यार मैं दिल्ली में छोड़ आया   एक थाई नौजवान की ३० दिन की डायरी जो विदेश में बुरी तरह प्‍यार में पागल था                ...