रविवार, 27 मई 2018

मैं अपना प्यार - 27




*Amantiumirae amoris integration est (Latin): प्रेमियों के झगडे़ उन्‍हें जोड़ने का बेहतरीन साधन हैं – टेरेन्‍स 190-159  BC
सत्‍ताईसवाँ दिन
फरवरी ६,१९८२

एक मोटा शीर्षक आज के अखबार में ‘‘सूरिनाम में सैनिक विद्रोहः सूरिनाम कहाँ है? यह सवाल उठ सकता है। मैं तुम्‍हें नहीं बता सकता कि कहाँ है, मगर मेरे छोटे से नक्‍शे की ओर देखो और उसी को तुम्‍हारे सवाल का जवाब समझ लो।
यह है उस खबर का सारांशः
दि हेग, फरवरी 5 – सूरिनाम में सेना ने एक बार फिर सत्‍ता हथिया ली हैं; प्रेसिडेन्‍ट को इस्‍तीफा देने पर मजबूर कर दिया गया। नीदरलैण्‍ड की न्‍यूज़ एजेन्‍सी ANP के हवाले से AFP की रिपोर्ट
अब सत्‍ता लेफिटनेन्‍ट कर्नल देसी बूटेर्स, राष्‍ट्रीय मिलिटरी कौंसिल के अध्‍यक्ष के हाथ में बताई जाती है।
शायद सूरिनाम के बारे में कुछ और जानना योग्‍य होगाः सूरिनाम में भारतीयों की, खासकर पूर्वी उत्‍तर प्रदेश से आए हुए लोगों की एक बड़ी आबादी है, जिनके पूर्वज कई दशकों पहले यहाँ चले आए थे। उनमें से अधिकांश हिन्‍दू एवम् आर्य समाजी हैं, मगर भारतीय समुदाय में क्रिश्‍चन और मुसलमान भी काफी संख्‍या में हैं। ठीक हैं। उसके बारे में कुछ और बताता हूँ। सूरिनाम को १९७५ में नीदरलैण्‍ड से आजादी मिली है। यह ज्ञानकारी पर्याप्‍त है सूरिनाम को जानने के लिये। अब मैं भारत में अपने दैनंदिन अस्तित्‍व के बारे में अपनी डायरी की ओर लौटता हूँ।
आज का दिन मैंने पूरे उत्‍साह और उत्‍सुकता से बिताया। उसका पूरा पूरा सदुपयोग किया। सुबह मैं डिपार्टमेन्‍ट गया जिससे डिपार्टमेन्‍ट की हाल ही की गतिविधियों की जानकारी प्राप्‍त कर सकूँ। यहाँ मुझे पता चलता है कि मेरे रिसर्च गाइड कौन हें – डा० ए०के० सिन्‍हा। मैं उनका अकेला शोध-छात्र हूँ। अन्‍य गाइड्स को दो-दो छात्र दिये गए हैं। डा० प्रेम सिंह के पास इस साल कोई शोध-पत्र नहीं है क्‍योंकि उनकी विशेषता के क्षेत्र में (फोनोलोजी और हिंस्‍टोरिकल लिंग्विस्टिक्‍स) काम करने का प्रस्‍ताव इस साल किसी ने नहीं दिया है।
इस साल विद्यार्थियों की दिलचस्‍पी सिंटेक्‍स (वाक्‍य विन्‍यास) तथा सोशिओ लिंग्विस्टिक्‍स (सामाजिक भाषा विज्ञान) में हैं। नोटिस के अनुसार, मुझे अपने काम का सारांश इस महीने की पन्‍द्रह तारीख को देना है और एम. फिल. कमिटी की मीटिंग इस महीने की उन्नीस तारीख को फिर से होगी शोध-विषयों को अंतिम रूप देने के लिये। मैं डिपार्टमेन्‍ट से होस्‍टल की ओर चल पडा़। रेणु, जूली और टूम मेरी ही तरफ आ रही थीं। वे सेन्‍ट्रल लाइब्रेरी जा रही थीं अपने स्‍पेशल टयूटर से मिलनें।
मैं उनके साथ सेन्‍ट्रल लाइब्रेरी गया ‘‘थाई वाक्‍य विन्‍यास’’ नामक पुस्‍तक लेने, जिसे डा० उडोम वारोटमासिक्‍खाडिट ने लिखा है। मैंने केटेलॉग से किताब का नंबर लिया, मगर शेल्‍फ में वह किताब नहीं थी। फिर मैं लंच के लिये होस्‍टेल वापस आ गया। लंच के बाद इतना आलस आ रहा था। मैंने कुछ गाने सुने और, मेरी ऑख लगने ही वाली थी। मगर अचानक मेरे अंतर्मन ने मुझे झकझोर दिया। कल मैंने निश्‍चय जो किया था विश्‍व पुस्‍तक मेले में जाने का। अपने आलस पर काबू पाकर मैं कल के निर्णय को पूरा करने निकल पडा़।
मैं तीन बजे मेले में पहुँचा, टिकट खरीदा और अन्‍दर गया। सूचना केन्‍द्र पर जाकर पूछा कि मेरी दिलचस्‍पी की जगह पर कैसे जाऊँ। पहले मुझे जाना था हॉल नं० 8A में। मैंने किताबों की लंबी-लंबी कतारों पर नजर दौडा़ई और एक किताब उठा ली।
‘‘युवावस्‍था’’ एक मानसिक स्‍व-चित्रण डेनियल ऑफर, एरिक ओस्‍त्रोव और केनेथ आइ० होवार्ड द्वारा। मैंने विषय सूची पर नजर दौडा़ई और देखा कि दूसरा अध्‍याय काफी रोचक है। यह पांच प्रकार के ‘‘-स्‍व’’ का वर्णन करता है।
·         मानसिक स्‍वत्‍व
·         सामाजिक स्‍वत्‍व
·         लैंगिक स्‍वत्‍व
·         पारिवारिक स्‍वत्‍व
·         परिष्‍कृत स्‍वत्‍व
मैंने कागज के एक पन्‍ने पर इसे नोट कर लिया, जो मैं ऐसे ही किसी आकस्मिक ज्ञान को ध्‍यान में रखकर अपने साथ लाया था। फिर मैंने किताब को वापस स्‍टॉल में रख दिया। अब मैं अपनी रूचि की दूसरी जगह पर गया – अरब पैविलियन। यहाँ कई तरह की किताबें रखी हैं। भाग लेने वाले हैं जर्मनी से, ईराक से, अमेरिका से, थाईलैण्‍ड से एवम् अन्‍य देशों से। मैंने रूक कर हर स्‍टॉल पर नजर डाली। फिर, संयोगवश, मेरी नजर थाईलैण्‍ड के स्‍टॉल पर पड़़ी। बड़ा दयनीय प्रदर्शन! स्‍टॉल पर थोड़ी सी ही किताबें थी, और कोई पर्यवेक्षक भी नहीं था। काफी कम लोग वहाँ किताबें देख रहे थे। लगभग खाली था स्‍टॉल। देशभक्ति की भावना मेरे भीतर जोर मारने लगी। मैंने तय कर लिया कि और कहीं नहीं जाऊँगा, बल्कि इसी स्‍टॉल के आस पास मंडराऊँगा। मैं काफी दिलचस्‍पी से स्‍टॉल पर रखी हर किताब के पन्‍ने पलट रहा था। मुझे थाई स्‍पर्श का अनुभव हो रहा था। उस छोटे से स्‍टॉल पर करीब बीस किताबें थी, ब्रोशूर्स और कार्टून्‍स भी उनमें शामिल थे।
ये हैं महत्‍वपूर्ण किताबेः
१.       थाई रामायण
२.       बौद्ध्‍ धर्म का विवरण
३.       थाईलैण्‍ड का लोकप्रिय इतिहास (एम० जुम्‍साई)
४.       महामहिम सम्राट भुमिबोल अदुल्‍यादेज – थाईलैण्‍डके दयालु सम्राट (तानिन क्रेविक्सिन)
५.       स्‍याम के चीनी बर्तन (चार्ल्‍स नेल्‍सन स्पिन्‍कस)
६.       एन्‍ना और थाईलैण्‍ड के सम्राट
स्‍टॉल पर किताबों की एक लिस्‍ट है जिसे मैं औरों से ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण मानता हूँ। मैंने दो पॉकेट बुक्‍स पढ़ लीः क्रेटोंग (अंग्रेजी अनुवाद) और सिन्‍ड्रेला (थाई अनुवादः बच्‍चों के लिये कार्टून)। क्रेटोंग में मुझे श्री प्राण का एक प्रसिद्ध कथन मिला जिसका प्रिन्‍स प्रेम पुराछत्र ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। यह इस तरह से हैः
‘‘बताएं नहीं तुम्‍हारे नयन-बाण मेरा भविष्‍य,’
अपने शिकार पर शिकारी की तरह बरस
अगर तीर चलाना ही है, तो चलाओ सीधे मेरे दिल पर!
मरने के बजाय धमकाने की क्रूरता होगी मेरे पास। (प्राक्‍कथन से)।
क्रेटोंग और विमला के बीच कुछ दिलचस्‍प संवाद इस तरह से हैः
·         ‘‘अगर तुम मेरे साथ वाक़ई में चलना चाहो तो तुम्‍हें कुछ खोना ही पड़ेगा, जैसे कि बड़े भाई को प्‍यार करना, मगर छोटे को खोने की इच्‍छा न करना’’ (क्रेटोंग विमला से)
·         औरत के दिमाग को समझना उससे भी कठिन है जितना कोई सोचता है; सबसे गहरे समुद्र को नापना आसान हे। औरत के तीन सौ छलों को जानना असंभव है। (क्रेटोंग विमला से)
और यह हे अंतिम वाक्‍य जो मुझे याद हैः
·         ‘‘तुम शब्‍दों के जादूगर हो और वाक्‍यों के शिल्‍पी, जैसे जमीन को काटता हुआ एक झरना। हर कोई तुम पर निर्भर रह सकता है, इनकार नहीं मिलेगा’’ (विमला क्रेटोंग से)
जब मैं वहाँ खडा़ था तो कुछ लोग वहाँ किताबें देखने आए और पूछने लगे,
‘‘क्‍या ये बिकाऊ है?’’
‘‘स्‍टाल की देखभाल कौन कर रहा है?’’
‘‘ये कितने की है, ये वाली?’’
मुंबई की एक औरत ने पूछाः
‘‘क्‍या आपके पास थाई रसोई पर कोई किताब है?’’
‘‘क्‍या आपको वाकई में थाई खाने में रूचि है?’’ मैंने उससे पूछा।
उसने कहा, ‘‘हाँ’’ और मुझे बताने लगी कि वह अकसर मुंबई से बैंकाक जाती-आती रहती है। उसने मुझसे बैंकाक की किसी किताबों की दुकान का नाम पूछा जहाँ वह थाई रसोई के बारे में किताब खरीद सके। वह बड़ी उत्‍साही और चुलबुली किस्‍म की थी। वह बढि़या अंग्रेजी बोलती है, अमेरिकन लहजे में, मैंने उसकी दिलचस्‍पी की सराहना की। जब हम बात कर ही रहे थे, तो एक चीनी चेहरे-मोहरे का व़द्ध व्‍यकित्‍ थाईलैण्‍ड – स्‍टॉल के पास आया। जब मैंने उसकी ओर देखा तो एक ‘‘थाईपन’’ की भावना मुझे छू गई। मैंने उसकी कमीज की जेब पर बैच लगा देखाः

एम० जुम्‍साई
अंतर्राष्‍ट्रीय सेमिनार प्रतिनिधि।

ये वही है! एम० एल० मानिच जुम्‍साई, थाईलैण्‍ड के महान अंग्रेजी विद्वान, जिसके प्रति अपने अंग्रेजी ज्ञान के लिये मैं कृतज्ञ हूँ – जो मुझे उसके थाई-अंग्रेजी शब्‍दकोष की सहायता से प्राप्‍त हुआ। मैंने थाई अन्‍दाज में उनका अभिवादन किया। उन्‍होंने मुझे बताया कि वे खुद ही थाईलैण्‍ड से किताबें यहाँ लाए थे और उन्‍हें प्रदर्शित किया था। अब मुझे कोई अफ़सोस नहीं है; थाई-प्रदर्शन इतना दयनीय इसलिये था क्‍योंकि वह सिर्फ एक व्‍यक्ति की कोशिश का नतीजा था। बल्कि, मुझे इस पहल और रचनात्‍मक प्रयत्‍न के प्रति आदर महसूस हुआ, जिसने एक छोटे काम को बेहतरीन बनाने की कोशिश की थी। मैं आपका सम्‍मान करता हूँ, सर! फिर उन्‍होंने कहा,
‘‘प्रदर्शनी जल्‍दी में आयोजिति की गई। मैं काफी देर से आया। मैंने खुद से ही किताबें स्‍टॉल पर रखीं और उसके ऊपर लिखा ‘‘थाईलैण्‍ड’’
उन्‍होंने मुझसे पूछा कि क्‍या आसपास किसी होटल में रहने की व्‍यवस्‍था हो सकती है, जिससे वे मेले तथा होटल के बीच सुविधा से आना जाना कर सकें। पिछली रात वे विक्रम होटल (डिफेन्‍स कॉलनी) में रूके थे।
‘‘वह बहुत दूर है। मैं पास के ही किसी होटल में रहना चाहता हूँ।’’
मैं उन्‍हें और उनके श्री लंकाई मित्र को कनाट प्‍लेस लाया, १०० रू० प्रति कमरे वाले किसी होटल की तलाश में। वह बेहद थके हुए थे। पहले होटल में, जहाँ हम पहुँचे, सफलता नहीं मिली। श्री लंकाई दोस्‍त किसी नये कमरे में जाने के प्रति उदासीन था। मुझे ऐसा लगा कि वह पहले वाले कमरे में ही रहने को उत्‍सुक था। मैंने उसके लिये कमरा ढूँढना रोक दिया और एक रिक्‍शा बुलाकर उन्‍हें पहले वाले कमरे में छोड़ आने को कहा। एम०एल० मानीच जुम्‍साई ने धन्‍यवाद के अंदाज में मेरे कंधों को छुआ। मैंने उनके सम्‍मुख सिर झुकाया और थाई अंदाज में बिदा ली। शायद आपसे फिर मुलाकात हो जाये, सर!
कनाट प्‍लेस पर मैंने अपने होस्‍टेल के लिये बस पकडी-नये अनुभव और नई खोजों को दिल में संजोये। जिन्‍दगी कितनी दिलचस्‍प है!



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