*Amore nihil mollies nihil violentius (Latin) : प्यार से ज्यादा विनम्र और आक्रामक और
कुछ नहीं है – एनोन
सत्रहवाँ दिन
जनवरी २७,१९८२
आज
काफी भाग-दौड भरा दिन रहा। सुबह मैं लिंग्विस्टिक्स डिपार्टमेन्ट गया – एक किताब
लौटाने,
मेरे रिसर्च गाईड से मिलने और दोस्तों से – भारतीय और थाई – मिलने। हेड ऑफ दि
डिपार्टमेन्ट (डा० के०पी० सुब्बाराव) ने मुझे बुलाया और पूछाः
‘‘तुम
घर कब जा रहे हो?’’
‘‘अगले
कुछ महीनों में, सर,’’ मैंने कहा।
‘‘मेरे
घर में एक और बच्चे का जन्म होने वाला है,’’ उन्होंने बड़े फख्र से कहा।
‘‘ये
तो बहुत बढ़िया खबर है, सर, मुबारक हो।’’
‘‘मैं
अपने बच्चे के लिये थाईलैण्ड से कुछ मंगवाना चाहता हूँ। मुझे जाने से दो-तीन दिन
पहले बताना, प्लीज।’’
‘‘बड़ी
खुशी से, सर, मैं जरूर बताऊँगा।’’
फिर
उन्होंने ‘‘दि
ग्रेट कॉफी हाऊस’’
में मुझे और अपने अन्य शोध छात्रों की कॉफी पीने की दावत दी। रास्ते में हम सोम्मियेंग
से मिले। उसे भी हमारे साथ आने की दावत दी। अच्छी रही ये ‘गेट-टुगेदर’। मगर, मैंने कमरे से निकलते समय सोचा था कि
तुम्हारे सुपरवाईज़र मि० वासित से मिलॅूगा। इत्तेफाक से मैंने उन्हें मि० कश्यप
के साथ मेरी ही दिशा में आते देखा, जब मैं कॉफी हाऊस से वापस जा रहा था।
मैं
उनसे मूलाकात करने ही वाला था, मगर फिर रूक गया क्योंकि वह मि० कश्यप के
साथ अपनी बातचीत में मशगूल थे। उनकी बातों में खलल डालना ठीक नहीं होता। नतीजा ये
हुआ कि मैंने उनसे मिलने का मौका खो दिया। कोई बात नहीं, अगली बार ही सही। मैं आगे चला, अपने गाईड से मिलने। मैंने उनसे कुछ
सुझाव लिये और वापस अपने कमरे में आ गया। युनिवर्सिटी स्टेशनरी शॉप के पास वाले
चौराहे पर मैं टुम और उसकी होस्टल की सहेली से मिला। उसने मुझे थाई तरीके से नमस्ते
किया और अपनी सहेली का परिचय कराया। उसकी सहेली शरारती टाईप की है। वह कलकत्ता की
है। उसका नाम है कृष्णा। पहले तो मैं समझ नहीं पाया कि वह थाई है या भारतीय।
मैंने टुम से पूछा। टुम ने मुझे नहीं बताया, मगर यह सलाह दी कि मैं उसीसे पूछॅू।
‘‘क्या
तुम थाई हो?’’
मैंने उससे पूछा।
‘‘हाँ, मैं थाई हूँ,’’ उसने जवाब दिया।
फिर
मैंने उसे थाई भाषा में पूछा, जिससे उसके जवाब की सच्चाई का पता चले।
‘‘मा
जाक माय (तुम कहाँ की हो?)’’ मैंने फिर उससे पूछा।
‘‘मा
जाक माय’’
उसने टूटी-फूटी बोली में सवाल दुहरा दिया।
‘‘तुम्हारा
झूठ पकडा़ गया!’’
मैंने कहा
‘‘नहीं, मैंने झूठ नहीं बोला,’’ वह मान नहीं रही थी।
मैं
उसे सताने लगा।
‘‘तुम
एक बहुत बड़ी झूठी हो!’’
उसने
एकदम इनकार कर दिया कि वह झूठी है। ये तो अच्छा रहा कि हमारी बातचीत ने ‘‘गलतफहमी’’ नहीं पैदा की। टुम हमारे इस शाब्दिक
युध्द पर खूब हॅस रही थी।
मैंने
उन्हें ‘‘मिरान्डा
हाऊस’’
छोडा़ और उनसे ‘‘बाय’’ कहा। मैं कुछ कागज़ खरीदने कोऑपरेटिव
स्टोअर पर रूका। कागज़ लेकर मैं सीधे होस्टल आया। मैंने खाना खाया और पोस्टमैन
का इंतजार करने लगा। मैंने उससे अपने खत के बारे में पूछा। मगर उसने कहाः
‘‘सॉरी, तुम्हारे लिये तो नहीं है, मगर पी०जी० वूमेन्स होस्टेल में एक
थाई लड़की के लिये है।’’
‘कौन
है वो?’
‘‘धी...धी’’ उसने टूटी-फूटी अंग्रेजी में कहा।
‘‘क्या
मैं ले लूँ? वह
मेरी दोस्त है,’’
मैने बडे़ विश्वास से कहा।
‘‘हाँ, हाँ,’’ उसने कहा।
मैं
अपने कमरे में आया और तुम्हारे खत को मेज की दराज में रख दिया। आधे घण्टे बाद
मैं यू०जी०सी० गया,
पता करने कि क्या स्कॉलरशिप की घोषणा हो चुकी है। ऑफिसर ने मुझे सूचित किया कि
घोषणा की तारीख अप्रैल तक बढा़ दी गई है। मुझे कमिटी की इन तकनीकी बातों से और
विलम्ब से निराशा हुई। मगर मैं सिर्फ ‘‘इंतजार’’ ही कर सकता हूँ। मैं यू०जी०सी०
बिल्डिंग से बाहर निकला और युनिवर्सिटी के लिये बस का इंतजार करने लगा। बसें खचाखच
भरी हुई थी। एक घण्टा बीत गया। आखिरकार मैं एक बस में घुसा जिसने, दुर्भाग्यवश, मुझे आई०एस०बी०टी० छोडा़। मैंने अब बस
नहीं लेने का फैसला किया। मैं लम्बा चक्कर लगाकर होस्टेल आया। उद्देश्य ये थेः
१.
अपने आप को इतना थकाना कि मानसिक तनाव
कुछ कम हो जाए;
२.
इस व्यक्तिपूरक दुनिया को महसूस करना, जैसा कि किसी ने किया था जब वह
थाईलैण्ड में थी;
३.
यह देखना कि इस घातक-प्रतियोगिता वाली
दुनिया में लोग कैसे रहते हैं।
जब
में आगे चल रहा था,
मैं जीवन की गति के बारे में सोच रहा था। क्या विगत मुझे पीछे धकेल रहा है या
भविष्य अपनी ओर खींच रहा है? मगर मैं फिर भी आगे की ओर ही चलता रहा। अंतिम
लक्ष्य रहस्यमय था,
धुँधला था,
अनिश्चित था। डा० डब्ल्यू० डब्ल्यू डायर, एक प्रसिध्द मनोवैज्ञानिक ने, ठीक ही कहा है।
‘‘वास्तविकता
को पूरे समय कोसते रहने और अपनी प्रसन्नता के अवसर को खोने से बेहतर है जीवन की
सराहना करना; यह
सम्पूर्ण समाधान की ओर एक निश्चित कदम हो सकता है।’’ अब मुझे उसके सही निरीक्षण का अनुभव
हो रहा है।
यह
सैर 45 मिनट तक चली, जब
तक मैं होस्टेल नहीं पहुँच गया। अब मैं डायरी बन्द करता हूँ और नहाने जा रहा हूँ
(हमेशा की तरह)। आज मेरा पढ़ने का इरादा है और बाद में मैं सोऊँगा।
अलविदा, फिलहाल!
प्यार!
पुनश्चः
मालूम नहीं तापमान कितना है। मगर आज शाम को ठंड ने मेरी हड्डियों तक में सिहरन भर
दी।
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